Saturday, April 10, 2010

परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करे

क्यों नही समझता तू दर्द को मेरे कभी
क्यों समझता है कि मेरे सीने मे कोई दिल नहीं
क्यों मरा कैसे मरा चाहे जिस पे इल्जाम दे
पर सच बता हमदम मेरे क्या तू मेरा कातिल नहीं
खुद खुशी पाई ना आंचल तेरे खुशियां भर सका
बेमेल प्यार से किसी को कुछ हुआ हासिल नहीं
परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करें
शमा तो परवाने की हुई कैसे भी कातिल नहीं
तेरे चाहने वालो की कतार हो पर ऐसा भी हो
तू जिसे चाहे सिवा मेरे कोई शामिल नहीं
बजता नहीं सुर से तो कोई और साज थाम ले
यूं साज ए दिल का तार तार तोडना कोई हल नहीं
हौले हौले यादे खुद दिल मे वो इतनी भर गया
अब शिकायत उसको मै क्यों भूलता इक पल नहीं