Wednesday, April 22, 2009

आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना
दुश्मनी रोज अन्धेरों से बनाये रखना
सैकडों दीप भी कुछ कम ही नजर आते है
आन्धियों मे पडे जब दीप जलाये रखना
भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना
रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
 है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना
इतना आसा भी नही जितना समझ बैठे थे
हम इश्क की आग को इस दिल मे दबाये रखना
गैरों से राज़ छुपा कर ना समझ राज है ये
लाजिमी ये भी था अपनो से छुपाये रखना
उन्हें तुफाँ से गुजारिश नही करनी पडती
सीख लेते है जो पतवार चलाये रखना
आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे
तब घरोन्दो का नामुमकिन है बचाये रखना
कागजी फूलो पे तितली तो बुला लीजे मगर
नकली खुश्बु से नामुमकिन है रिझाये रखना
रेत से महल बनाना नहीं इतना मुशकिल
जितना मुश्किल है बने महल बचाये रखना
ना ही समझो तो है बेहतर कि ये रिश्ते क्या है
मुश्किल हो जायेगा रिश्तो का बनाये रखना

3 comments:

Udan Tashtari said...

भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना

-बहुत बढ़िया!!

"अर्श" said...

रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना

bahot khub kahi aapne dhero badhaayee

arsh

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया .. गजब लिखा है।