Friday, March 4, 2011

तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

तुम चाहो तो समझ लो ये कि गया मै तुम से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

और अगर चाहो तो समझो तुम बिन रह नही सकता
जो चाहो तुम समझो मै कुछ और नही कह सकता

जी करता है कभी मै तेरे होंठ गुलाबी चुमू
कभी तुझे आगोश में लेकर बिना पीये ही झूमू

कभी लिखूं मै कोई गजल होंठो से तेरे गालों पे
या उंगली से गीत लिखूं तेरे काले बालों पे

या गदराये जिस्म के तेरे अंग अंग पे रचु कविता
 या फिर तेरी चाल में ढूँढू  बहती हुई सरिता

 इतना सुन लो और नहीं अब कर सकता इंतज़ार
 तुम चाहो तो मान लो ये कि गया मै तुम से हार

 ना जीवन में रस है कोई ना ही कोई मज़ा है
 ऐसा लगता है कि तुम बिन जीना एक सज़ा है

 सच तो ये घर तुम बिन खाली खाली लगता है
 जैसे कोई उजड़ा गुलशन पतझड़ में दिखता है

 इक तेरे आने से ही, आती है घर में बहार
 तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

रात कोई कटती है कैसे बदल बदल के करवट
 खुद ही बयाँ करेगी तुमसे बिस्तर की हर सिलवट

 याद तुम्हे करते करते आँख अगर लग जाती
 सपनों में आने से तेरे रात थोड़ी कट जाती

ती गरज है ये कि तुम बिन सूना लगता है संसार
 या चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

Thursday, March 3, 2011

प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से

आसमान छोटा पडेगा एक दिन तेरी परवाज़ को
बाहर निकल के देख पिंजरे की दरो दीवार से

कौन कहता है कि आंसू ही नसीब हैं इश्क का
 दामन भर भी सकता है खुशियों के अम्बार से

ना तो खुद तड़पो ना ही तडपाओ इन्तजार में
गर मज़ा है कुछ तो वो है असली वसले यार में

 शायद बुझती लौ की कोई आखिरी चमक है ये
 जो इश्क हमको हो चला है इक जवां दिलदार से

 हाँ छाछ के हम है जले दूध के ही जले नही
हर शै को पीना पड़ता है अब फूँक मार मार के

 पर प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
एक ही पल में पढ़ा दे सारे अक्षर प्यार के

उसके आने से महक उठता चहक उठता है घर
 कदमो में उसके रहते है सारे मौसम बहार के

Wednesday, March 2, 2011

इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई

इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई
 मरहम लगाये बिन अगर जाना था वापिस यार को

 जानता है जब मरीज़ कि मर्ज़ लाइलाज है
 बेकार है झूठी तसल्ली देना उस बीमार को

जीता जाए दिल किसीका हार कर अपना अहम्
 तो जीत से बेहतर समझ लो इस हसीन हार को

 माझी ही चाहता ना था कि पार पहुंचाता हमें
 छोड़ गया था किनारे पर ही वो पतवार को

हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम
बेवजह ही मुजरिम ना ठहरा माझी या मझधार को

साथ छोड़ने की बात करता था यार बार बार
हमने कहा 'आमीन' दिया छोड़ इस संसार को

आपका तो दावा था नया जख्म ना दोगे हमें
 किसलिए जख्मी किया फिर तुमने मेरे प्यार को

Tuesday, March 1, 2011

जब प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

प्यार नही करना है तो फिर प्यार जताती क्यों हो
 दूर दूर रहना है तो फिर पास में आती क्यों हो

 दिल से दिल ही नही मिले तो जिस्म मिलेंगे कैसे
 नहीं मिलाना दिल से दिल तो हाथ मिलाती क्यों हो

 प्यास बुझाने की तुझ में ना चाहत है ना हिम्मत
प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

 कोई आस नही होती पूरी तो घोर निराशा होती
 जब आस नही पूरी करनी तो आस बंधाती क्यों हो

 दे सकते हो कोई दवा तो आकर पूछो हाल मेरा
 दवा नही देनी तो दर्द भी याद दिलाती क्यों हो

तेरी ही जिद्द थी कि अपने जख्म दिखाऊं तुमको
 देख के जख्मो को मेरे नाहक घबराती क्यों हो

नहीं पिलानी मय तो फिर महफ़िल में बुलाना बंद करो
 दिखा दिखा जाम औ मीना हमको तरसाती क्यों हो

Monday, February 28, 2011

इन तारों को जमीं पे लेन की कोशिश भी मत करना

रही उम्मीद सारी उम्र कि इस बार जीतेंगे
मगर हर बार की तरह हैं हम इस बार भी हारे

 बताये क्या किसी को हाले दिल तुम ही बतलाओ
 किया छलनी जिन्होंने दिल वही मौजूद है सारे

 इन तारों को जमीं पे लाने की कोशिश भी मत करना
 गगन में ही चमकते अच्छे लगते चाँद और तारे

हमारे ही हुनर में थी कमी है बात इतनी सी
 तस्सली देने को कह लो कि हैं तकदीर के मारे

 यहाँ पर जीतना और हारना दोनों बेमानी है
 जो कल हारे थे अब जीते जो कल जीते थे अब हारे

 कहो जल्लाद से फंदा कसे इक बार में कस कर
 यूँ हौले हौले लटका के हमें तड़पा के ना मारे

हमारी दास्ताँ सुनने की जिद तो कर रहे हो तुम
 सुनी है आजतक जिसने गये मुहँ फेर वो सारे

 बहुत करते थे दावा आस्मां तक की बुलंदी का
जो कद नापा तो तो निकले बौने कद के यार हमारे

 हो जाए राख तो भी सब ख़त्म होता नही फौरन
 बचे रहते हैं अक्सर राख में कुछ देर अंगारे

Sunday, February 27, 2011

आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इंतज़ार

आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ
 कुछ पल तो अछे कट गए तेरे इंतज़ार में

आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इंतज़ार
 उम्र सारी काट सकता हूँ तेरे इंतज़ार में

क्या पता मजबूरियां कितनी रही होंगी तेरी
 यार यूँ ही बेवफाई क्यों करेगा यार से

 होते है शिकवे दोस्ती में प्यार में होते नहीं
इतना तो  फर्क चाहिए  दोस्ती और प्यार में

जान बूझ कर हर बाज़ी हारता चला गया 
जीत में मज़ा कहाँ जो मज़ा है यार से

हार के दोस्ती में सोचते हो पाया क्या और खोया क्या
 ये हिसाब होता नहीं यारी में और प्यार में

कौन है कैसा है और उसका मकसद है क्या
 सोचना भी जुर्म लगता है मुझे तो प्यार में

लाख हो शिकवे गिले इक पल में सब मिट जायेंगे
 आके बाहों में कभी तूं देख अपने यार के