Friday, February 12, 2010

हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शवाव पे है

माना ये कि पास में उसके दौलत-ऐ हुस्न अपार है
 पर काम किसी के ना आये तो सब दौलत बेकार है

हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शबाब पे
 हम है किस गिनती में उसके चाहने वाले हजार है

 छूने से उसको डरते है मर ही ना हम जाए कहीं
जब  देखने भर से ही चढ़ता   इश्क का बुखार है

 कोई नजरो से  घायल है  तो कोई मर मिटा मुस्कान पे
 सुना है कब्रिस्तान तक  अब जनाजो की  कतार है

 बरसों नही तो गरजो ही सावन का कुछ अहसास  हो
खाली बदली का छा जाना  सावन में बेकार है

 ज्येष्ठ और आषाढ़ के सूखे को  वर्षों झेला है
क्या गलत है सावन जो तुझसे बारिश की दरकार है

तन से उसका मन है सुंदर मन से सुंदर उसका तन
कौन क्या उस लेता है उससे  अपना अपना विचार है

 वो  चाँद से सुंदर है  लेकिन उससे  हासिल क्या हुआ
मेरे घर तो  पहले सा अन्धेरा बरकरार है

 किसी के अंगना चाँद उतरे मुझको इससे गिला नही
  मेरे घर भी  दिया जले बस इसका  इन्तजार है

Wednesday, February 10, 2010

किसी ने हमसे प्यार किया हो ऐसा पहली बार हुआ है

देर से ही पर खुदा मेहरबां हम पे बहुत  इस बार हुआ है
 दुनिया में जो सब से हसी है उसको हमसे प्यार हुआ है

 तानो या उल्हानो से तो झोली अपनी भरी रही
 किसी ने उस में प्यार भरा हो ऐसा पहली बार हुआ है

जख्म दिए हो किसी ने हमको ऐसा सारी उम्र हुआ है
 पर मरहम ले कोई घर आया ऐसा पहली बार हुआ है

सपनों को बनते और टूटते कौनसी  रात नही देखा
अब जाकर अपना सपना मुश्किल से साकार हुआ है

पास में रहकर भी मेरे दिल से सब  अक्सर दूर रहे
 दूर में रह कर दिल के पास हो ऐसा पहली वार हुआ है

 किसी ने हम को वुक्के दिए हों ऐसा अक्सर ही होता था
 पर हमने किसी को फूल दिया ऐसा पहली बार हुआ है

हमने किसी से प्यार किया शायद पहले भी ये हुआ
पर  हमसे किसीने प्यार किया हो ऐसा पहली बार हुआ है

तो फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में

वापिस लौट जा ऐ राही या राह बदल ले फिर कोई
 शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में

 तेरा मिलना तय था बेशक जीवन के इस सफर में लेकिन
तेरा बिछुड़ना सोचा तक नही हमने जाने अनजाने में

कुछ भी मुमकिन नजर तुझे नही आता अपनी कहानी में
 पर कुछ भी नामुमकिन सा नही ऐ दोस्त मेरे अफसाने में

रंग रूप  धन दौलत यौवन फर्क ये सब मिट सकते हैं
 पर फर्क उम्र का मिट नहीं पाना तेरे मेरे मिटाने से

फूल से ज्यादा हमको फूल की महक सुहानी लगती है
फूल कहाँ अच्छा लगता है खिलता हुआ वीराने में

तेरे गोरे बदन से ज्यादा  मन में तेरे  ना झाँका  तो
फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में

मंजिल बदल नही सकते तो आ राहों को बदले हम
हमसफर रहो तुम राहो में तो मजा है चलते जाने में

मंजिल पे हो या राह  में  हो  मतलब तो तेरे साथ से है
तुम साथ रहो तो फर्क नहीं मंजिल खोने या पाने में

बात वही होती  है तो फिर फर्क क्यों इतना होता है
खुद वही बात समझने में और औरो को समझाने में

Tuesday, February 9, 2010

लगी हाथ अपने है प्यार की इक किताब अभी अभी


अब देखिये क्या रंग दिखाता है रेड रोज़
उन्हें आज हमने दिया है इक गुलाब अभी अभी

उस फूल में भी दिल मेरा आये उसे नजर
दिल के लहू से है रंगा गुलाब अभी अभी

 ता उम्र बदली करवटे ना नींद थी ना ख़्वाब था
 लगी आँख तो दिखा है उसका ख़्वाब अभी अभी

ता उम्र मिले जख्म तो अब जा के तुम मिली
खुदा ने किया चुकता मेरा हिसाब अभी अभी

बनके सवाल वो सारी उम्र  उलझाता रहा मुझे
मिलने से तेरे मिल गया वो जवाब अभी अभी

 समझेगे अब  है प्यार क्या होती है क्या वफा
लगी हाथ अपने है प्यार की किताब अभी अभी