Saturday, April 25, 2009

हवाओ का रुख क्या बदला मौसम बदल गये

हवाओ का रुख क्या बदला मौसम बदल गये
खुशिया बदल गयी सब गम भी बदल गये
 बेवफाई,बेहयायी नहीं गालियां रही अब
 ये लफ्ज तरक्की के सान्चे मे ढल गये
हम जानते है हमदम तुम झूठ कह रहे हो
फिर भी बहलाया तूने और हम बहल गये
 मजबूरीयों को मेरी तुम बहादुरी ना समझो
 छोड़ा जो हाथ सब ने तो खुद संभल गये
ये कौन सी है मन्जिल सुनसान हर डगर है
 इस राह के मुसाफिर किधर निकल गये
मन्जिल की धुन मे सब ने क्यों होश खो दिये
 कब छूट गये साथी कब रस्ते बदल गये
दिल है तो धडकेगा भी है रोकना नामुमकिन
 क्यों खफा हो जानेमन जो अरमाँ मचल गये
 हुस्न की ये गलियों फिसलन भरी थी यारो
चले लाख हम संभल के फिर भी फिसल गये

Friday, April 24, 2009

ईन्ट पत्थर की दीवारो को कहें घर कैसे

ईन्ट पत्थर की दीवारो को कहें घर कैसे
घर में अपनो को जरूरी है बसाये रखना
अब तो आ जाओ कि घर घर ना रहा तेरे बिना
 चाहो तो हम से भले दूरी बनाये रखना
आप घर मे तो नहीं दिल मे ही रहते हो सनम
 काफी है दिल मे क्या बसना या बसाये रखना
मेरी तकलीफ से तुझको कोई तकलीफ ना हो
 अपनी तकलीफें जरूरी था छिपाये रखना
उफ ये बरसात का मौसम ये टपकती हुई छत
और तेरे खत भी हैं पानी से बचाये रखना
लुटने लायक तो नही बाकी बचा कुछ घर मे
 फिर भी आदत सी है तालों का लगाये रखना
 सिर्फ सांसो से नही उम्मीद से जिन्दा है सभी
 तुम भी उम्मीद मेरी उम्मीद बनाये रखना

Thursday, April 23, 2009

है आग वासना की मौका मिलते ही वो बुझायेगा

देखते है कौन कब तक चेहरा अपना छुपायेगा
परदो मे हो इक दिन सामने आ जायेगा
 रिश्ता भी झूठा है उसका प्यार भी झूठा सनम
 जो इसे सच मान लेगा वो बहुत पछतायेगा
 ये जो प्यार प्यार रटता फिर रहा है रात दिन
 है आग वासना की मौका मिलते ही वो बुझायेगा
 रिश्ता है खुदगरजी का प्यार का बस नाम है
 रावण है साधु वेष मे सीता हरण कर जायेगा
 बेसबब भटकेगा क्यों कोई शख्स तेरी राहों मे
माल भी तो वसूलेगा जब दाम कोई चुकायेगा
 ये और बात है निशाना किसका कब लग पायेगा
 मन्जिल है सब की एक रस्ते हों भले जुदा जुदा
सीधा कोई पहुंचेगा कोई घूम के वहां आयेगा

Wednesday, April 22, 2009

आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना
दुश्मनी रोज अन्धेरों से बनाये रखना
सैकडों दीप भी कुछ कम ही नजर आते है
आन्धियों मे पडे जब दीप जलाये रखना
भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना
रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
 है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना
इतना आसा भी नही जितना समझ बैठे थे
हम इश्क की आग को इस दिल मे दबाये रखना
गैरों से राज़ छुपा कर ना समझ राज है ये
लाजिमी ये भी था अपनो से छुपाये रखना
उन्हें तुफाँ से गुजारिश नही करनी पडती
सीख लेते है जो पतवार चलाये रखना
आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे
तब घरोन्दो का नामुमकिन है बचाये रखना
कागजी फूलो पे तितली तो बुला लीजे मगर
नकली खुश्बु से नामुमकिन है रिझाये रखना
रेत से महल बनाना नहीं इतना मुशकिल
जितना मुश्किल है बने महल बचाये रखना
ना ही समझो तो है बेहतर कि ये रिश्ते क्या है
मुश्किल हो जायेगा रिश्तो का बनाये रखना

Tuesday, April 21, 2009

मोहरा सब हैं बने हुए इक दूसरे के हाथों मे

जब समुन्द्र से कोई कतरा जुदा हो जायेगा
समुन्द्र तो घटना नही कतरा फना हो जायेगा
दूर रहने से कहा मिटती हैं दिल की दूरीया
इस तरह तो फ़ासला और भी बढ जायेगा
चुप रहोगे तो मिटेगे किस तरह शिकवे गिले
बात ना करने का गिला और इक बढ जायेगा
बढ गये साधन सफ़र के मन्जिले आसाँ हुई
दिल से दिल का फासला शायद ही मिट पायेगा
जन्मो जन्म तक है चलता प्यार ये तो यूँ हुआ
धुप ना बारिश तो छाता सदियों चलता जायेगा
मोहरा सब हैं बने हुए इक दूसरे के हाथ मे
देखें कौन मोहरा पहले अपनी जान गवायेगा
इक दूसरे का इस्तेमाल करने मे माहिर है सब
इस पैतरेबाजी मे देखे कौन किसको हरायेगा
शोख तो दिखता है लेकिन कच्चा है रगे वफा
 पहली बारिश पडते ही सारा रग धुल जायेगा

Monday, April 20, 2009

जिन्दगी क्या है समझने मे गवाँ दी जिन्दगानी

बनती कहाँ है तुम बनाना चाहो जैसी जिन्दगानी
साजिशों का शिकार है बचपन बुढापा और जवानी
अन्त तो शुरूआत मे ही सोच कर चलते हैं सब
फिर उलझ जाती है आकर अन्त मे क्यों हर कहानी
क्या पता किस मोड पर आन्ख मेरी लग गयी
किरदार मनमाने हुये बदल गयी सारी कहानी
कौन जाने अब कहानी का होगा अन्जाम क्या
किरदार सारे लिख रहे अपना रोल अपनी कहानी
मै जानता हू तेरा ही किया कराया है सनम
फिर भी सुनना चाहता हूं तेरा जुर्म तेरी जबानी
परेशानियों ने जब कदम रखा घर की दहलीज पर
झाँकने खिडकी से बाहर लग गयी घर की जवानी
ये समझ वालो की नासमझी नही तो और क्या
जिन्दगी क्या है समझने मे गवाँ दी जिन्दगानी
उसकी इक इक बात पर बजती है सौ सौ तालिया
  कामयाबी खुद सिखा देती है यूँ बाते बनानी

Sunday, April 19, 2009

मौत को जालिम ना कह, है जिन्दगी ही बेवफा

मौत को जालिम ना कह, है जिन्दगी ही बेवफा
जान पहले जाती है, तब मौत आती है सदा
मौत आ सकती नहीं गर जाँ ना जाये जिस्म से
जाँ ने साथ छोड़ा तो बाहों मे मौत ने लिया
धीरे धीरे जाँ जिस्म से दूर खुद होती गयी
इल्जाम लेकिन जिन्दगी ने मौत के सर धर दिया
जाँ भी बीवी की तरह ही बेवफा सी हो गयी
जिस्म यूँ छोड़ा बीवी ने छोड़ ज्यों शौहर दिया
धूप का टुकडा कोई जब भी उतरा आसमा से
बाहे फैला के धरती ने आगोश मे अपनी लिया
ये क्या अपनापन हुआ ये क्या प्यार है भला
साथ देना तब तलक ठीक जब तक सब चला
बेवफा खुद होती है बीवी हो या फिर जिन्दगी
सौत को या मौत को बदनाम मुफ्त मे किया