Saturday, March 22, 2008

जिसको भी देखा मुस्का के उसको ही घायल कर डाला

तेरी गर्दन एक सुराही है तेरे होंठ है इक मय का प्याला
 तेरे नयन हैं मय का स्त्रोत प्रिय तेरा स्पर्श बनाये मतवाला
 जिसको भी देखा मुस्काके उसको ही घायल कर डाला
अब जाने खुदा या तू ही बता तूँ बला है या फिर है बाला
 ये मय है या अमरत्व टपकता है तेरे इक इक अंग से
कभी लगे कि जिन्दा मार दिया कभी लगे अमर है कर डाला
 किस किस अंग की तारीफ करू है नशा तेरे इक इक अंग में
 तेरी चाल करे बेहाल चले तू इस ढंग से या उस ढंग से
 कुछ होश नही रहता मुझको जब होता हूँ तेरे संग में
मुझ को तो नशीली लगती हो देखा तुमको जिस भी रंग में
 कभी लगे तुँ एक सुराही है कभी लगे तूँ है मय का प्याला
 कभी मुझ को नजर आती है तूँ सारी की सारी मधुशाला
 जो भी है लेकिन ये तय है कि अब ये तेरा मतवाला
 तेरी मह्फिल से प्यासा ही नहीं लौट के अब जाने वाला
 मै कई वर्षों का प्यासा हूँ नही पीना इक दो जाम प्रिय
सारी की सारी मधुशाला तुम कर दो मेरे नाम प्रिय
 ता उम्र जो प्यासा बैठा रहा उसे कुछ तो मिले ईनाम प्रिय
 फिर उसके बाद चाहे तो खुदा बेशक कर दे मेरी शाम प्रिय
 अन्जाम-ए-सफर इससे बेहतर क्या देखा फरिश्तों ने होगा
 दम निकलेगा तेरी बाहों मे होंठों पे होगा तेरा नाम प्रिय

Friday, March 21, 2008

क्यों अपने रंग रूप का ,इतना तुझे गरूर है

क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है
  है अब जवानी की दोपहरी तो सान्झ कितनी दूर है
 इक बार सांझ हो गई तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूँ करना यत्न ये बात ना रह पायेगी
 आँखों से कुछ दिखना नहीं फिर नैन लडने किस से है
 मुँह में दाँत ही ना होंगें तो हंसके किसको दिखायेगी
 बाल सब सफेद होंगे शायद झडने भी लगेंगे
फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलायेगी
 ना उमंग कोई मन में होगी ना कशिश तेरे तन में होगी
 किस से फिर होगा मिलन तू किस से मिलने जायेगी
 इस लिये कहता हू मेरी मान कल पे टाल मत
ढूंढ हर जवाब मुझ में कर खुद से तू सवाल मत
 जो मिला है आज वक्त हर रोज मिल पाता नहीं
कल का क्या है ये कभी आता कभी आता नहीं
 कुदरत की दी सौगात का कर पूरा इस्तेमाल तू
यू भी ढल ही जायेगा हुस्न कितना भी संभाल तू
 चाहने वालों की चाहत जो कोई ठुकराता है
 ता उम्र चाहत के लिये फिर खुद भी तरस जाता है

Wednesday, March 19, 2008

जितनी भी होनी थी होली तुम संग होली होली

कभी खेला करते थे होली हम जिद्द करके सब से
जबसे हुआ बदरंग ये जीवन छुए नही रंग तब से
 यूँ तो होली खेलने साथी अब भी आ जाते हैं
 पर जीवन हो बदरंग तो फिर रंग कहां कोई भाते है
 तुमने 'जानू' कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला
 रंगहीन जीवन में मेरे फिर से रंग भर डाला
 फिर से जगा दी सोई उमंगे तुमने बन हमजोली
मन मे हुडदंग मचा रही है अरमानो की टोली
 तुमने हम पे रंग डाल के कर तो दी शुरूआत
 अब देखना किन किन रंगो की होगी तुम पर बरसात
अंग अंग भीगे ना जब तक तब तक होगी होली
 अब ना बचेगी तेरी चुनरिया अब ना बचेगी चोली
 डरते डरते चुटकी भर रंग इक दुजे को लगाना
 मै ना मानू इस को होली मै ठहरा दिवाना
बस माथे गुलाल का टीका ये भी हुई कोई होली
ना रंगो से रंगी चुनरिया ना ही भीगी चोली
 होली मे भी सीमाओ का क्यो रखना अहसास
 भूखा ही मरना है तो फिर तोडना क्यों उपवास
 खेलनी है तो जम कर खेलो मस्ती भरी ये होली
 मातम की तरह ना मनाओ होली मेरे हमजोली
 होली को होली सा खेलो या रहने दो हमजोली
 जितनी भी होनी थी होली तुम संग होली होली

Tuesday, March 18, 2008

अपने समुन्दर होने पे होगा तू इक दिन शर्मसार

तुम से मिल के जिन्दगी,सोचा था,संवर जायेगी
क्या खबर थी बात पहले से भी बिगड़ जायेगी

 हम तो वीराने में अपने आदतन खुश रह रहे थे था
 क्या पता गुलशन मे तेरे ये खुशी भी जायेगी

 फूलों का हकदार बनाना तो नामुमकिन ही था
 तूँ हमको फूलों की महक का हक भी ना दे पायेगी

 दिल कहां लगता है ऐसे गुलशन में तूँ खुद बता
गुल पे हक किसी और का,माली तूँ मुझको बनायेगी

 ना सही असली कुछ नकली महक तो तूँ डालती
 इन कागजी फूलों पे कब तक भंवरे को उलझायेगी

 समुन्दर के पानी की तरह हुस्न की मालिक हो तुम
 दो बून्द भी जिसकी किसी प्यासे के काम ना आयेगी

 अपने समुन्दर होने पे होगी तूँ उस दिन शर्मसार
प्यासे की प्यास ओस की बून्दों से जब बुझ जायेगी

Monday, March 17, 2008

तूँ नहीं गर लाश तो कन्धो पे क्यों सवार है

इक दिया बुझ जाये तो दूजा जलाना चाहिये
हर हाल अन्धेरा तुम्हे मन से भगाना चाहिये
 तूँ खुशनसीब है तुम्हे जो छोड गया बेवफा
वैसे तो बेवफा से खुद पीछा छुडाना चाहिये
 जुल्म करके तुम पे, कोई खुश रहे, होने ना दे
कोई सबक तो तुम्हे उसको सिखाना चाहिये
 तूँ मेरा साथ दे ना दे लेकिन मै साथ हूं तेरे
 इक इशारा तेरा मुझ तक पहुंच जाना चाहिये
 मजिल अलग रस्ते जुदा पर ऐसा कुछ करे खुदा
 हर मोड़ पे तेरा मेरा, रस्ता मिल जाना चाहिये
 मन्जिल या रस्ता हो कोई बस तूँ हो मेरा हमसफर
इस नामुमिकन को तुझे मुमकिन बनाना चाहिये
 गर तूँ नहीं है लाश तो कन्धो पे क्यों सवार है
अपना बोझ अपने ही, पैरों पे आना चाहिये