Saturday, February 26, 2011

चाह कर भी हम उसे इस हद तक कभी ना चाह सके

चोट कोई दिल पे लग जाये या जख्मी जिस्म हो  
दर्द दोनों में ही लाजिम है बेशक अलग अलग

चाह कर भी हम उसे इस हद तक ना चाह सके कभी 
उसकी भी है  हद अलग और  मेरी भी है जिद्द अलग

वो जरूरत को  मेरी ना समझ पायेगा कभी 
सारे हैं मुझसे अलग या फिर हूँ मै सबसे अलग

 जो भी दे सकता था मैंने यार को सब कुछ दिया
 ये और बात है कि थी कुछ उसकी जरुरत अलग

 किस तरह और कब तलक वो साथ दे पाता मेरा
 उसकी थी चाहत अलग कुछ मेरी भी चाहत अलग

ये भी हुई कोई दोस्ती और ये भी कोई प्यार है
किया यार को भी शर्मसार हुए खुद भी शर्मिंदा अलग

कर के फरमाइश बता हम को क्या हासिल हुआ
 जब भी मिली ना ही मिली. शर्मिंदगी हुई अलग

एक राह  साथ चलना  ज्यादा दिन मुमकिन नही
जब तेरी भी मंज़िल अलग  मेरी भी मंजिल अलग  

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