Wednesday, July 6, 2011

अरे तूं तो सयानी थी कदम गिन गिन के रखती थी

चलो माना के हमने उम्र भर  धोखा ही  खाया  है
और माना ये कि नासमझी में अक्सर ही गंवाया है

अरे तूं तो सयानी थी कदम गिन गिन के रखती थी  
मगर ऐ जिंदगी ये तो बता, तूने  क्या पाया है

चले आते हैं ग़म तूं  ही बता हम कब बुलाते हैं 
खुशी तूं क्यों नही आती तुझे अक्सर बुलाया है

नही तन के तेरे कपडे बदल डालोगे पल भर  में
यूं अपनी सोच या  फितरत  कहाँ कोई बदल पाया है

सही या गलत से तुम को कहाँ  कुछ लेना देना है
किसीकी मानने में शायद  फायदा नजर आया है

तुम्हे उस पार पहुंचाने को मैं तैयार था हर दम
किनारा समझकर मझधार क्यों खुद को डुबाया है


Friday, May 20, 2011

मुझे तो प्यार करने से यहाँ फुर्सत नही मिलती

मुझे तो प्यार करने से यहाँ फुर्सत नही मिलती


फिर  हासिल लोग करते है क्या लड्ने से झगडने से

Tuesday, April 19, 2011

पर ऐसा कुछ भी क्या बनना पड़े प्यार ही जिसमे दफनाना

मुसीबत ना बनो आफत ना बनो ना खतरा बनो कोई अनजाना
 इस तरह प्यार नहीं निभता अपना भी नही है निभ पाना मोहब्बत तो बनो चाहत भी बनो कभी शमा बनो कभी परवाना पर ऐसा कुछ भी क्या बनना पड़े प्यार ही जिसमे दफनाना

Friday, April 15, 2011

इतना भी किसी को ना चाहो खुद जान पे अपनी बन आये

इतना भी किसी को न चाहो खुद जान पे अपनी बन आये
 ये इश्क कहीं खुद तेरे लिए ना कोई मुसीबत बन जाए

 चाहत को चाहत रहने दो और इतना ध्यान रहे हरदम
 बढ़ते बढ़ते इतनी ना बढे ना मिले तो आफत हो जाए

 ये इश्क खुदा क़ी देन तो है लेकिन उस देन से क्या हासिल
आंचल में समाते ही जिसके आँचल  सारा कट फट जाए

देने को तो दे दू नाम कोई तेरे चाहत के रिश्ते को
डरता हूँ कहीं चाहत तेरी बदनाम ना मुफ्त ही हो जाए

यार से इतने शिकवे गिले ये तो कोई अच्छी बात नहीं
 ये शिकवे गिले बढ़ते बढ़ते ना तर्क -ऐ- मोहब्बत हो जाए

Monday, March 28, 2011

थी प्यास समुन्द्र पीने की, दो घूँट पिला टाला तूने

अपने लिए भी वक्त नही जब पास किसी के
क्या आएगा शख्स कोई फिर काम किसी के

करता है सो भरता है अब नही जरूरी दुनिया में
करता है कोई और आ जाते इल्जाम किसी पे

 गिरते गिरते किस हद तक देखो गिर गये लोग
कासिद है किसी का और पहुंचे पैगाम किसी के


हर हाथ में है आईना तो दूजो को दिखाने की खातिर
खुद को देखे बिन बीते कितने सुबह शाम किसी के

थी प्यास समुन्द्र पीने की, दो घूँट पिला टाला तूने
 अब तुम ही कहो हम क्या माने अहसान किसी के

मयखाने तेरे में रहे तो प्यास बुझाने जाते कहाँ
क्यों जीभ फेरते होंठो पे बीते फिर  सुबह शाम किसीके

 किसको तमन्ना थी साकी तेरा मयखाना छोड़ने की
 मज़बूरी में ही ढूंढे हमने सुराही जाम किसी के

इस मयखाने में आने से कुछ भी नही होना हासिल
साकी ही प्यासा है तो क्या भर पायेगा जाम किसी के

Wednesday, March 23, 2011

बेहतर है कि तराजू ना हो दोस्ती में शामिल

ना सुख में साथ देना ना दुःख में काम आना
 कभी करना ये बहाना कभी करना वो बहाना

 बने दोस्त हो तो दोस्तों की तरह पेश आओ
 क्यों हो ऐसे पेश आते जैसे आता है जमाना

 उसे दोस्ती के काबिल मिलेगा कहाँ से कोई
देने से पेशतर जो हर वक्त चाहे पाना दिया

 दोस्ती में जो भी दिया तोल तोल कर के
 हर वक्त का तराजू नही प्यार का निभाना

 लिए बैठा खुद समुंदर की प्यास अपने दिल में
 चाहता दो बूँद  से है  प्यास दोस्त की बुझाना

बेहतर है दोस्ती में, ना रहे तराजू शामिल
हो अगर तो उसमे हरगिज पासंग नही लगाना

सदा सोचता रहा ये क्या मिला है दोस्तों से
ये हिसाब दोस्ती में नही होता है लगाना

हर बात दोस्त की तो तुझे नागवार गुजरी
वाजिब था कितना तेरा. दिल दोस्त का दुखाना

Friday, March 11, 2011

जिंदगी तुझ बिन भी गुजर सकती थी मालूम ना था

जिंदगी तुझ बिन भी गुजर सकती थी मालूम ना था
 चाहत दो शब्दों में सिमट सकती थी मालूम ना था

 हम तो बेवजह ही करते रहे रोशनी की तलाश
रात दीये के सहारे कट सकती थी मालूम ना था

 तुझ को खो कर के संभल पाना था लगता मुश्किल
 वक्त कर देगा इतना आसान ये मालूम ना था

उसको रोका नही इल्जाम ना होता सर पर
बस कि वो खुद नही पलटेगी ये मालूम ना था

बात करने से तो कहते है कि बन जाती है
बात है बिगडती भी कोई बात ये मालूम ना था

तुम भी बदले मै भी बदला साथ ही बदले हालात
पर मेरे सर रहेंगा हर इक इल्जाम ये मालूम ना था

Friday, March 4, 2011

तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

तुम चाहो तो समझ लो ये कि गया मै तुम से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

और अगर चाहो तो समझो तुम बिन रह नही सकता
जो चाहो तुम समझो मै कुछ और नही कह सकता

जी करता है कभी मै तेरे होंठ गुलाबी चुमू
कभी तुझे आगोश में लेकर बिना पीये ही झूमू

कभी लिखूं मै कोई गजल होंठो से तेरे गालों पे
या उंगली से गीत लिखूं तेरे काले बालों पे

या गदराये जिस्म के तेरे अंग अंग पे रचु कविता
 या फिर तेरी चाल में ढूँढू  बहती हुई सरिता

 इतना सुन लो और नहीं अब कर सकता इंतज़ार
 तुम चाहो तो मान लो ये कि गया मै तुम से हार

 ना जीवन में रस है कोई ना ही कोई मज़ा है
 ऐसा लगता है कि तुम बिन जीना एक सज़ा है

 सच तो ये घर तुम बिन खाली खाली लगता है
 जैसे कोई उजड़ा गुलशन पतझड़ में दिखता है

 इक तेरे आने से ही, आती है घर में बहार
 तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

रात कोई कटती है कैसे बदल बदल के करवट
 खुद ही बयाँ करेगी तुमसे बिस्तर की हर सिलवट

 याद तुम्हे करते करते आँख अगर लग जाती
 सपनों में आने से तेरे रात थोड़ी कट जाती

ती गरज है ये कि तुम बिन सूना लगता है संसार
 या चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

Thursday, March 3, 2011

प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से

आसमान छोटा पडेगा एक दिन तेरी परवाज़ को
बाहर निकल के देख पिंजरे की दरो दीवार से

कौन कहता है कि आंसू ही नसीब हैं इश्क का
 दामन भर भी सकता है खुशियों के अम्बार से

ना तो खुद तड़पो ना ही तडपाओ इन्तजार में
गर मज़ा है कुछ तो वो है असली वसले यार में

 शायद बुझती लौ की कोई आखिरी चमक है ये
 जो इश्क हमको हो चला है इक जवां दिलदार से

 हाँ छाछ के हम है जले दूध के ही जले नही
हर शै को पीना पड़ता है अब फूँक मार मार के

 पर प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
एक ही पल में पढ़ा दे सारे अक्षर प्यार के

उसके आने से महक उठता चहक उठता है घर
 कदमो में उसके रहते है सारे मौसम बहार के

Wednesday, March 2, 2011

इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई

इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई
 मरहम लगाये बिन अगर जाना था वापिस यार को

 जानता है जब मरीज़ कि मर्ज़ लाइलाज है
 बेकार है झूठी तसल्ली देना उस बीमार को

जीता जाए दिल किसीका हार कर अपना अहम्
 तो जीत से बेहतर समझ लो इस हसीन हार को

 माझी ही चाहता ना था कि पार पहुंचाता हमें
 छोड़ गया था किनारे पर ही वो पतवार को

हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम
बेवजह ही मुजरिम ना ठहरा माझी या मझधार को

साथ छोड़ने की बात करता था यार बार बार
हमने कहा 'आमीन' दिया छोड़ इस संसार को

आपका तो दावा था नया जख्म ना दोगे हमें
 किसलिए जख्मी किया फिर तुमने मेरे प्यार को

Tuesday, March 1, 2011

जब प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

प्यार नही करना है तो फिर प्यार जताती क्यों हो
 दूर दूर रहना है तो फिर पास में आती क्यों हो

 दिल से दिल ही नही मिले तो जिस्म मिलेंगे कैसे
 नहीं मिलाना दिल से दिल तो हाथ मिलाती क्यों हो

 प्यास बुझाने की तुझ में ना चाहत है ना हिम्मत
प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

 कोई आस नही होती पूरी तो घोर निराशा होती
 जब आस नही पूरी करनी तो आस बंधाती क्यों हो

 दे सकते हो कोई दवा तो आकर पूछो हाल मेरा
 दवा नही देनी तो दर्द भी याद दिलाती क्यों हो

तेरी ही जिद्द थी कि अपने जख्म दिखाऊं तुमको
 देख के जख्मो को मेरे नाहक घबराती क्यों हो

नहीं पिलानी मय तो फिर महफ़िल में बुलाना बंद करो
 दिखा दिखा जाम औ मीना हमको तरसाती क्यों हो

Monday, February 28, 2011

इन तारों को जमीं पे लेन की कोशिश भी मत करना

रही उम्मीद सारी उम्र कि इस बार जीतेंगे
मगर हर बार की तरह हैं हम इस बार भी हारे

 बताये क्या किसी को हाले दिल तुम ही बतलाओ
 किया छलनी जिन्होंने दिल वही मौजूद है सारे

 इन तारों को जमीं पे लाने की कोशिश भी मत करना
 गगन में ही चमकते अच्छे लगते चाँद और तारे

हमारे ही हुनर में थी कमी है बात इतनी सी
 तस्सली देने को कह लो कि हैं तकदीर के मारे

 यहाँ पर जीतना और हारना दोनों बेमानी है
 जो कल हारे थे अब जीते जो कल जीते थे अब हारे

 कहो जल्लाद से फंदा कसे इक बार में कस कर
 यूँ हौले हौले लटका के हमें तड़पा के ना मारे

हमारी दास्ताँ सुनने की जिद तो कर रहे हो तुम
 सुनी है आजतक जिसने गये मुहँ फेर वो सारे

 बहुत करते थे दावा आस्मां तक की बुलंदी का
जो कद नापा तो तो निकले बौने कद के यार हमारे

 हो जाए राख तो भी सब ख़त्म होता नही फौरन
 बचे रहते हैं अक्सर राख में कुछ देर अंगारे

Sunday, February 27, 2011

आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इंतज़ार

आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ
 कुछ पल तो अछे कट गए तेरे इंतज़ार में

आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इंतज़ार
 उम्र सारी काट सकता हूँ तेरे इंतज़ार में

क्या पता मजबूरियां कितनी रही होंगी तेरी
 यार यूँ ही बेवफाई क्यों करेगा यार से

 होते है शिकवे दोस्ती में प्यार में होते नहीं
इतना तो  फर्क चाहिए  दोस्ती और प्यार में

जान बूझ कर हर बाज़ी हारता चला गया 
जीत में मज़ा कहाँ जो मज़ा है यार से

हार के दोस्ती में सोचते हो पाया क्या और खोया क्या
 ये हिसाब होता नहीं यारी में और प्यार में

कौन है कैसा है और उसका मकसद है क्या
 सोचना भी जुर्म लगता है मुझे तो प्यार में

लाख हो शिकवे गिले इक पल में सब मिट जायेंगे
 आके बाहों में कभी तूं देख अपने यार के

Saturday, February 26, 2011

चाह कर भी हम उसे इस हद तक कभी ना चाह सके

चोट कोई दिल पे लग जाये या जख्मी जिस्म हो  
दर्द दोनों में ही लाजिम है बेशक अलग अलग

चाह कर भी हम उसे इस हद तक ना चाह सके कभी 
उसकी भी है  हद अलग और  मेरी भी है जिद्द अलग

वो जरूरत को  मेरी ना समझ पायेगा कभी 
सारे हैं मुझसे अलग या फिर हूँ मै सबसे अलग

 जो भी दे सकता था मैंने यार को सब कुछ दिया
 ये और बात है कि थी कुछ उसकी जरुरत अलग

 किस तरह और कब तलक वो साथ दे पाता मेरा
 उसकी थी चाहत अलग कुछ मेरी भी चाहत अलग

ये भी हुई कोई दोस्ती और ये भी कोई प्यार है
किया यार को भी शर्मसार हुए खुद भी शर्मिंदा अलग

कर के फरमाइश बता हम को क्या हासिल हुआ
 जब भी मिली ना ही मिली. शर्मिंदगी हुई अलग

एक राह  साथ चलना  ज्यादा दिन मुमकिन नही
जब तेरी भी मंज़िल अलग  मेरी भी मंजिल अलग  

Friday, February 25, 2011

क्यों होता है ऐसा ऐसा क्यों होता है

क्यों होता है ऐसा
 ऐसा क्यों होता है
 
 जरा सा देकर चाहते हैं एहसान बड़ा हो जाए
 चंद ईंटो और पत्थर से कोई ताज खडा हो जाए
 
 महबूब मिले कोई ऐसा जो हम पे प्यार लुटाये
 दोस्त मिले तो ऐसा जो हम पे जान दे जाए
 
 हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी आये चोखा
 मेरी मानो ऎसी सोच है खुद को देना धोखा
 
 जितना गुड डालोगे उतना ही तो मीठा होगा
ऐसा ही होता आया है सदा ही ऐसा होगा
 
जाने क्यों फिर फिर भी हर कोई गधा ढूंढता ऐसा
जो वजन तो पूरा ढोए लेकिन घास जरा ना  खाये

 क्यों होता है ऐसा
 ऐसा क्यों होता है

Thursday, February 24, 2011

कामयाबी की लकीरे ही ना थी मेरे हाथ पर

किसके लिए और किसलिए रोये हम रात रात भर
 तुम रही खामोश, या तेरी ही किसी बात पर

बन के बदली तुम बरस जाते तो करते शुक्रिया
 अर्ज़ करने के सिवा मेरा बस था किस बात पर

 जिन्दगी भर ही हसीनो ने दिया धोखा हमे
 अब तो भरोसा उठ चला हसीनो की जमात पर

जो मेरी लम्बी उम्र की  करते रहे दिन में  दुआ
 रचते रहें है मेरे मरने की वो साज़िश रात भर

 इससे ज्यादा क्या हमारी बेबसी होगी सनम
 हमदर्द है जिसने दिए जख्म बात बात पर

 वो तो पढ़ लेते हैं चेहरे से ही मेरे मन की बात
 पर्दा डालें कैसे हम दिल के किसी जज्बात पर

 कोशिश भी की काबिल भी थे पर ना कुछ हासिल हुआ
 कामयाबी की लकीरे ही ना थी मेरे हाथ पर

ये तो हम है हम कि जो हर हाल में ज़िंदा रहे
 वरना कई दम तोड़ गये मेरे जैसे हालात पर

 ये किताबे वो किताबे पढ़ के हमने पाया क्या
 आज भी अटके है सब रोटी के इक सवालात पर

Wednesday, February 23, 2011

यार से मतलब है हम को यार से ही वास्ता

जीने कीकुछ वजह नहीं लेकिन है ये भी सच सनम
कोई बहाना चाहिए जाने के लिए संसार से

 प्यार में तो चेहरा खुशगवार होना चाहिए
फिर तुम नज़र आते हो क्यों बेजार से बीमार से

 जिनको तलाश है वो जा के ढूंढ़ ले अपना खुदा
हमको तो गरज है सिर्फ यार के दीदार से

 उनको देखे से  था चेहरा खुशग्वार हो उठा 
  वो समझ बैठे कि हम झूठ में बीमार थे 

 थे यार से मतलब है हम को यार से ही वास्ता
 ना खुदा से लेना कुछ ना लेना कुछ घरबार से

हौले हौले परत दर परत पर्दा उठना लाजिमी था
पर यार की जिद है कि हर पर्दा उठे रफ्तार से

Thursday, February 17, 2011

सच तो ये है अपने लिए भी वक्त नही है पास किसीके

अपने लिए भी वक्त नही जब पास किसी के
क्या आएगा शख्स कोई फिर काम किसीके  

यहाँ पे तेरा दुःख बस एक कहानी है औरो के लिए
तेरे दुःख को बाँट ले ऐसा दिल ही नहीं है पास किसी के

उस हमदर्दी से  क्या हासिल से जो दर्द किसी का ना बांटे
सिर्फ दिखाने की शै बन के रह गए सब अहसास किसी के

 रिश्तों में दरार का आना अब लाजिम सा लगता है
प्यार का सीमेंट थोडा सा भी बचा नहीं है पास किसी के

नीवं का हर पत्थर अब छत पर ही  लगने को आतुर है
नीव का पत्थर कौन बने जवाब कहाँ फ़िर पास किसी के