Friday, April 25, 2008

आये अकेले, रहे अकेले, और आज अकेले लौट चले

अपनी तो इतनी चाहत थी कि मुझ को भी कोई चाह मिले
मंजिल मिले ,मिले ना मिले, बस चलने को कोई राह मिले
ता उम्र तलाश ही करते रहे, कोई साथी ऐसा मिल जाये
 कोई और चले ना चले संग में पर वो साथी तो साथ चले
 लेकिन मीलों आगे पीछे नहीं कोई दिखाई पड़ता है
 किससे कहूँ कि हाथ थाम ले किससे कहूँ कि साथ चले
 आये अकेले, रहे अकेले , और आज अकेले लौट चले
 दो कदम भी साथ ना देपाये अबतक जितने भी साथ मिले
 अन्त समय क्या भीड़ इकठठी कर के हासिल होना है
दो चार कदम भी क्यों कोई मेरी अर्थी के साथ चले
 सारी उम्र तो एक भी कन्धा नहीं मिला सिर रखने को
आखिरी वक्त फिर क्यों हम को इतने कन्धों का साथ मिले
 अपने अपने घर में रह कर मुझे अलविदा कह देना
 अब ये क्या अच्छा लगता है कि अर्थी संग बारात चले
 सब को अपनी पड़ी रही , सब अपने मे ही मस्त रहे
अब चलते हुये तेरे आंसुऔं की क्यों मुझको सौगात मिले
 ता उम्र अकेले गुजरी है तो दफन के वक्त भी धयान रहे
मेरे साथ में कोई कब्र ना हो, ना पास में कब्रिस्तान मिले

दिशाहीन सम्बन्धो को चलो कोई दिशा दी जाये

दिशाहीन सम्बन्धों को चलो कोई दिशा दी जाये
चारों दिशाएं खुली हैं तुम जिस और कहो ले जायें
 ये ना कहो कि वक्त पे छोड़ो जिधर बहेंगीं हवांए
 अपने आप ही चलने लगेंगी उसी ओर नौकांए
 हवा का क्या है ये तो अपना पलपल रुख बदलेगी
ऐसे में तो कभी इधर कभी उधर नाव चल देगी
 तुम ही कहो किस तरह से फिर मिलना है हमें किनारा
मिला भी तो किस काम का, जब ये जन्म बीत गया सारा
 मत खोलो तुम पाल, ना हों, जब तक अनूकूल हवायें
 पर इतना तो तय हो , कि हम कौन दिशा अपनाये
 धरे हाथ पे हाथ बैठना वक्त का बस करना इन्तज़ार
ये तो समझो लड़ने से फिर पहले ही गये बाज़ी हार
 हाथ में हो पतवार और मन मे हो थोड़ी हिम्मत
जो भी मंजिल फिर चाहो, कश्ती खुद तुम को पहुंचाए

Wednesday, April 23, 2008

अब बता इस राह मे अपना तूँ क्या गवाँयेगी

अपनी हर इक बात पे जो तूँ इस तरह अड़ जायेगी
बिगड़ी हूई फिर बात कोई किस तरह बन पायेगी
 खोल दे किवाड़ या फिर खोल दे खिड़की कोई
 वरना सारे घर मे ही बेहद घुटन हो जायेगी
 धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
 प्यार के इन फूलों को तूँ किताबों में ना दे सूखने
 रंग़ शायद बच भी जाये पर महक उड जायेगी
 मेह्न्दी हाथो मे लगा हर खवाब अपना तूँ पूरा कर
 ज्यादा दिन तक हाथ खाली कैसे तूँ रख पायेगी
 जिन्दगी के सफर मे कहीँ रुक के डेरा भी डाल ले
वरना सारी जिन्दगी इक तलाश बन रह जायेगी
 मै तो गँवांने के लिये अपनी जान तक तैयार हूँ
अब बता इस राह में तूँ क्या अपना गंवायेगी
 दस्तक भी कितनी देर तक देगा कोई दर पे तेरे
अन्दर से उसको जब कोई आवाज तक ना आयेगी

Tuesday, April 22, 2008

तेरा नाम मरते दम मेरे लब पे आना है जरूर

अब इतना भी ना कीजीये, अपने हुस्न पे गरूर
चन्द हुस्न वाले हम पे भी थोड़ा तो मरते है हजूर

 महफिल में अपनी तारीफ से,इतना ना इतराईये
 कुछ लोग आईना जेब में, लेके चलते है हजूर

 करने को मुझको आपने, बेआबरू तो कर दिया
मेरे कसूर में मगर, शामिल था तेरा भी कसूर

 तुम्हे छोड़ इस जहाँ से रुखसत कैसे होगे क्या पता
 हर बार पलट आया, जब भी, दो कदम गया हूँ दूर

 आसमाँ पे चलने को, पाँव उठाना ये सोच कर
पैरों तले से जमीन भी, खिसक जाती है हजूर

 सब समझ जायेंगे मुझको किससे कितना प्यार था
 तेरा नाम मरते दम मेरे, लब पे आना है जरूर

Monday, April 21, 2008

प्यार इक तरफा कब तक करेंगें भला

प्यार इकतरफा कब तक करेंगें भला
प्यार वो भी तो आके जतायें हमे
 करना है तो करें कोई हम पे करम
 झूठे वादों से वो ना बहलायें हमें
 हमको मालूम है,जब कहानी का अन्त
 झूठे सपने कोई क्यों दिखाये हमें
 प्यार करने को जो मन नहीं,ना सही
झूठी मजबूरीयां ना बताये हमें
 दिल से लिखी है मैने कविता तो फिर
 उसपे कुछ तो असर नजर आये हमें
 या कहे बात मेरी समझ सब गया
या कैसी लिखूँ गजल समझाये हमें
 है कसम अब कविता ना लिखेंगें हम
 जबतक 'वो' लिखने को कह ना जाये हमें

ये राह बनी नही उनके लिये जो बीच राह घबरा जाये

मन्जिल है मेरी फूलों से भरी केवल राहें वीराना हैं
चल साथ जो तूँ भी मेरी तरह बस मन्जिल का दिवाना है
 कोई फूल ना खुशबू राहों में कांटो से भी बच कर जाना है
 कुछ कष्ट तो पाना ही होगा मन्जिल का जो लुत्फ उठाना है
 चाहो तो लौट जाओ अब भी कुछ दूर नही ज्यादा आये
ये राह बनी नहीं उनके लिये जो बीच राह घबरा जाये
 तूँ लौट गया तो कया शिकवा जब वो साथी भी लौट गया
 जिसकी थी कसम कि जीवन भर हर हाल मे साथ निभाना है
 तेरा साथ मिले तो बेहतर है पर बीच राह मत लौट आना हैं
 पहले ही दिल में जख्म बहुत कोई नया जख्म नहीं दे जाना
 मै तन्हा भला लेकिन बेवफा साथी मुझको मन्जूर नहीं
 तय सफर अकेला कर ना सकूँ हुआ इतना भी मज़बूर नहीं

Sunday, April 20, 2008

कौन चाहता है किसी को सिर्फ चाहने के लिये

देने को तो जान तक दे दूँ , पर दूँ किसके लिये।
कौन जिन्दा है बता इस दुनियां मे मेरे लिये।
 सब को अपनी है पड़ी , अपने मे ही सब व्यस्त है।
 वक्त बचता है कहाँ कोई सोचे कुछ मेरे लिये॥
 उसे अपना पेट भरने से फुर्सत मिले तो सोचे वो
 मेरा पेट खाली रह गया, पेट उसका भरने के लिये
 वो ये तो चाहता है कि, दूजा जान दे उसके लिये
पर अपनी जान रखता है, संभाल के खुद के लिये
 मै तो तन मन धन लुटाने, आया था तेरे द्वार पर
 तुमने ही दिल के द्वार तक , खोले नही मेरे लिये
 किसने कहा तुम दिल में अपने रखो हमको उम्र भर
मेहमाँ समझ तो रहने देते, एक दो दिन के लिये
 धन की चाहत ने है हर चाहत को पीछे छोड़ डाला
 अब कौन चाहता है किसी को सिर्फ चाहने के लिये