अपनी तो इतनी चाहत थी कि मुझ को भी कोई चाह मिले
मंजिल मिले ,मिले ना मिले, बस चलने को कोई राह मिले
ता उम्र तलाश ही करते रहे, कोई साथी ऐसा मिल जाये
कोई और चले ना चले संग में पर वो साथी तो साथ चले
लेकिन मीलों आगे पीछे नहीं कोई दिखाई पड़ता है
किससे कहूँ कि हाथ थाम ले किससे कहूँ कि साथ चले
आये अकेले, रहे अकेले , और आज अकेले लौट चले
दो कदम भी साथ ना देपाये अबतक जितने भी साथ मिले
अन्त समय क्या भीड़ इकठठी कर के हासिल होना है
दो चार कदम भी क्यों कोई मेरी अर्थी के साथ चले
सारी उम्र तो एक भी कन्धा नहीं मिला सिर रखने को
आखिरी वक्त फिर क्यों हम को इतने कन्धों का साथ मिले
अपने अपने घर में रह कर मुझे अलविदा कह देना
अब ये क्या अच्छा लगता है कि अर्थी संग बारात चले
सब को अपनी पड़ी रही , सब अपने मे ही मस्त रहे
अब चलते हुये तेरे आंसुऔं की क्यों मुझको सौगात मिले
ता उम्र अकेले गुजरी है तो दफन के वक्त भी धयान रहे
मेरे साथ में कोई कब्र ना हो, ना पास में कब्रिस्तान मिले
मंजिल मिले ,मिले ना मिले, बस चलने को कोई राह मिले
ता उम्र तलाश ही करते रहे, कोई साथी ऐसा मिल जाये
कोई और चले ना चले संग में पर वो साथी तो साथ चले
लेकिन मीलों आगे पीछे नहीं कोई दिखाई पड़ता है
किससे कहूँ कि हाथ थाम ले किससे कहूँ कि साथ चले
आये अकेले, रहे अकेले , और आज अकेले लौट चले
दो कदम भी साथ ना देपाये अबतक जितने भी साथ मिले
अन्त समय क्या भीड़ इकठठी कर के हासिल होना है
दो चार कदम भी क्यों कोई मेरी अर्थी के साथ चले
सारी उम्र तो एक भी कन्धा नहीं मिला सिर रखने को
आखिरी वक्त फिर क्यों हम को इतने कन्धों का साथ मिले
अपने अपने घर में रह कर मुझे अलविदा कह देना
अब ये क्या अच्छा लगता है कि अर्थी संग बारात चले
सब को अपनी पड़ी रही , सब अपने मे ही मस्त रहे
अब चलते हुये तेरे आंसुऔं की क्यों मुझको सौगात मिले
ता उम्र अकेले गुजरी है तो दफन के वक्त भी धयान रहे
मेरे साथ में कोई कब्र ना हो, ना पास में कब्रिस्तान मिले