Friday, June 27, 2008

शब्द अपना अर्थ खोने लगे हैं

परिवर्तन की कैसी चली ये हवा
 शब्द अपना अर्थ खोने लगे है
 दोस्ती के नाम पर दुश्मनी निभाता है
हाल पूछने मेरा जब भी वो आता है
 जख्म देख कर मेरे हमदर्दी यूँ जताता है
 कान्टो की नोक से मरहम लगाता है
 कैसे कैसे दोस्त आज होने लगे है
 शब्द अपना अर्थ खोने लगे हैँ
 दौर है मिलावट का हर चीज मे मिलावट है
 जिन्दगी के दामन पर मौत की लिखावट है
 मरता कोई बच्चा या मरती कोई नारी है
 इन्हे क्या ये तो लाशो के व्यापारी हैं
कैसे कैसे व्यापार होने लगे हैं
 शब्द अपना अर्थ खोने लगे हैं
 धर्म के भी अब तो बदलने लगे मायने हैं
 जगह जगह धर्म की खुल गयी दुकाने हैं
आसन हैं ऊँचे इनके, उँची ऊँची बाते हैं
करना सिखाते जो खुद ये कर नहीं पाते है
 त्याग हो कि सादगी दूजे सीखे तो अच्छा है
खुद ये ठाठ बाठ का जीवन बिताते है
 कैसे कैसे धर्म गुरू होने लगे है
शब्द अपना अर्थ खोने लगे हैं
पर इससे पहले  की एक एक कर  सारे शब्द बदल जाएँ
इससे पहले की अन्धकार हर शब्द का अर्थ निगल जाए
आह्वाहन तुम्हारा करता हूँ आओ मित्रों आगे आओ
मत देखो राह पैगम्बर की तुम खुद ही अपना डीप जलाओ
और जब समाज में हर कोई यूँ अपना डीप जलाएगा
इन खोये शब्दों को आना अर्थ स्वयं मिल जाएगा


Thursday, June 26, 2008

आज तक मानी किसी की भी नहीं
 पर आज ये जिद्द तोड़ डाली जायेगी
 जायज नाजायज सोच कर क्या कीजिये
 अब बात तेरी कोई भी हम से ना टाली जायेगी
 है तमन्ना गर तेरी कि याद हम रखें तुम्हें
वादा रहा मर के भी तेरी याद ना मिट पायेगी
 दिल तो क्या आत्मा तक मे बसा डाला तुम्हें
 हर जन्म अब याद तेरी साथ मेरे जायेगी

जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लडे बिना नहीं रह सकता

ये जीवन इक समझौता है, हर रोज मुझे समझाते हो
 सच कहो तो कितने समझौते तुम खुशीखुशी कर पाते हो
 जो टीस सी दिल मे छोड़ जाये वो समर्पण है समझौता नहीं
जो चाहे नाम दो तुम इसको मुझसे तो ये सब होता नहीं
 ये जीवन है शतरंज नही यहाँ नही बराबर छूटोगे
यहाँ समझौता मुमकिन ही नहीं य हारोगे या जीतोगे
 जीत भी सच है हार भी सच है झूठ सिर्फ समझौता है
आँखे मूंदना घुटने टेकना क्या ये समझौता होता है
 जीवन है महासंग्राम यहाँ हर मोड़ पे जंग है छिड़ी हुई
लड़ना ही तेरी नियति है तुझे समझोते की क्या पड़ी हुई
 समझौते की बाते तो है सिर्फ निराशावादी करते
युद्ध शुरु होने से पहले हार को जो स्वीकार है करते
 आशा वाद तो लड़ना है जब तक जीत नही वरते
 वो क्या बाजी जीतेगे जो सदा हार से रहे है डरते
 वो लोग जो बातो बातो मे समझौता करते फिरते हैं
या तो वो हारे होते है या फिर वो हार से डरते हैं
 जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लडे बिना नही रह सकता
 इसे धर्मयुद्ध ही मान के लड़ गर हार जीत नही सह सकता