Thursday, June 12, 2008

दिल भी दिया तो उसके बदले तोल से ज्यादा दाम लिया

सब लाख सिखाते रहे हमे काम दिमाग से लिया करो
 हम ठहरे अल्हड़ नादाँ जब लिया तो दिल से काम लिया
 प्यार मे भी व्यापार सा अब व्यवहार दिखाने लगे हैं लोग
 दिल भी दिया तो उसके बदले तोल से ज्यादा दाम लिया
 सुन लेते लोगो की अगर तो हम भी तरक्की कर जाते
रह गये पीछे क्योंकि हमने पगले दिल से काम लिया 
कोई पुकारा अल्लाह तो किसी ने रब का नाम लिया
वक्त-ए-इबादत हमने जब भी लिया तुम्हारा नाम लिया
 जिन्होने की रब की पूजा वो मरके स्वर्ग को जायेंगें
उसको स्वर्ग मिलेगा यहीं जिसने तेरा दामन थाम लिया
 साकी तेरी नजरों से अधिक मय भी नशीली क्या होगी
 हम ने देखी तेरी नजर जब औरो ने तुझ से जाम लिया
 अपनो और गैरो मे हमको फर्क नजर आया तो यही
अपनो ने जब छोड़ दिया गैरो ने बढ़ के थाम लिया
 क्या बाकी बचा इन्साफ यहाँ और कैसे मुन्सिफ बैठे है
 उसी जुर्म पे इक को सजा मिली और दूजे ने इनाम लिया
 तुम कहते अगर,हम दिल अपना, खुद टुकड़े टुकड़े कर देते
 दिल तोड़ मेरा, तुमने नाहक, क्यों अपने सर इल्जाम लिया

Wednesday, June 11, 2008

भूख इन्सान को इन्सा नही रहने देती

भूख इन्सान को इन्सा नही रहने देती
 अच्छे अच्छों को ये शैतान बना देती है
 कूड़े के ढेर मे खाने को जो कुछ ढूँढा करे
 भूख इन्साँ को , वो हैवान बना देती है
 पेट भर जाने पे भगवान नजर आता है
 खाली पेटो को ये शैतान मिला देती है
 खाली पेटो को नैतिकता का सबक दे ना कोई
 भूख इस पाठ को जड़ से ही भुला देती है
 ना कोई रिश्ता बडा है न ही कोई नाता बडा
 भूख हर रिश्ते का कद बौना दिखा देती है
 है वही शख्स बड़ा और वही शै है बडी
 वक्त पे भूख जो इन्सा की मिटा देती है

Tuesday, June 10, 2008

जाने क्यों

जाने क्यों कुकरमुत्ते की तरह
 उग आती है महत्वाकाँक्षायें
और अचानक धारण कर लेती है
रूप एक विशाल वट वृक्ष का
जो ढक लेता है सारा आकाश
उसके लिये
जो बैठा होता है इसके नीचे
उसे दिखता है तो बस ये वट वृक्ष
और मानने लगता है कि यही है दुनिया
 जाने क्योँ हमे अहसास ही नही होता
 कि पूरी नही होती किसी की भी सारी इच्छायेँ
 किसी से भी सारी अपेक्षायें
चाह कर भी अनु्त्तरित रह जाती है प्रार्थानायें
कहीं ऐसा तो नहीं हम जाते हैं
भूल जीवन का वो पहला उसूल
कि यहाँ क्रय शक्ति से अधिक कुछ नही प्राप्त होता
 चाहे कोई हंसता रहे या रोता
 जाने क्यो हम चाहने लगते है
कि कोई हमें चाहे प्यार करे ,सराहे
और पूरी करे वो हर अपेक्षा जो हमे उससे है
 पर है अक्सर भूल जाते अपनी विवशता अपनी असमर्थता
 जब हम किसीकी अपेक्षायें पूरी नही कर पाते
 जाने क्यों भूल जाते हैं
 हर नदिया समुद्र तक नही पहुँचती
 समुद्र मिलन से पहले ही हो जाती है विलुप्त
चलते चलते राह मे
एक अधूरी आस लिये पिया मिलन की
 पर जी जाती है एक पूरा जीवन जीवन
 जो जन्म और मृत्य के बीच कहलाता है सफर
 जाने क्योँ जब सान्झ लगती है ढलने
अन्धेरा लगता है रोशनी को धीरे धीरे निगलने
 रोशनी क्यों नहीं चीखती चिल्लाती
क्योँ उसे मान लेती है अपनी नियति
और कर देती है अन्धकार के आगे अनचाहा समर्पण
शायद ये सोच कि कल फिर सुबह होगी


Monday, June 9, 2008

तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नहीं

बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही
 क्यों गिला तुम से करूं कि जख्म तूने है दिये
ढूँढ कर लाये कोई वो सीना जो छलनी नही
 साफ ना कह दो तो शायद मै मना लूँ अपना मन
यूँ टालने से प्यार की कोई बात तो टलनी नहीं
 यूँ बात ना बिगाड़ ये गुडे गुडडी का खेल नहीं
इक बार जो बिगडी तो किसीसे भी संभलनी नहीं
 किस लिये बैठा रहूं दर पे तेरे मै रात दिन
हक भी जब मिलना नहीं भीख भी मिलनी नही
 तुमको भी मालूम है और मुझ को भी ये है पता
तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नही