अपने लिए भी वक्त नही जब पास किसी के
क्या आएगा शख्स कोई फिर काम किसी के
करता है सो भरता है अब नही जरूरी दुनिया में
करता है कोई और आ जाते इल्जाम किसी पे
गिरते गिरते किस हद तक देखो गिर गये लोग
कासिद है किसी का और पहुंचे पैगाम किसी के
क्या आएगा शख्स कोई फिर काम किसी के
करता है सो भरता है अब नही जरूरी दुनिया में
करता है कोई और आ जाते इल्जाम किसी पे
गिरते गिरते किस हद तक देखो गिर गये लोग
कासिद है किसी का और पहुंचे पैगाम किसी के
हर हाथ में है आईना तो दूजो को दिखाने की खातिर 
खुद को देखे बिन बीते कितने सुबह शाम किसी के 
थी प्यास समुन्द्र पीने की, दो घूँट पिला टाला तूने
 अब तुम ही कहो हम क्या माने अहसान किसी के 
मयखाने तेरे में रहे तो प्यास बुझाने जाते कहाँ 
क्यों जीभ फेरते होंठो पे बीते फिर  सुबह शाम किसीके
 किसको तमन्ना थी साकी तेरा मयखाना छोड़ने की
 मज़बूरी में ही ढूंढे हमने सुराही जाम किसी के 
इस मयखाने में आने से कुछ भी नही होना हासिल
साकी ही प्यासा है तो क्या भर पायेगा जाम किसी के