Wednesday, January 30, 2008

मेरे मन दर्पण पे तूने फैंके हैं पत्थर

जिन्दगी ने कल हमें फिर और इक सदमा दिया वक्त ने फिर हम पे बन्द इक और दरवाजा किया जिसकी नजरों में, तमन्ना थी कि मेरा कद बढे उसकी नजरों में गिरा के मुझ को शर्मिन्दा किया दोस्त दुश्मन दोनों का हक वक्त ने यूँ अदा किया पहले मिलाया और फिर मिलते ही उससे जुदा किया जिन्दगी से जब भी कुछ उम्मीद पाने की जगी वक्त ने लाकर हमें फिर आईना दिखला दिया क्या मुकद्दर है मेरा और क्या मेरी तकदीर है सामने थाली रही और अन्दर निवाला ना गया ऐसा क्यों होता है मेरे साथ ही होता है क्यों जितना मै आगे बढा यार उतना पीछे चला गया नाकामियां बदनामियां कुछ और दामन में जुड़ी जब भी कोई दाग कम करने का हौंसला किया लोगों का कहना भला मुझको लगेगा क्यों बुरा जब मेरा जमीर ही मुझको खरी सुना गया जब इनायतों से ज्यादा यार की हों शिकायते तो समझ लो कि यारी टूटने का वक्त आ गया हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल वक्त मेरे कद को इस हद तक बौना बना गया मेरे मन दर्पण पे तूने फैंके तो हैं पत्थर, मगर टूटने से पहले उस मे अक्स तेरा समा गया दीवानगी की देख हद खुद टूट कर भी शीशा दिल अपने हर टुकडे मे तेरा अक्स पूरा बचा गया

Monday, January 28, 2008

कहने को साथी साथ है

पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता मै जब ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै