Tuesday, June 3, 2008

काश तुम ही समझ जाती जो नही कहा है मैने

पता नही क्यों
 जम जाते है स्वर नली मे वो सारे शब्द
 जिन्हे रात भर अपने प्यार की गर्मी से
 रखता हूँ गर्म ताकि उगल सकूँ उन्हे ज्यों का त्यों
अगर और कुछ ना भी कह सकूँ तुम से
जब तुम मिलो सुबह रेलवे फाटक के उस पार
 कालिज जाते हुये
 पता नही क्यों खडा रह्ता हूँ जडवत
 घन्टो तुम्हारे इन्त्जार मे
सारी शक्ति कहाँ खो जाती है
 शरीर क्यों हो जाता हैं निढाल
 ठीक उस क्षण जब तुम आने ही वाली होती हो
लगता है कमजोर पड रही है पाँव तले की जमीन
और मै अकस्मात चल पडता हूँ वहाँ से
 बिना तुम्हे मिले बस ये सोच कर
कि कल फिर एक बार करूँगा कोशिश
वहाँ पर टिके रहने की
 उन जमे हुये शब्दो को बाहर निकाल कहने की
 पता नही क्यों
 मुझे पता है नहीं होगा कल
 कुछ भी आज से ज्यादा
 कोई अर्थ नही रखता मेरा
 आज का पक्का इरादा
 फिर तुम ही क्यों नही समझ जाती
जो नही कहा है मैने
 या क्यों नही अपने प्यार की गर्मी मिला देती मेरे प्यार की गर्मी मे
तकि उस गर्मी से पिघल सके वो शब्द
 जो जम जाते है जब भी तुम सामने होती हो
 काश तुम ही समझ जाती "वो"
जो नही कहा है मैने

तुम ही क्योँ नही समझ जाती जो नहीं कहा है मैने

पता नही क्यों जम जाते है स्वर नली मे वो सारे शब्द जिन्हे रात भर अपने प्यार की गर्मी से रखता हूँ गर्म ताकि उगल सकूँ उन्हे ज्यों का त्यों अगर और कुछ ना भी कह सकूँ तुम से जब तुम मिलो सुबह रेलवे फाटक के उस पार कालिज जाते हुये पता नही क्यों खडा रह्ता हूँ जडवत घन्टो तुम्हारे इन्त्जार मे सारी शक्ति कहाँ खो जाती है शरीर क्यों हो जाता हैं निढाल ठीक उस क्षण जब तुम आने ही वाली होती हो लगता है कमजोर पड रही है पाँव तले की जमीन और मै अकस्मात चल पडता हूँ वहाँ से बिना तुम्हे मिले बस ये सोच कर कि कल फिर एक बार करूँगा कोशिश वहाँ पर टिके रहने की उन जमे हुये शब्दो को बाहर निकालने की पता नही क्यों मुझे पता है कि नहीं होगा कुछ भी कल आज से ज्यादा फिर तुम ही क्यों नही समझ जाती जो नही कहा है मैने या क्यों नही अपने प्यार की गर्मी मिला देती मेरे प्यार की गर्मी मे तकि उस गर्मी से पिघल सके वो शब्द जो जम जाते है जब भी तुम सामने होती हो

Monday, June 2, 2008

रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे

धीरे धीरे आजकल रिश्ते सब मरने लगे
हम भी औरो की तरह तरक्की अब करने लगे
 थाली किसीकी खाली है हुआ करे किसी को क्या
 आजकल तो सब के सब अपना घर भरने लगे
 अपनो बेगानो मे फर्क अब क्या रहा सोचो जरा
 दोनो बचाने की जगह बेडा गरक करने लगे
 रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे
सारे पडोसी रात भर खर्राटे तक भरने लगे
 अपना भला बुरा लगे अब सोचने हम इस कदर
अपने हित की खातिर दुनिया का बुरा करने लगे
 मालिक का हो या गैर का बस खेत हरा चाहिये
आजकल सारे गधे चारा हरा चरने लगे
 बुद्धि मिली दिल खो गया पढलिख के इतना ही हुआ
 तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे