Wednesday, March 11, 2015

इस जिंदगी को देखो ना किसी तरह भी सुलझी

अब अपनी हार जीत का आखिर हो कैसे फैसला
कभी तुम  ने मात खायी कभी  हम ही तुम से हार गए

कहाँ मौत में थी ताकत जो  बे वक़्त हम को मारे
ये तो ज़िंदगी के गम थे अक्सर जो हमको मार गए

है कौन सा वो इन्सा  जो ना टूटा हो कभी भी
कभी गैरो ने तोड़ा उसको कभी अपने चीर फाड़ गए

इस जिंदगी को देखो ना  किसी  तरह भी सुलझी
जितने भी फलसफे थे जब भी चले बेकार गए 

मुझे जीने के सलीके ना सिखाओ कोई यारों
अब तक जो  सीखे शायद उसी वज़ह से हार गए

एक दिन भी इसको जीते तो कुछ और बात होती
समझने समझाने में ही  हम जिंदगी गुज़ार गए

तुझे पाके आखिर हमने ऐ जिंदगी क्या पाया
मौत को तो पाके एक बार में उस पार गए
 

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