Saturday, April 10, 2010

परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करे

क्यों नही समझता तू दर्द को मेरे कभी
क्यों समझता है कि मेरे सीने मे कोई दिल नहीं
क्यों मरा कैसे मरा चाहे जिस पे इल्जाम दे
पर सच बता हमदम मेरे क्या तू मेरा कातिल नहीं
खुद खुशी पाई ना आंचल तेरे खुशियां भर सका
बेमेल प्यार से किसी को कुछ हुआ हासिल नहीं
परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करें
शमा तो परवाने की हुई कैसे भी कातिल नहीं
तेरे चाहने वालो की कतार हो पर ऐसा भी हो
तू जिसे चाहे सिवा मेरे कोई शामिल नहीं
बजता नहीं सुर से तो कोई और साज थाम ले
यूं साज ए दिल का तार तार तोडना कोई हल नहीं
हौले हौले यादे खुद दिल मे वो इतनी भर गया
अब शिकायत उसको मै क्यों भूलता इक पल नहीं

Thursday, April 8, 2010

ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को

या तो वक्त से कहो रोके अपनी रफ्तार को
या मना लाये वो जाके रूठे हुये यार को
हर सांस पे लगता है ये अब थमी कि तब थमी
ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को
या तो खुद आओ या सांसो से कहो कि आये ना
कोई तो राहत मिले इस इश्क के बीमार को
और दर्द और जख्म हमको वो हर शख्स दे गया
जान के राहत ए मरहम अपनाया निसके प्यार को
कडवा हुआ लेकिन चलो ये भी तजुरबा हो गया
क्या सिला मिलता है इस जहा मे सच्चे प्यार को
खुद ही अपना सिर कत्लगाह जाके हमने रख दिया
अब दोष क्या देना नाहक कातिल को या तलवार को
ना बचा अहसास ना विश्वास तो फिर क्या बचा
छाती से क्यों चिपकाये रखें फिर मरे हुये प्यार को

Tuesday, April 6, 2010

यार जब दिल मे कोई बस जाये तो क्या कीजीये

यार जब दिल मे कोई बस जाये तो क्या कीजीये
दिन रात वो ही याद जब आये तो क्या कीजीये
लोग माहिर हैं भुला देने मे अपने प्यार को
हम से इस तरह ना भूला जाए तो क्या कीजीये
दिल दिया है उसको तो हम जान भी देंगे उसे
इन्तजार उससे ना हो पाये तो क्या कीजीये
धीरे धीरे प्यार दिल मे खुद ही तो उसने भरा
उनके बिंन अब रहा ना जाये तो क्या कीजीये
जो ना हो सकती था हम वो बात करने चल पडे
वो बात अब हमसे नही बन पाए तो क्या कीजीये
कहने को कह्ते है वो ये विश्वास है हम पे बहुत
हर बात पे करते हैं शक तुम ही कहो क्या कीजीये