Friday, August 7, 2009

हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल


जिन्दगी ने कल हमें फिर और इक झटका दिया
वक्त ने फिर हम पे बन्द इक और दरवाजा किया

जिसकी नजरों में, तमन्ना थी कि मेरा कद बढे
उसी की नजरों में गिरा मुझ को शर्मिन्दा किया

इनायत से ज्यादा यार जब करने लगे शिकायते
 समझ लो कि यारी टूटने का वक्त आ गया

दोस्त दुश्मन दोनों का हक वक्त ने यूँ किया अदा
पहले मिलाया और फिर मिलते ही उससे जुदा किया

जिन्दगी से जब भी कुछ उम्मीद पाने की जगी
 वक्त ने लाकर हमें फिर आईना दिखला दिया

 क्या मुकद्दर है मेरा और क्या मेरी तकदीर है
सामने थाली रही और अन्दर निवाला ना गया

नाकामियां बदनामियां कुछ और दामन में जुड़ी
 जब भी कोई नाकामी कम करने का हौंसला किया

हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल
वक्त मेरे कद को किस हद तक बौना बना गया

मेरे मन दर्पण पे तूने फैंके हैं पत्थर,
 मगर टूटने से पहले उस मे अक्स तेरा समा गया

दीवानगी की देख हद खुद टूट कर भी शीशा दिल
अपने हर टुकडे मे तेरा अक्स पूरा बचा गया

Wednesday, August 5, 2009

करना है सब ने वही जो रास जिसको आयेगा

सोचते थे ये अकेलापन हमें खा जायेगा
क्या खबर थी ये अकेलापन हमें भा जायेगा
जीने को तो बिन तेरे भी जी ली हमने जिन्दगी
गम ये है कि कद तेरा बौना नजर अब आयेगा
सात जन्मों तक के रिश्ते की है करता बात क्या
इतना सोच इस जन्म तक कैसे ये निभ पायेगा
लादना अब छोड़ दे औरो पे अपनी सीख तूँ
कौन मानेगा तेरी और तुझसा कौन हो जायेगा
मन्जिलें तो मन मे सबके पहले से हैं बनी हुई
फिर तेरी खातिर कौन अपनी राह बदल पायेगा
ना प्यार ना हमदर्दी है, सब कुछ दिखावा है यहाँ
जितना जल्दी समझेगा तू उतना ही सुख पायेगा
अपने अपने तर्क सब ने गढ लिये अपने लिये
करना है सब ने वही जो रास जिसको आयेगा

Tuesday, August 4, 2009

याद करते है हम तो तुम्हें रात दिन

तेरे दिल मे भी है तेरे कदमों मे भी
जाने क्यों फिर नजर तुझ को आते नहीं
प्यार करते है जान से भी ज्यादा तुम्हें
बात इतनी है बस हम बताते नहीं
याद करते है हम तो तुम्हें रात दिन
है खता ये कि तुम को जताते नहीं
बात किससे करें कोई अपना तो हो
गैर लोगो से कुछ बतियाते नहीं
सामने किसके आयें कोई चाह्ता तो हो
बेवजह वक्त किसी पे लुटाते नहीं
सब तमाशाई बन शोर करते बहुत
खुद करके मदद क्यों बचाते नहीं
झूठी हमदर्दी है झूठा सा प्यार है
कष्ट थोड़ा भी लोग खुद उठाते नहीं
कुछ गवाना पड़े ना और सब कुछ मिले
ऐसे नाता किसी से निभाते नहीं
डूबना ही जिसे तकदीर लगने लगे
भीड़ तमाशाईयों की वो लगाते नहीं

Monday, August 3, 2009

जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लड़े बिना नहीं रह सकता

ये जीवन इक समझौता है हर बार मुझे समझाते हो
सच कहो तो कितने समझौते तुम खुशी खुशी कर पाते हो
जो टीस सी दिल में छोड़ जाये वो समर्पण है समझौता नही
जो चाहे नाम दो तुम इसको मुझसे तो ये सब होता नहीं
ये जीवन है, शतरंज नहीं, यहां नही बराबर छूटोगे
यहां समझौता मुमकिन ही नही या हारोगे या जीतोगे
जीत भी सच है हार भी सच है झूठ सिर्फ समझौता है
आन्खे मूंदना घुटने टेकना क्या ये समझौता होता है
आशावाद तो लड़ना है जब तक जीत नहीं वरते
वो क्या बाजी जीतेंगें जो सदा हार से रहे हैं डरते
वो शख्स जो बातों बातों मे समझौता करते फिरते हैं
या तो वो हारे होते हैं या फिर वो हार से डरते हैं
जीवन है महा संग्राम यहां हर मोड़ पे जंग है छिडी हुई
लड़ना ही तेरी नियति है तुझे समझौते की क्यों पड़ी हुई
जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लड़े बिना नहीं रह सकता
इसे धर्मयुद्ध ही मान के लड़ गर हार जीत नहीं सह सकता