Tuesday, March 24, 2015

मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती रही ज़िंदगी

मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती रही ज़िंदगी
कभी आइस क्रीम की तरह पिघलती रही ज़िंदगी

लाख समझाया इसे पाने की उसको ज़िद ना कर
पर  इक बच्चे की तरह मचलती रही  ज़िंदगी

मंज़िल कहाँ मिलती  हर इक राह थी फिसलन भरी
हर मोड़ पे हर कदम पे फिसलती रही ज़िंदगी

कोशिश भी की काबिल भी थे पर कुछ न हासिल हो सका
जो पास था उसी से  ही बहलती रही ये  ज़िंदगी

लोग थे जाने कहाँ से कहाँ पहुँचते गए
अपने ही घर के आँगन में टहलती रही ये ज़िंदगी

लेकिन कोई तो बात है जो लाख मुश्किलो में भी
गिरती रही पड़ती रही पर सभलती  रही ये ज़िंदगी

जैसी भी थी वैसी ही है कुछ बदल पाये नही
कहने को मेरे कहने पर बदलती रही ये ज़िंदगी 

Thursday, March 19, 2015

यूँ प्यार नहीं करते मेरी मान ऐ जानेमन

उसको भी शिकायत है  हम को  भी शिकायत है
दिल माने तो क्यों माने कि दोनों में मोहब्बत है

कुछ फूल भी बोये थे मेहनत से बहुत हम ने
कांटे ही नज़र आये ,मौसम की शरारत है

मंज़िल के करीब आके यूँ राह बदल लेना
कुछ उसका मुकदर है कुछ अपनी भी किस्मत है

चाहकर भी मनचाहे रंग भर पाये नहीं हम तो
शायद तस्वीर में  कुछ पहले की कोई रंगत है

वो मुझ से करे नफरत मै  प्यार इसे मानू
कुछ सोच है ये उसकी कुछ दुनिया की फितरत है

इक बार कोई रूठे तो सो बार मनाओ उसे
हर रोज़ कोई रूठे, छोडो, उसकी ये आदत है

यूँ प्यार नहीं करते मेरी मान ऐ जानेमन
जिसमे ये लगे लगने ये कौन सी आफत है










 

Wednesday, March 18, 2015

रौशनी के लिए घर जलाएगा कौन

है बहुत प्यार तुझसे हमे  ज़िंदगी
लेकिन  नखरे तुम्हारे उठाएगा कौन

है चाहत हमे भी बहुत  रोशनी की
पर इसके लिए  घर जलाएगा कौन

 है मन में तो आता  रूठे तुझसे हम
तेरी  तरह मुझे पर मनाएगा कौन

क्या पता छोड़ कर चल तू दे कब हमे
ऐसी चाहत  गले फिर लगाएगा कौन

प्यार के नाम पर डाले बंधन हज़ार
ऐसा पट्टा गले में  डलवायेगा  कौन

जिसे अपने सिवा कुछ ना आये नज़र
उसे  अपने  ज़ख़्म फिर दिखायेगा  कौन

लूली लंगड़ी सी हम को मिली ज़िंदगी
उम्र भर इसको काँधे  उठाएगा   कौन

तेरी चाहत  पाने की थी चाहत बहुत
 तेरी मुंह मांगी कीमत चुकाएगा कौन
 

Tuesday, March 17, 2015

तुझे पाके हमने आखिर ये तो बता क्या पाया

ज़िंदगी तुझे खोने का क्यों हो गम ज़रा भी हमको
तुझे पाके हमने आखिर ये तो बता क्या पाया

 रही उम्र भर डराती मुझे बेवज़ह तू अक्सर
अब तो याद भी नहीं  है कब तुझ पे प्यार आया

ये हुआ तो तब क्या होगा वो हुआ तो तब क्या होगा
इसी सोच में ही  हमने सारा समय गवाया 

हर वक़्त की मुसीबत हर समय का रोना धोना
बेवज़ह दबाव हरदम है कब किसको रास आया
 
कभी ये भी सोच कर देख तेरे मुक़ाबिल हमने
जिसे  मौत है तू कहती क्यों हमने गले लगाया


 

Wednesday, March 11, 2015

इस जिंदगी को देखो ना किसी तरह भी सुलझी

अब अपनी हार जीत का आखिर हो कैसे फैसला
कभी तुम  ने मात खायी कभी  हम ही तुम से हार गए

कहाँ मौत में थी ताकत जो  बे वक़्त हम को मारे
ये तो ज़िंदगी के गम थे अक्सर जो हमको मार गए

है कौन सा वो इन्सा  जो ना टूटा हो कभी भी
कभी गैरो ने तोड़ा उसको कभी अपने चीर फाड़ गए

इस जिंदगी को देखो ना  किसी  तरह भी सुलझी
जितने भी फलसफे थे जब भी चले बेकार गए 

मुझे जीने के सलीके ना सिखाओ कोई यारों
अब तक जो  सीखे शायद उसी वज़ह से हार गए

एक दिन भी इसको जीते तो कुछ और बात होती
समझने समझाने में ही  हम जिंदगी गुज़ार गए

तुझे पाके आखिर हमने ऐ जिंदगी क्या पाया
मौत को तो पाके एक बार में उस पार गए
 

Tuesday, March 3, 2015

ये दुनिया है यहाँ इन्साफ एक दिन हो के रहता है

भरी दुनिया में आखिर देख लो हम हो गए तनहा
किसी को हम ने छोड़ा तो किसी ने हम को छोड़ा है

चले थे जीतने हम युद्ध सवार हो के जिस घोड़े पर
लगाई एड तो पाया कि  वो इक लंगड़ा घोडा है

हम  अपनी राह पे चलते तो पा लेते कोई मंज़िल
क्यों तुमने अपनी राहों को मेरी राहों  से जोड़ा है

ये दुनिया है यहाँ इन्साफ एक दिन हो के रहता है
किसी का मैंने  तोड़ा दिल किसी ने मेरा तोडा है

बहुत फिसलन भरी होती हैं राहें इश्क की यारों
भले ही देखने में लगता रस्ता  काफी  चौड़ा है

बड़ी  मंज़िल के अक्सर   रास्ते सीधे नही होते
सहज पाने की जिद को किसलिए नहीं तूने  छोड़ा है

क्यों अपनी बदनसीबी का खुदा को दोष देते हो
ना समझी में नसीब अपना सभी ने खुद ही फोड़ा है

गिला कैसा कि हम मुँह  मोड़ तेरे दर से उठ आये
 तूने भी  तो अपना मुँह यूँ अक्सर हम से  मोड़ा है

कोई तो बात होगी ही जो  मंजिल के करीब आके
मुसाफिर छोड़ के मंज़िल जो उलटे पाँव दौड़ा  है




Wednesday, February 18, 2015

लगता है मौसम बदलने लगा है

लगता है मौसम बदलने लगा है
चमन में नए फूल खिलने लगे हैं
कलियों पे मुस्कान आने लगी है
फूलों पे भँवरे मचलने लगे है
जो बच के निकलते थे इस राह से
वो फिर इस तरफ से निकलने लगे है

फिजा में  अजब सी इक है  ताज़गी
पौधों पे नए पत्ते निकलने लगे है
चिड़िया अब फिर से चहकने  लगी हैं
 नशेमन नए फिर से बनने लगे है
बुलबुल नए गीत गाने लगी है
नए अरमा दिल में फिर पलने लगे है

डर है तो  बस अब इसी बात का है
कुछ सैयाद इस और चलने लगे है
हो सके तो चमन को अब इन से बचाओ
हिम्मत करो और इन को भगाओ

नशेमन तेरा अब उजड़ने ना पाये
जो बिजली गिराये तुम उन को गिराऔ
 है काफी दिया एक  यहाँ रोशनी को
उजाले की खातिर क्यों घर को जलाओ 

Monday, February 16, 2015

हालात बदलने से हर बात बदलती है


हालात बदलने से हर बात बदलती है

इल्जाम लगाता है तू मुझ पे बदल जाने का
ऐ दोस्त मै कहता हूँ ये  बेवज़ह शिकायत है
सर्दी गरमी वर्षा बसंत अक्सर ही बदलते है
मौसम का बदल जाना कुदरत की इनायत है
मौसम का  बदलने से सब कुछ है बदल जाता
कुछ दिन भी बदलता हैं कुछ रात बदलती है
हालात बदलने से हर बात बदलती है

ना याद दिला मुझ को उन कसमों की वायदों की
बीते हुए लम्हो की गुजरी हुई रातो की
कल चांदनी थी हर सू और आज है धूप खिली
कल खुश था कि तू है मिली अब सोचूँ तू क्यों मिली
कभी  धूप बदलती है कभी  बरसात बदलती है
हालात बदलने  से हर बात बदलती है

खुदगर्ज़ किसी ने कहा तो कोई बोला कि हूँ बेवफा
हालात बदल गए है इक मै ही  नही बदला
क्या चीज़ है दुनिया में जो नही बदलती है
जब वक्त बदलता है तो कायनात बदलती है
हालत बदलने से हर बात बदलती है

इक दूजे से हर कोई इस तरह से है यूँ जुड़ा
इस और जो बदला कुछ  उस और भी बदलेगा
जब दूल्हा बदलता है तो बारात बदलती है
दुल्हन के बदलने से  सौगात बदलती है
तुझे कड़वा लगे या ना लेकिन ये तो सच है
भिखारी के बदलने से खैरात बदलती है
हालत बदलने से हर बात बदलती है



 

Friday, February 6, 2015

कीमत लगा के प्यार का पाना कोई पाना है

मतलब से  रिश्ता रखना क्या रिश्ता बनाना है
मज़बूरी में साथ आना क्या रिश्ते निभाना है

पहले लगना ज़ख़्म और फिर हाल पूछना
ये नमक छिड़कना है या फिर मरहम लगाना है

प्यार ही नही बचा तो  रिश्ते में बचा क्या
ये तो रिश्ते की लाश को बस ढोते जाना है

कभी खुद भी शीशा देख और चेहरे को साफ़ कर
या तेरा  काम बस औरो  को  शीशा  दिखाना है

तेरी ये ज़िद है  अपनी ज़रूरत कहूँ तुझसे
पर मेरी फितरत खुद से भी खुद को  छुपाना है

देना तो वो है दे सको जो  तुम खुशी खुशी
इक मोड़ पर  तो सब को सब कुछ ही गवाना है

दिल में तराज़ू रख के कुछ दे भी दिया तो क्या
तोल  मोल कर प्यार क्या करना कराना है

किसी और की भी सोच अपनी ही सोच ना
तरक्की की राह पे अगर  तुझे  दूर जाना है

गर हो सके तो दिल में  गुजांइश कुछ पैदा कर
वरना इक दिन  तेरा साथ सब ने छोड़ जाना है

किस किस का साथ छूटेगा तेरे साथ के लिए
अपनी है ज़िद  तेरा साथ तो फिर भी निभाना है

क्यों जाल बिछाये कोई  उस पंछी के लिए
जिसकी आदत ही जाल में खुद को फंसाना है
 

सपनों की वैलेन्टाईन बनो

 प्यार रिश्तों में इस तरह  बसाया नही जाता 
 कागज के फूलों को  इत्र से  महकाया नही जाता

महक तो, फूलों में, होनी चाहिए   जन्मजात से 
जबरन महक को, फूलो मे बसाया नही जाता

बस 'प्यार' के रिश्ते में ही कुछ प्यार होता है
वरना प्यार रिश्तों में अब  पाया नहीं जाता

दिल मे स्वत: झरने सा फूटे जी हाँ वो ही प्यार है
बाकी या तो बातें हैं या मतलब का व्यापार है

व्यापारियों की दुनिया में क्या प्यार ढूंढना
चीलों के घोंसले में मांस पाया नही जाता

देखो तो चल रहा आजकल एक अज़ब  दौर है
जब 'वो' नही  बाहों में तो बाहों में कोई और है

पर हम हैं अलग दौर के ये तुम्हे नहीं पता
आने वाले दिन सभी तेरे मेरे होंगें गवाह

 तुम जो चाहे समझो  लेकिन वैसे हम हर्गिज नहीं
 कि 'तूँ नहीं तो और सही और नहीं और सही
'
प्यार जब तुमसे हुआ है तो प्यार तुम से ही करेंगे
अब तक जिये अपने लिये पर अब तेरे लिये जियेंगे

हाँ ये बात और है इजहारे इश्क करने की
जो पहले भूल हो गयी वो भूल अब नहीं करेंगे

पर अपने दिल के साथ भी धोखा हम नहीं करेंगे
इजहार-ए-प्यार हो ना हो प्यार तुमसे ही करेंगे

इस तरह ठिठको ना तुम ना ही कुछ हमसे  डरो
हम ना कहेंगे कि  तुम भी प्यार हम से ही करो

इतना भी कुछ कम नहीं मेरे जीने के लिये
सपनों की वैलेन्टाइन बन हमे को प्यार करने दो

Friday, January 16, 2015

इस तरह रो के मुझे कोई रुलाता क्यों है

इस तरह रो के मुझे कोई रुलाता क्यों है
सर्द रातों में मुझे बेवजह  जगाता  क्यों है

ना तेरे दिल में गुंजाइश है ना तेरे प्यार में दम
बेवज़ह दिल में कोई उम्मीद जगाता क्यों है

मैंने सोचा था तेरे आने से आयेगी बहार
आके  आँगन में कोई कांटे बिछाता क्यों है

जिंदगी फिर से इक  करवट थी लगी लेने अभी
 उसे  बिस्तर से  कोई नीचे गिराता क्यों है

तेरे आँचल में  तो भर सकता हूँ हीरे मोती
चाँद सिक्के मेरी नज़रो से चुराता क्यों है