Tuesday, August 11, 2009

कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था

फूल कम कान्टे ज्यादा गुलशन रहे किस काम के
खुशबु नहीं रंगत नहीं खिले फूल भी तो नाम के
चाह्त नहीं वफा नहीं रिश्तों मे बाकी क्या बचा
अब तो रिश्ते रह गये हैं सिर्फ नाम ही नाम के
हर शख्स ही बिकाऊ है इस दुनिया के बाजार मे
फर्क बस इतना है कौन बिकता है किस दाम पे
मह्फिल मे आ गये हो तो प्यासा ना वापिस जाईये
दो घूंट मुंह मे डाल लो, ना पी सको गर जाम से
जाने अभी ये दौर और क्या क्या दिखलाये हमे
क्या अभी से बैठना अपना कलेजा थाम के
इन नाम वाले लोगो को देखा है जब भी करीब से
अच्छे नजर आने लगे वो लोग जो बदनाम थे
किन उजालों की तमन्ना कर रहा है इन से तूँ
ये सुबह के सूरज नहीं ये हैं ढलते सूरज शाम के
मालूम है कि"ना" ही "ना" हर लफ्ज मे लिखेगा तूँ
बिन लिफाफा खोले वाकिफ हैं तेरे पैगाम से
कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था
गम ये है सब बिक गया बिन मोल के बिन दाम के

Monday, August 10, 2009

कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था

खिलने को तो चमन मे खिलते है फूल इससे क्या
खुशबू नहीं रंगत नहीं खिले फूल फिर किस काम के
चाह्त नहीं वफा नहीं रिश्तों मे बाकी क्या बचा
अब तो रिश्ते रह गये हैं सिर्फ नाम ही नाम के
हर शख्स ही बिकाऊ है इस दुनिया के बाजार मे
फर्क बस इतना है कौन बिकता है किस दाम पे
मह्फिल मे आ गये हैं तो प्यासा ना रख साकी हमें
दो घूंट मुंह मे डाल दे, ना पिला सके गर जाम से
जाने अभी ये दौर और क्या क्या दिखलाये हमे
क्या अभी से बैठना अपना कलेजा थाम के
इन नाम वाले लोगो को देखा है जब भी करीब से
अच्छे नजर आने लगे वो लोग जो बदनाम थे
किन उजालों की तमन्ना कर रहा है इन से तूँ
ये सुबह के सूरज नहीं ये हैं ढलते सूरज शाम के
मालूम है कि"ना" ही "ना" हर लफ्ज मे लिखेगा तूँ
बिन लिफाफा खोले वाकिफ हैं तेरे पैगाम से
कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था
गम ये है सब बिक गया बिन मोल के बिन दाम के