Monday, December 28, 2009

मेरी नजरो से  खुद को देखो खुद को जानो तुम
 तुम सा सुंदर कोई नहीं ये बात मेरी सच मानो तुम

होंठ गुलाबी नयन शराबी रेशमी जुल्फें काले बाल
 बिना पीये ही झूम उठे देखे जो तेरी लहराती चाल

 सुडोल  बदन नयन नख्श तीखे चहरे पे गज़ब का नूर
 ऐसा लगता है धरती पे उतर आयी जन्नत की हूर

 चाल चले तो ऎसी जैसे मंद मंद चलती है हवा
मुस्काती है ऐसे जैसे फूल कमल का खिलता हुआ

 बदन तेरा गदराया जो भी छू ले वो ही  तर जाए
इसके बाद क्या उसको फिक्र वो ज़िंदा रहे या मर जाए

एक नजर जो देख ले तुझ को होके रह जाए तेरा
 मै  भी हुआ दीवाना खुद तो  क्या कसूर है तेरा

 घर का तेरे पता है लेकिन  मन का मुझे  पता दे
 कौनसा रस्ता सीधे तेरे मन तक जाए बता दे

काश तू कोई  दुःख सुख अपना कभी तो मुझ से बांटे
और  हटा पौऊ मै तेरी राह से दुःख के कांटे




Wednesday, December 9, 2009

इस जीवन में पड़ते पड़ते कई पासे उलटे पड़ जाते हैं

रिहते टूटें साथी छूटे लेकिन तूं आंखें नम ना कर

पतझड़ के मौसम में अक्सर पेड़ से पत्ते झड़ जाते है

अपनी धुन में मस्त रहे हो नहीं सुनी कोई बात किसी की

अपनी तरह से जीने वाले यूं ही अकेले पड़ जाते हैं

ये देख के तुफाँ के आगे कभी टिक पाना आसान नहीं

घास तो अक्सर झुक जाता है पेड़ हमेशा अड़ जाते हैं

जिद्द छोडो तो बेहतर है , है वक्त संभलने का अब भी

तेज तुफाँ में अड़ने वाले अक्सर जड़ से उखड़ जाते की

माना तुम खिलाड़ी हो पक्के पर ये चौसर का खेल नहीं

इस जीवन में पड़ते पड़ते कई पासे उलटे पड़ जाते हैं

Tuesday, December 8, 2009

चाह कर भी दूरीयां दोनों नही मिटा सके

चाह कर भी दूरीयां दोनों नही मिटा सके
हम भी ठहरे रह गए तुम भी ना चल के आ सके

 उलझन सुलझने की जगह और उलझती गयी
 कुछ तुम से ना सुलझ सकी कुछ हम नही सुलझा सके

 सब कुछ समझ के भी ना इक दूजे को कुछ समझ सके
 कुछ तुम नहीं समझ सके कुछ हम नही समझा सके

 बात बिगड़ी थी तो बन भी सकती थी चाहते अगर
 तुम ने भी चाहा नही  हम भी नहीं बना सके

 लौट कर पक्षी घरौंदे की तरफ सब चल दिए
 कुछ ऎसी राह भटके लौट कर ना वापिस आ सके

तेरे मिटाने से नहीं मिटना मेरा नामो निशां
इस हस्ती को तो नाम वाले भी नहीं मिटा सके

Sunday, December 6, 2009

सौतन के इन्तजार की तारीफ कर सके तो कर i

किस कद्र तकलीफ दी है जिन्दगी तूने मुझे

अब तो तेरे नाम से होने लगी नफरत मुझे

पहले तेरे बिन कभी कोई मुझे भाता न था

अब तुझ से दूर जाने की होने लगी चाहत मुझे

आज तेरी नजरो में मेरी कोई कीमत नहीं

कल बहुत महसूस होगी मेरी जरूरत तुझे

पर मुझे अफसोस है तब मैं ना लौट पाऊंगा

सौत की बाहों में जो इक बार चला जाऊंगा

तुमने तो ठुकरा दिया तनहा किया भुला दिया

पर देख लेना वो मुझे हरगिज नहीं ठुकराएगी

तुमने साथ ना दिया तो ना सही मर्जी तेरी

सौत तेरी बावफा है साथ लेकर जायेगी

सौतन के इन्तजार की तारीफ कर सके तो कर

जिस भी पल तूम छोड़ देगी वो मुझे अपनायेगी

छीनने की उसने कोशिश इसलिए ही की नहीं

जानती थी एक दिन तूं खुद उसे दे जायेगी

सौत तेरी हो तो हो पर मेरी महबूबा है वो

मैं भी खुशी से चलूँगा जब वो लेने आयेगी

दर्द तन्हाई का शायद तब तुझे महसूस हो

मैं चला जौउगा जब और तनहा तूं रह जायेगी

तूं सात फेरे में भी अपना बन सकी ना बना सकी

वो एक फेरे में ही मेरी जान तक ले जायेगी

मौत मेरी सौत तेरी बन के जब आ जायेगी

देख लेना उस घड़ी तूं बहुत पछताएगी

किस कद्र तकलीफ दी है जिन्दगी तूने मुझे

अब तो तेरे नाम से होने लगी नफरत मुझे

पहले तेरे बिन कभी कोई मुझे भाता न था

अब तुझ से दूर जाने की होने लगी चाहत मुझे

आज तेरी नजरो में मेरी कोई कीमत नहीं

कल बहुत महसूस होगी मेरी जरूरत तुझे

पर मुझे अफसोस है तब मई ना लौट पाऊंगा

सौत की बाहों में जो इक बार चला जाऊंगा

तुमने तो ठुकरा दिया तनहा किया भुला दिया

पर देख लेना वो मुझे हरगिज नहीं ठुकराएगी

तुमने साथ ना दिया तो ना सही मर्जी तेरी

सौत तेरी बावफा है साथ लेकर जायेगी

सौतन के इन्तजार की तारीफ कर सके तो कर

जिस भी पल tuu छोड़ देगी वो मुझे apanaayegii

छीनने की उसने कोशिश इसलिए ही की नहीं

जानती थी एक दिन तूं खुद उसे दे जायेगी

सौत तेरी हो तो हो pr मेरी महबूबा है वो

मैं खुशी से चल प्दुम्गा जब वो लेने आयेगी

दर्द तन्हाई का शायद का तब तुझे महसूस हो

मई चला जौउगा जब और तनहा टू रह जायेगी

टू सात फेरे में भी अपना बन सकी ना बना सकी

वो एक फेरे में ही मेरी jaan tak le जायेगी

maut मेरी सौत तेरी बन के जब aa जायेगी

देख लेना उस घड़ी तूं बहुत पछताएगी

Saturday, December 5, 2009

सब के हाथों में पत्थर हैं और निशाने पे मेरा दिल

अपने उसूलो पे जी पाना इतना भी आसान नहीं
सब से अलग पहचान बनाना इतना भी आसान नहीं

बनी बनाई राह पे चलना कौन काम है मुश्किल का
अपनी राहें खुद ही बनाना इतना भी आसान नहीं

जिसके मन सी नहीं कर सका वो ही हम से दूर हो गया
 सब के होते तन्हा जी पाना इतना भी आसान नहीं

 इसके ताने उसके उल्हाने कैसे सहे सब तूं क्या जाने
 सीने में हर गम दफनाना इतना भी आसान नहीं

आप ही हंसना आप ही रोना आप ओढ़ना आप बिछौना
 आप ही जागना आप ही सोना आप ही पाना आप ही खोना

 हर आंसू को अकेले पीना तुम क्या जानो कितना मुश्किल
 खुद को खुद ही तसल्ली देना कैसे कर पाता है ये दिल

 पड़ी जरूरत मदद की जब भी खुद को दे आवाज बुलाया
 खुद के लिए खुदा बन जाना इतना भी आसान नहीं

आंख छलक आई मेरी तो इतने क्यों हैरान हो तुम
 मैं भी तुमसा ही इंसा हूँ बेदिल या पाषाण नहीं

सब के हाथों में पत्थर हैं और निशाने पे मेरा दिल
ऐसे में इस दिल को बचाना इतना भी आसान नहीं

Friday, December 4, 2009

सोते सोते लुट गया सब कुछ आंख खुली तो पता चला i

तेरे मेरे करने से जग में सोचो आखिर क्या होता है
जब जब जो होना होता है तब तब वैसा ही होता है

सोते सोते लुट गया सब कुछ आंख खुली तो पता चला
पता है सब लुट सकता है तो आखिर कोई क्यों सोता है

अंक गणित या अर्थशास्त्र में माना माहिर आप हुए
जीवन इतना सरल नही इतने भर से क्या होता है

अपनी तबाही का आलम क्या सब को बताते फिरते हो
असर तबाही का ऐसे में और भी ज्यादा स्याह होता है

मन में तेरे क्या हलचल है बेहतर है कोई ना जाने
दुनिया को जब पता चले गुनाह तभी गुनाह होता है

मन में तेरे लाख हो उलझन जुल्फों को सुलझा के रख
मन की उलझन चेहरे तक लाना यहां गुनाह होता है

 बार बार इस दिल को क्या पाप पुण्य समझाते हो
 स्वर्ग नरक इस दिल के लिए शायद एक सा ही होता है

 भला बुरा सही गलत नहीं इस को समझ आने वाला
 दिल की तराजू में शायद एक ही पलड़ा बना होता है

Wednesday, December 2, 2009

तुम मेरी होती ना होती मै तो यूं तन्हा ना होता

कटने को अकेले भी मजे से कट रही थी जिन्दगी
सब उम्मीदे मर चुकी थी हर तमन्ना दफन थी
माना कोई खुशी ना थी लेकिन कोई गम भी ना था
जब तक ना तुम मुझ से मिली मै मिला तुम से ना था

तुम से क्या मिला कि हर उम्मीद जिन्दा हो गयी
सोच मेरी फिर से इक उडता परिन्दा हो गयी
सोये हुए अरमान सारे एक ही पल मे जग गये
हर दबी उमंग को फिर पख जैसे लग गये
मेरी उम्मीदे मेरी उमगे मेरी तमन्ना मेरे अरमा
मस्त होकर उड रहे थे सब खुले आकाश में
क्या हंसी नजारा था सारा गगन हमारा था
तुझको दिखाने के लिये मने तुझे पुकारा था
बस इक नज़र डाली थी तुमने उस भरे आकाश मे
मेरी तमन्ना मेरी उमंगे और मेरे विश्वास पे
फिर घायल पक्षी की तरह सब नीचे को गिरने लगे
कुछ तडफडाते गिर पडे कुछ गिरते ही मरने लगे

देखते ही देखते आकाश खाली हो गया
मानो किसी गरीब की रोटी की थाली हो गया

मै तो था उदास मगर तुम मुस्करा रही थी
अपने किये काम पे शायद बहुत इतरा रही
अलविदा कहते कह्ते दूर होती जा रही थी
काश वो नज़ारा मैने तुमको दिखलाया ना होता
तुम मेरी होती ना होती मै तो यूं तन्हा ना होता

Tuesday, December 1, 2009

मत भूलो की हर उड़ान इक रोज जमीं पे उतरनी है

एक उड़ान के भरते ही तुम हमको भुला बैठे हो सनम
 अभी ना जाने तुमको कितनी और उड़ाने भरनी हैं

जाने किस मंजिल पहुंचे जो बात चीत भी बंद हुई
तुमको तो जीवन में ऎसी कई मंजिल तय करनी है

वक्त के मारे इंसा से वैसे भी तुम्हे क्या मिलना था 
मन ग़म से बुझा तन उम्र ढला दो चीजे ही मिलनी हैं

मेरे ग़म को देख के अपनी आँखे नाहक नम ना कर
मेरे कारण अपनी खुशियाँ काहे को कम करनी है

पहली बार तुम दूर गयी तकलीफ कुछ दिल को ज्यादा हुई
 आख़िर तो दूरी सहने की आदत इक दिन हमें पदनी   है

तुम्हे तो उड़ने की खातिर आकाश भी छोटा पड़ता है
मेरे पास तो पांव रख पाने को जमीं ही मिलनी है

मुझ संग रह कर पंख तेरे और भी कम हो जाने थे
और तुझे गगन में उड़ने  की हसरत अभी पूरी करनी है 

औरो से ऊंचा उठने का अहसास सुखद होता है बहुत
पर मत भूलो की हर उड़ान इक रोज़ जमीं पे उतरनी है

Tuesday, August 25, 2009

इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे

मान लूँ कैसे अज़र है या अमर है आत्मा
 जब देखता हूँ हर कहीं हर रोज़ मरती आत्मा

 मार भी ना पाये तो इसको सुलाये रख सदा
 जागते ही ये दुखी तुझ को करेगी आत्मा

 सीख सकता है तो कुछ इन बड़े लोगो से सीख
 ताउम्र कौमा मे पड़ी रहती है जिन की आत्मा

ये कहीं का भी ना छोड़ेगी तुझे संसार मे
जितनी जल्दी हो सके तूँ आत्मा को मार दे

 पांव मे बैठा है क्या पहने हुये तू बेड़ीया
काट बेड़ी आत्मा की कदमों को रफतार दे

 देखना पछतायेगा और रोयेगा तू ज़ार ज़ार
 उतरा आत्मा का जिस भी दिन चढा बुखार ये

 इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है
 आगे बढना है तो हर आवाज इसकी नकार दे

 फिर ना कहना मैने पहले तुमको चेताया नहीं
 इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे

Tuesday, August 18, 2009

इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है

मान लूँ कैसे अज़र है या अमर है आत्मा
जब देखता हूँ हर कहीं हर रोज़ मरती आत्मा

 मार भी ना पाये तो इसको सुलाये रख सदा
जागते ही ये दुखी तुझ को करेगी आत्मा

सीख सकता है तो कुछ इन बड़े लोगो से सीख
 ताउम्र कौमा मे पड़ी रहती है जिन की आत्मा

ये कहीं का भी ना छोड़ेगी तुझे संसार मे
 जितनी जल्दी हो सके तूँ आत्मा को मार दे

 पांव मे बैठा है क्या पहने हुये तू बेड़ीया
 काट बेड़ी आत्मा की कदमों को रफतार दे

 देखना पछतायेगा और रोयेगा तू ज़ार ज़ार
 उतरा आत्मा का जिस भी दिन चढा बुखार

 ये इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है
 आगे बढना है तो हर आवाज इसकी नकार दे

 फिर ना कहना मैने पहले तुमको चेताया नहीं
 इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे

Tuesday, August 11, 2009

कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था

फूल कम कान्टे ज्यादा गुलशन रहे किस काम के
खुशबु नहीं रंगत नहीं खिले फूल भी तो नाम के
चाह्त नहीं वफा नहीं रिश्तों मे बाकी क्या बचा
अब तो रिश्ते रह गये हैं सिर्फ नाम ही नाम के
हर शख्स ही बिकाऊ है इस दुनिया के बाजार मे
फर्क बस इतना है कौन बिकता है किस दाम पे
मह्फिल मे आ गये हो तो प्यासा ना वापिस जाईये
दो घूंट मुंह मे डाल लो, ना पी सको गर जाम से
जाने अभी ये दौर और क्या क्या दिखलाये हमे
क्या अभी से बैठना अपना कलेजा थाम के
इन नाम वाले लोगो को देखा है जब भी करीब से
अच्छे नजर आने लगे वो लोग जो बदनाम थे
किन उजालों की तमन्ना कर रहा है इन से तूँ
ये सुबह के सूरज नहीं ये हैं ढलते सूरज शाम के
मालूम है कि"ना" ही "ना" हर लफ्ज मे लिखेगा तूँ
बिन लिफाफा खोले वाकिफ हैं तेरे पैगाम से
कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था
गम ये है सब बिक गया बिन मोल के बिन दाम के

Monday, August 10, 2009

कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था

खिलने को तो चमन मे खिलते है फूल इससे क्या
खुशबू नहीं रंगत नहीं खिले फूल फिर किस काम के
चाह्त नहीं वफा नहीं रिश्तों मे बाकी क्या बचा
अब तो रिश्ते रह गये हैं सिर्फ नाम ही नाम के
हर शख्स ही बिकाऊ है इस दुनिया के बाजार मे
फर्क बस इतना है कौन बिकता है किस दाम पे
मह्फिल मे आ गये हैं तो प्यासा ना रख साकी हमें
दो घूंट मुंह मे डाल दे, ना पिला सके गर जाम से
जाने अभी ये दौर और क्या क्या दिखलाये हमे
क्या अभी से बैठना अपना कलेजा थाम के
इन नाम वाले लोगो को देखा है जब भी करीब से
अच्छे नजर आने लगे वो लोग जो बदनाम थे
किन उजालों की तमन्ना कर रहा है इन से तूँ
ये सुबह के सूरज नहीं ये हैं ढलते सूरज शाम के
मालूम है कि"ना" ही "ना" हर लफ्ज मे लिखेगा तूँ
बिन लिफाफा खोले वाकिफ हैं तेरे पैगाम से
कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था
गम ये है सब बिक गया बिन मोल के बिन दाम के

Friday, August 7, 2009

हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल


जिन्दगी ने कल हमें फिर और इक झटका दिया
वक्त ने फिर हम पे बन्द इक और दरवाजा किया

जिसकी नजरों में, तमन्ना थी कि मेरा कद बढे
उसी की नजरों में गिरा मुझ को शर्मिन्दा किया

इनायत से ज्यादा यार जब करने लगे शिकायते
 समझ लो कि यारी टूटने का वक्त आ गया

दोस्त दुश्मन दोनों का हक वक्त ने यूँ किया अदा
पहले मिलाया और फिर मिलते ही उससे जुदा किया

जिन्दगी से जब भी कुछ उम्मीद पाने की जगी
 वक्त ने लाकर हमें फिर आईना दिखला दिया

 क्या मुकद्दर है मेरा और क्या मेरी तकदीर है
सामने थाली रही और अन्दर निवाला ना गया

नाकामियां बदनामियां कुछ और दामन में जुड़ी
 जब भी कोई नाकामी कम करने का हौंसला किया

हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल
वक्त मेरे कद को किस हद तक बौना बना गया

मेरे मन दर्पण पे तूने फैंके हैं पत्थर,
 मगर टूटने से पहले उस मे अक्स तेरा समा गया

दीवानगी की देख हद खुद टूट कर भी शीशा दिल
अपने हर टुकडे मे तेरा अक्स पूरा बचा गया

Wednesday, August 5, 2009

करना है सब ने वही जो रास जिसको आयेगा

सोचते थे ये अकेलापन हमें खा जायेगा
क्या खबर थी ये अकेलापन हमें भा जायेगा
जीने को तो बिन तेरे भी जी ली हमने जिन्दगी
गम ये है कि कद तेरा बौना नजर अब आयेगा
सात जन्मों तक के रिश्ते की है करता बात क्या
इतना सोच इस जन्म तक कैसे ये निभ पायेगा
लादना अब छोड़ दे औरो पे अपनी सीख तूँ
कौन मानेगा तेरी और तुझसा कौन हो जायेगा
मन्जिलें तो मन मे सबके पहले से हैं बनी हुई
फिर तेरी खातिर कौन अपनी राह बदल पायेगा
ना प्यार ना हमदर्दी है, सब कुछ दिखावा है यहाँ
जितना जल्दी समझेगा तू उतना ही सुख पायेगा
अपने अपने तर्क सब ने गढ लिये अपने लिये
करना है सब ने वही जो रास जिसको आयेगा

Tuesday, August 4, 2009

याद करते है हम तो तुम्हें रात दिन

तेरे दिल मे भी है तेरे कदमों मे भी
जाने क्यों फिर नजर तुझ को आते नहीं
प्यार करते है जान से भी ज्यादा तुम्हें
बात इतनी है बस हम बताते नहीं
याद करते है हम तो तुम्हें रात दिन
है खता ये कि तुम को जताते नहीं
बात किससे करें कोई अपना तो हो
गैर लोगो से कुछ बतियाते नहीं
सामने किसके आयें कोई चाह्ता तो हो
बेवजह वक्त किसी पे लुटाते नहीं
सब तमाशाई बन शोर करते बहुत
खुद करके मदद क्यों बचाते नहीं
झूठी हमदर्दी है झूठा सा प्यार है
कष्ट थोड़ा भी लोग खुद उठाते नहीं
कुछ गवाना पड़े ना और सब कुछ मिले
ऐसे नाता किसी से निभाते नहीं
डूबना ही जिसे तकदीर लगने लगे
भीड़ तमाशाईयों की वो लगाते नहीं

Monday, August 3, 2009

जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लड़े बिना नहीं रह सकता

ये जीवन इक समझौता है हर बार मुझे समझाते हो
सच कहो तो कितने समझौते तुम खुशी खुशी कर पाते हो
जो टीस सी दिल में छोड़ जाये वो समर्पण है समझौता नही
जो चाहे नाम दो तुम इसको मुझसे तो ये सब होता नहीं
ये जीवन है, शतरंज नहीं, यहां नही बराबर छूटोगे
यहां समझौता मुमकिन ही नही या हारोगे या जीतोगे
जीत भी सच है हार भी सच है झूठ सिर्फ समझौता है
आन्खे मूंदना घुटने टेकना क्या ये समझौता होता है
आशावाद तो लड़ना है जब तक जीत नहीं वरते
वो क्या बाजी जीतेंगें जो सदा हार से रहे हैं डरते
वो शख्स जो बातों बातों मे समझौता करते फिरते हैं
या तो वो हारे होते हैं या फिर वो हार से डरते हैं
जीवन है महा संग्राम यहां हर मोड़ पे जंग है छिडी हुई
लड़ना ही तेरी नियति है तुझे समझौते की क्यों पड़ी हुई
जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लड़े बिना नहीं रह सकता
इसे धर्मयुद्ध ही मान के लड़ गर हार जीत नहीं सह सकता

Wednesday, July 29, 2009

हार को समझौते का नाम देकर इस जीत का रंग ना दो

जागती आन्खे बन्द कर सपने देखने का मै आदी नहीं
चाहो तो कह सकते हो मै तुम सा आशावादी नहीं
जब तक शीशा देखा ही नहीं क्या पता कि सूरत कैसी है
कागज पे उतारो तो जाने मन मे बसी मूरत कैसी है
ऐसा वैसा जैसा भी है सच तुम्हे मानना ही होगा
आज नहीं तो कल इस नगें सच का सामना भी होगा
यथार्थ को तुम निराशा कहो ये बात समझ मे आती नही
बन्द आँख कर लेने पर बिल्ली क्या कबूतर खाती नही
बेहतर है कबूतर उड जाये और उड कर जान बचा डाले
या फिर चोन्चे मार मार बिल्ली को घायल कर डाले
सच देख के आन्खे बन्द ना कर सच सच है ये सच मान ले तूँ
हो सके तो सच को लड़ के जीत क्यों उसको नियति मान ले तूँ
जीवन है अगर संग्राम तो फिर तुम मरोगे या तो मारोगे
और जीवन है संघर्ष तो फिर तुम जीतोगे या हारोगे
इस जंग से बच सकते ही नहीं या झुकना है या झुकाना है
हारे तो समर्पण करना है जीते तो फिर करवाना है
हार को समझौते का नाम देकर इस जीत का रंग ना दो
हार गये तो हार गये इस हार से क्या घबराना है
हार भी सच है जीत भी सच है झूठ सिर्फ समझौता है
आँखे बन्द कर ख्वाब देखना आशावाद कब होता है
आशावाद तो लडना है जब तक जीत नहीं होती
समझौता घुटने टेकना है बाद इसके जीत कहाँ होती

Tuesday, July 28, 2009

प्यार करते हो तो सरेआम कहो करते हैं


प्यार में दर्द का अहसास ही कब होता है
प्यार जब आधा अधूरा हो ये तब होता है

दर्द जब हद में रहे तब ये रूलाता है बहुत
दर्द जब हद से गुजर जाये दवा होता है

प्यार तड़पाता,रुलाता है,सताता है बहुत
प्यार जो अपने ही दायरों मे घिरा होता है

प्यार जब हद से गुजर जाये तो फिर क्या कहना
प्यार में सारे जमाने का मजा होता है

प्यार में रोने रूलाने का चलन है तब तक
जब ये अपनी ही जंजीरो मे बंधा होता है

अपने संस्कारो की जंजीरे जरा तोड़ के देख
अपने दायरों से निकल अहम जरा छोड़ के देख

प्यार करते हो तो सरे आम कहो करते हैं
यार से साफ कहो तुम पे बहुत मरते हैं

कोई भी अहम तूँ आड़े ना आने दे कभी
रूठ के प्यार को तूँ दूर ना जाने दे कभी

खा कसम  डर या वहम दिल मे ना तेरे आयेगा
तूँ कदम आगे बढा जहाँ खुद पीछे ह्ट जायेगा

हाँ ये हो सकता है कुछ चर्चे रहें दो चार दिन
इससे ज्यादा तूँ बता कि और क्या हो जायेगा

थोडी ताकत थोड़ी सी हिम्मत जुटानी है तुम्हें
प्यार तेरी सारी दुनियां को हसीं कर जायेगा

वो कहेगा कब कहेगा इसका ना इंतजार कर
तुम कहोगे पहले तो इसमें तेरा क्या जायेगा

तेरे दामन के पकड़ने में ही दिखती ढील है
वरना क्या हिम्मत जो वो दामन छुड़ा ले जायेगा

Monday, July 27, 2009

वो कहेगा कब कहेगा इसका ना इंतजार कर


प्यार में दर्द का अहसास ही कब होता है
प्यार जब आधा अधूरा हो ये तब होता है

दर्द जब हद में रहे तब ये रूलाता है बहुत
दर्द जब हद से गुजर जाये दवा होता है

प्यार तड़पाता,रुलाता है,सताता है बहुत
प्यार जो अपने ही दायरों मे घिरा होता है

प्यार जब हद से गुजर जाये तो फिर क्या कहना
प्यार में सारे जमाने का मजा होता है

प्यार में रोने रूलाने का चलन है तब तक
जब ये अपनी ही जंजीरो मे बंधा होता है

अपने संस्कारो की जंजीरे जरा तोड़ के देख
अपने दायरों से निकल अहम जरा छोड़ के देख

प्यार करते हो तो सरेआम कहो करते हैं
यार से साफ कहो तुम पे बहुत मरते हैं

अपना कोई अहम तूं आड़े ना आने दे कभी
प्यार को रूठ के  दूर ना  जाने दे कभी

खा कसम डर या वहम दिल मे नहीं आयेगा
तूँ जरा  आगे तो बढ़  पीछे जहाँ हट जायेगा

हाँ ये हो सकता है  कुछ चर्चे रहें दो चार दिन
तूँ बता कि इससे ज्यादा और क्या हो जायेगा

थोडी ताकत थोड़ी सी हिम्मत जुटानी है तुम्हें
प्यार तेरी सारी दुनियां को रगीन  कर जायेगा

वो कहेगा कब कहेगा इसका ना इंतजार कर
तुम कहोगे पहले तो इसमें तेरा क्या जायेगा

तेरे दामन के पकड़ने में ही दिखती ढील है
वरना क्या हिम्मत जो वो दामन छुड़ा ले जायेगा

Friday, July 24, 2009

गैरत ज्यादा दिन बचे , मुमकिन नहीं

आप क्या महफिल में आये, उठके सब चलने लगे
 चिराग कुछ बुझने लगे , जिस्म कुछ जलने लगे

 ज्यादा पीकर के बहकते, कुछ समझ आता हमें
आप तो दो चार घूँट, पीकर ही बहकने लगे

कातिल नशा है शराब में या साकी तेरे शबाब में
उसे पी के खोये होश तो , तुझे देख सब मरने लगे

है कैसी ये शराब और महफिल का साकी कैसा है
ना पी तो लड़खड़ाये सब और पी तो संभलने लगे

मेरी ना को तूँ ना ही समझ ये झूठीमूठी ना नहीं
 हम वो नहीं जो इसरार से "ना" "हाँ "मे बदलने लगे

मेरी सोई गैरत को, ललकारा उसने इस तरह
ना चाह कर भी प्यासे ही मह्फिल से हम चलने लगे

प्यासा भी है रहना पड़ा ,खाली भी लौटे है बहुत
 महफिल के सब दस्तूर, साकी, अमल करने लगे

गैरत ज्यादा दिन बचे लगता ये   मुमकिन नहीं
जेब भी खाली हो  और जब प्यास भी बढने लगे

Thursday, July 23, 2009

कितनी तकलीफ हुई होगी, सोचो तो जरा

कितनी तकलीफ हुई होगी, उस शख्स को, तुम सोचो तो जरा
 जिसे सफर के अन्त में पता चले वो जितना चला बेकार चला
 मन्जिल हो अभी भी दूर खड़ी , और खत्म हुआ जिसका रस्ता
 मन्जिल ने हो जिस राही से कहा, नादान, तूँ नाहक दौड़ा किया
 मुझ तक कोई राह नहीं आती , तूँ मुझ तक पंहुच नहीं सकता
 मेरे चारों और मीलों खाई, कोई जिसको लाँघ नहीं सकता
 राही भी अजब दीवाना था , अपनी धुन में मस्ताना था
उस राही ने मन्जिल से कहा, काहे को रही इतना इतरा
जिस हद तक आता था रस्ता, उस हद तक तो मैं आ पंहुचा

तुम चाहती तो बाकी दूरी पल भर में ही मिट सकती थी
इक कदम बढ़ाना था तुमको, मुझको मन्जिल मिल सकती थी
 लेकिन तुमने चाहा ही नहीं, मेरे चाहने से होना था क्या
 आगे का सफर संभव ही नहीं ना तुम चाहो , ना चाहे खुदा,
आया तो बड़ी चाहत से था अबअनचाहे मन लौट चला
फिर भी तेरे जीवन में कभी इतना सूनापन आ जाये
 ना राह दिखे ना राही ही और तूँ खुद से घबरा जाये
 तब अहम किनारे पे रख के इक बार पुकारना धीरे से
 उस रोज भी तेरा दिवाना , तेरे आसपास मिल जायेगा
वीरान पड़ी तेरी राहों का, फिर से राही बन जायेगा
 आखिर तो तेरा दीवाना है तुझ पे ही जान लुटायेगा

जी हाँ कभी ये शहर था फिर जाने क्या चली हवा

उपयोगिता तय करती है रिश्तों की नजदीकियां
आदमी भी आजकल सामान बनता जा रहा है

 व्यक्तितव से ज्यादा महत्व उपयोगिता का हो गया
 कद नापना इन्सान का आसान बनता जा रहा है

 देख कर इन्सान का इन्सान बन पाना कठिन
जिसको देखो आजकल भगवान बनता जा रहा है

लोग कहते है कि उसके दर पे है मिलता सकून
मेरे अन्दर फिर ये क्यों तूफान बनता जा रहा है

 किस के सिर पे पांव रख अब आगे बढेगा तूँ बता
 धरती का हर टुकड़ा जब आसमान बनता जा रहा है

 कल जहाँ कुछ भी ना था वहाँ आज छत तैयार है
 शायद बिना बुनियाद के मकान बनता जा रहा है

 खून का रिश्ते तो अब पानी से पतले हो गये
खून इक मिटती हुई पहचान बनता जा रहा है

पहले जो कदमों की आहट तक से था पहचानता
 अब वो मेरी शक्ल से अन्जान बनता जा रहा है

 ताकि उसकी इनायतों को भूल ना जाऊं कहीं
जख्म भर चला है पर निशान बनता जा रहा है

 जी हाँ कभी ये शहर था फिर जाने क्या चली हवा
 अब जिन्दा लाशों का ये कब्रिस्तान बनता जा रहा है

Tuesday, July 21, 2009

देखता हूं आईना तो महसूस होता है मुझे

जिन्दगी के मायने हैं अब समझ आने लगे
 इक इक कर जब छोड़ के सब हमे जाने लगे

 देखता हूं आईना तो महसूस होता है मुझे
सीने मे द्फन गम हैं चेहरे पे नजर आने लगे

 हमने जिन हाथों मे अक्सर फूल थमाये कभी
 वो हाथ अब सर पे मेरे पत्थर हैं बरसाने लगे

 देखा जब सीने मे नये जख्मो की जगह नहीं
दोस्त कान्टो से पुराने जख्म सहलाने लगे

किस किस्म के बीज थे जाने कैसी जमीन थी
 पोधो पे फूलो की जगह कान्टे नजर आने लगे

 ना कहें बदकिस्मती तो क्या कहे तू ही बता
 जब दोस्त सारे दुश्मनी कि रस्म निभाने लगें

 दूरी की बात और थी नजदीक जब गये कभी
ऊन्चे कद वाले सभी बौने नजर आने लगे

यूँ मानने को मान लेता हू तेरी हर बात मैं
 वैसे  तो हर बात तेरी मुझ को बेमायने लगे

अब हमारे बचने की उम्मीद बचती है कहां
हमको बचाने वाले है खुद को बचाने मे लगे

खेत मे तू ही बता कोई फसल बचती हैं कभी
 खेत की जब बाड़ खुद ही खेत को खाने लगे

Thursday, July 16, 2009

क्श्ती कोई किनारे क्यों लगती नही है अब

पहले सा प्यार करने वाले दिल नही रहे
या हम किसी के प्यार के काबिल नही रहे

क्श्ती कोई किनारे क्यों लगती नही है अब
माझी नहीं रहे या फिर साहिल नही रहे

तुमने तो"ना "ही कहनी है हर एक सवाल पर
अब तेरे जवाब जानने मुश्किल नही रहे

दु:ख मे शरीक होना महज रस्म बन गया
दुख बांटने वाले उनमें शामिल नही रहे

पढ लिखके सीखा क्या बता खुदगर्जी के सिवा
और मानने लगे कि अब जाहिल नहीं रहे

कोई इश्क से कहो उतारे नजर हुस्न की
सुनते हैं उनकी गालों पे अब तिल नहीं रहे

 सुर्खो सफेद मिटटी की मूरत ही तो बची
 गर हुस्न मे जज्बात कुछ शामिल नही रहे

 साकी रहे, मीना रहे और जाम रहना चाहिये
 महफिल रहे या फिर कोई महफिल नही रहे

Saturday, July 11, 2009

रात का अन्धेरा ही निगल गया जिस शख्स को

अह्सास ही जब मर गया रिश्ते मे बाकी क्या बचा
 खोखला रिश्ता उम्र भर चलना क्या ना चलना क्या

 सारा सफर तन्हा कटा तो खत्म होते सफर मे
तूं बता हमसफर का मिलना क्या ना मिलना क्या

 रात का अन्धेरा ही निगल गया जिस शख्स को
 उसके लिये सू्रज सुबह निकलना ना निकलना क्या

कहने को डूबते को तिनके का सहारा है बहुत
दरअसल इतना  सहारा मिलना या  ना मिलना क्या

मरीज ए इश्क चल बसा तो हुस्न बेपर्दा हुआ
हुस्न का यूँ बेनकाब निकलना ना निकलना क्या

Tuesday, July 7, 2009

दम तोडते पोधे पे कलियों खिलना क्या ना खिलना क्या

तार तार हो चुका दामन तो उसका सिलना क्या
 फर्क दिल मे रख किसीका मिलना क्या ना मिलना क्या

 जब गिर गये इतना कि नरक तक भी छोटा पड गया
 बन्दे का उसके बाद संभलना क्या ना सभलना क्या

 इस तरह गुलशन कभी आबाद होते है भला
 दम तोडते पोधे पे कलियों खिलना क्या ना खिलना क्या

कब्र ही अन्जाम है गर हर खवाहिश का मेरी
फिर नयी खवाहिश का मन मे पलना क्या ना पलना क्या

 उठ गया है जामो मीना साकी भी जाने को है
महफिल मे अब नादाँ किसीका आना क्या निकलना क्या

 जब जानते हो चान्द धरती पर उतर सकता नही
 बच्चों की तरह चान्द पा लेने को फिर मचलना क्या

 कट गयी जब रात सारी रोशनी के बिन मेरी
 अब किसी दीये का यारा बुझना क्या और जलना क्या

Tuesday, June 30, 2009

देखे है आसमा मे जब से उडते परिन्दे

दामन छुडाने मे ना हो तकलीफ़ किसी को
हमने कफ़न तन्हाई का खुद ओढ लिया है

महफिल मे जाके भी हमें तन्हा ही रहना है
ये सोच महफिलों मे जाना छोड दिया है

ना आगे ना पीछे ना कोई साथ है मेरे
रिश्तों की लाशें जब से ढोना छोड दिया है

इन जहाँ वालो की परवाह कौन करता था
 ग़म  है तो बस   इतना  की तुमने  छोड दिया है

इक रिश्ता ए उम्मीद बचा था किसी तरह
क्यों आखिरी रिश्ता भी आज तोड दिया है
नफरत करे तुमसे ना जब हमसे हुआ मुमकिन
किसी तरह बस प्यार करना छोड दिया है
जब भी लगा मन्जिल कोई नसीब मे नही
राहों को हमने खुद ही नया मोड दिया है
डूबना उस कश्ती की तकदीर बन गयी
माझी ने जिसे बीच भवर छोड़ दिया है
और ना बढ जाये मिटती प्यास इस दिल की
अब खाली जाम होठो से लगाना छोड दिया है
देखे है आसमा मे जब से उडते परिन्दे
 पिन्जरे को अपना घर समझना छोड दिया है

पंखो को मेरे बांध कर सब ने कहा उडो
हकीकत से किस कदर मुँह सबने मोड़ लिया है
इतनी बडी सजा के तो हकदार हमने थे
ये किसका गुनाह नाम मेरे जोड दिया है

अब तो दवा लाना तेरा बेकार हो गया
कब का मरीजे ए इश्क ने दम तोड़ दिया है

Monday, June 29, 2009

कब का मरीजे ए इश्क ने दम तोड़ दिया है

वो साथ ले चले मगर सामान की तरह
जरूरत नही रही तो बीच राह छोड दिया है

दामन छुडाने मे ना हो तकलीफ़ किसी को
हमने कफ़न तन्हाई का खुद ओढ लिया है

महफिल मे जाके भी हमें तन्हा ही रहना था्
ये सोच महफिलों मे जाना छोड दिया है

ना आगे ना पीछे ना कोई साथ है मेरे
 रिश्तों की लाशें जब से ढोना छोड दिया है

 इन जहाँ वालो की परवाह कौन करता था
 ग़म तो है ये कि तुमने हमे छोड दिया है

इक रिश्ता ए उम्मीद बचा था किसी तरह
लो आखिरी रिश्ता भी आज तोड दिया है

नफरत करे तुमसे ना जब हमसे हुआ मुमकिन
मजबूरन ही तुमसे प्यार करना छोड दिया है

जब भी लगा मन्जिल कोई नसीब मे नही
राहों को हमने खुद ही नया मोड दिया है
डूबना उस कश्ती की तकदीर बन गयी
माझी ने भी जिसे बीच भवर छोड़ दिया है

और भी बढ जाये जिससे प्यास इस दिल की
वो जाम होठो से लगाना छोड दिया है

 पंखो को मेरे बांध कर तुमने कहा उडो
 हकीकत से किस कदर मुँह तुमने मोड़ लिया है

 इतनी बडी सजा के तो हकदार हम न  थे
 ये किसका गुनाह नाम मेरे जोड दिया है

अब तो दवा लाना तेरा बेकार ही गया
 कब का मरीजे ए इश्क ने दम तोड़ दिया है

Monday, June 22, 2009

जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन

जो भी चाहे तूँ मंजिल चुन जो भी चाहे तूँ सपने बुन
 जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन

सब हासिल हो सकता है गर खुद मे पैदा कर ले
मंजिल को पाने की धुन राहो पे चलने का गुण

नाकामयाब इन्सान सदा किस्मत का रोना रोता है
 सोचता है  मिलता है वही किस्मत में जो लिखा होता है

नहीं सोचता आम मिले कैसे जब पेड बबूल के बोता है
अपने कर्मो का फल ना मिले ऐसा तो कभी नहीं होता है

 केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
 ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है

चाहत रख लेने   भर से किसे कहाँ मिलती मंजिल
मंजिल के लिये तो चलते रहो तब ही गुजारा होता है

Friday, June 19, 2009

तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला

पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै
 क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै

मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता हूँ  मै
 जब ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं

बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं
जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं

पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै
अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै

 ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी
 जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै

पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं
 पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै

 दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ
मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं

अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं
 पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं

तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला
 दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै

 नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया
 कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै

Thursday, June 18, 2009

तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नहीं

 बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
 मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही

 क्यों गिला तुम से करूं कि जख्म तूने है दिये
ढूँढ कर लाये कोई वो सीना जो छलनी नही

साफ ना कह दो तो शायद मै मना लूँ अपना मन
 यूँ टालने से प्यार की कोई बात तो टलनी नहीं

यूँ बात ना बिगाड़ ये गुडे गुडडी का खेल नहीं
इक बार जो बिगडी तो किसीसे भी संभलनी नहीं

 किस लिये बैठा रहूं दर पे तेरे मै रात दिन
 हक भी जब मिलना नहीं भीख भी मिलनी नही

तुमको भी मालूम है और मुझ को भी ये है पता
 तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नही

Wednesday, June 17, 2009

रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे

धीरे धीरे आजकल रिश्ते सब मरने लगे
 हम भी औरो की तरह तरक्की अब करने लगे

 थाली किसीकी खाली है हुआ करे किसी को क्या
 आजकल तो सब के सब अपना घर भरने लगे

 अपनो बेगानो मे फर्क अब क्या रहा सोचो जरा
दोनो बचाने की जगह बेडा गरक करने लगे

 रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे
 सारे पडोसी रात भर खर्राटे तक भरने लगे

अपना भला बुरा लगे अब सोचने हम इस कदर
अपने हित की खातिर दुनिया का बुरा करने लगे

 मालिक का हो या गैर का बस खेत हरा चाहिये
आजकल सारे गधे चारा हरा चरने लगे

 बुद्धि मिली दिल खो गया पढ लिख के इतना ही हुआ
 तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे

Wednesday, June 10, 2009

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की

इसमे तेरा कोई दोष नही, बस मेरी ही नादानी है
जाने मै कैसे भूल गया मेरा सफर तो रेगिस्तानी है

 मेरी रेतीली राहो में सदा सूरज को दहकता मिलना है
 बून्दों के लिये यहाँ आसमान को तकना भी बेमानी है

बदली के बरसने की जाने उम्मीद क्यों मेरे मन में जगी
 यहां तो बदली का दिखना भी , खुदा की मेहरबानी है

 यहाँ रेत के दरिया बहते हैं कोई प्यास बुझाए तो कैसे
 प्यासे से पूछो मरूथल में किस हद तक दुर्लभ पानी है

यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है

पानी पानी चिल्लाने से यहाँ कोई नहीं देता पानी
प्यासा ही रहना सीख अगर तुझे अपनी जान बचानी है

मृगतृष्णा के पीछे दोड़ा तो दौड़ दौड़ मर जायेगा
पानी तो वहाँ मिलना ही नही, बस अपनी जान गंवानी है

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की
वो जानता है मृगतृष्णा है पर मानता है कि पानी है

फिर इस में तेरा दोष कहाँ , ये मेरी ही नादानी है
 तुम तो थी ही मृगतृष्णा मैनें ही समझा पानी है

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की

इसमे तेरा कोई दोष नही, बस मेरी ही नादानी है
 जाने मै कैसे भूल गया मेरा सफर तो रेगिस्तानी है

मेरी रेतीली राहो में सदा सूरज को दहकता मिलना है
बून्दों के लिये यहाँ आसमान को तकना भी बेमानी है

बदली के बरसने की जाने उम्मीद क्यों मेरे मन में जगी
यहां तो बदली का दिखना भी , खुदा की मेहरबानी है

 यहाँ रेत के दरिया बहते हैं कोई प्यास बुझाए तो कैसे
 प्यासे से पूछो मरूथल में किस हद तक दुर्लभ पानी है


यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
 यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है

 पानी पानी चिल्लाने से यहाँ कोई नहीं देता पानी
 प्यासा ही रहना सीख अगर तुझे अपनी जान बचानी है


मृगतृष्णा के पीछे दोड़ा तो दौड़ दौड़ मर जायेगा
 पानी तो वहाँ मिलना ही नही, बस अपनी जान गंवानी है

 इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की
 वो जानता है मृगतृष्णा है पर मानता है कि पानी है

फिर इस में तेरा दोष कहाँ , ये मेरी ही नादानी है
 तुम तो थी ही मृगतृष्णा मैनें ही समझा पानी है

Tuesday, June 9, 2009

मन्जिलों ने छोड दिया राही को मिलना

मन्जिलों ने छोड दिया राही को मिलना
 किस्मत मे राही के सिर्फ तलाश रह गयी

 मयखाने मे गये थे बडी शान ओ शौक से
 लौटे तो यूँ लगा अधूरी प्यास रह गयी

 कान्टे निकालने के बावजूद दर्द है
दिल के किसी कोने मे कोई फान्स रह गयी

 रिश्ता कोई उम्मीद के लायक नही रहा
हर रिश्ते से अब सिर्फ झूठी आस रह गयी

 वैसे तो ये मरीजे इश्क कब का मर चुका
जिन्दा है क्योकि अटकी कोई सांस रह गयी

आगाज का पता हो और अंजाम भी तय हो
 बाकी कहानी फिर तो बस बकवास रह गयी

 हर रिश्ते से यकीन जब उठ ही गया तेरा
कहने को बात कौनसी फिर खास रह गयी

आखो मे मेरी क्यों नही आता कोई आंसू
शायद अभी भी तुम से कोई आस रह गयी

Monday, June 8, 2009

मन की बाते मन ही जाने

मन की बाते मन ही जाने
ना मै जानू ना तू जाने
मन करता है मन की हर इक बात तुम्हे बतलाऊँ
अपनी किताब ए दिल का इक इक पन्ना तुम्हें पढाऊँ
मन करता है बचा हुआ हर पल तुझ पे ही लुटाऊँ
तेरे लिये ही जिन्दा रहुँ और तेरे लिये मर जाऊँ
लेकिन ऐसा क्यो होता है क्यों होता है ऐसा
ना तो मै ही समझ सका ना ही तू कुछ जाने
मन की बाते मन ही जाने
ना मै जानू ना तूं जाने
मुझे पता है मुझे खबर है तुझ मुझ मे जो अंतर है
और ये अंतर मिटा सकूँ नही कहीं कोई मंतर है
मुझ को है मालूम कि मन्जिल नही मुझे मिलनी है
मुझ को तो मीलों राहें कुछ पाये बिना चलनी है
फिर भी ये मन ढूंढे तुझ को पा लेने के बहाने
क्यों होता है ऐसा ,ऐसा क्यों होता है
ना मै जानू ना तू जाने
मन की बातें मन ही जाने

Friday, June 5, 2009

जिन्दगी का फलसफा क्या कीजियेगा जान कर

दोस्त बनाना ही तो काफी नही है दोस्तो
 दोस्त बन दोस्ती निभाना भी तो आना चाहिये

 लेने का हुनर तो सीखा आप ने है उम्र भर
कुछ देने का सलीका भी थोडा तो आना चाहिये

रिश्ते रखे आपने लेकिन जहाँ फायदा दिखा
 घाटे का रिश्ता क्या औरों को निभाना चाहिये

प्यार करना सीखना काफी नही है आजकल
 प्यार को परवान चढाना भी आना चाहिए

 यूँ गम छुपाने से कभी कम नहीं होते है गम
 ये सोच कि सोचा कि गम तुमको बताना चाहिये

 सलाह या अफसोस तक कायम रही तेरी दोस्ती
क्या रिश्ता यार को यार से यूँ ही निभाना चाहिये

कुछ भी गंवाना ना पडे और रिश्ता भी कायम रहे
ऐसा नही होता कभी तुम्हे समझ जाना चाहिये

धन लगा, मन लगा , या तन से दे कुर्बानियाँ
 रिश्ता बनाया है तो फिर रिश्ता निभाना चाहिये

सिर्फ बातों से ही बनती है कहाँ कोई बात अब
अपना कह्ते हो तो अपनों के काम आना चाहिये

 जिन्दगी का फलसफा क्या कीजियेगा जान कर
बन्दे को बस जिन्दादिली से जीना आना चाहिये

Thursday, June 4, 2009

हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता


हदों मे रहके तो व्यापार होते आयें हैं
 हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता

हदों में रहके तुम इन्कार कर तो सकते हो
 हदों में रहके पर इकरार हो नहीं सकता

तूँ जिस तरह से किनारे को पकडे बैठा है
 आज क्या तूँ कभी उस पार हो नहीं सकता

जो अपने यार की उम्मीद पे ना उतरे खरा
 वो रिश्तेदार ही होगा वो यार हो नही सकता

खोने और पाने का हिसाब जब लगे लगने
तो फिर वो दोस्ती होगी वो प्यार हो नहीं सकता

अगर पाना है मंजिल को तो घर को छोडना होगा
 कैदी दीवारों का मंजिल का हकदार हो नही सकता

निकलना दायरों से तेरा लाजिम है तूँ मेरी मान
 रह के दायरों मे तूँ मेरा प्यार हो नहीं सकता

 रिश्तों में हदें होती हैं नहीं प्यार में होती
 हदों में रिश्ते निभ सकते हैं प्यार हो नहीं सकता

खुले आकाश मे उडना अगर चाहत है तो सुन ले
हदों के पिंजरे मे रहके ये मुमकिन हो नहीं सकता

 निकल जाती है गाडी सामने से उस मुसाफिर के
 जो रहते वक्त गाडी मे सवार हो नहीं सकता

मेरे तन मन पे जब अधिकार तेरा , सिर्फ तेरा है
 तो क्यों तुझ पर यही अधिकार मेरा हो नहीं सकता

Wednesday, June 3, 2009

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना

कोई प्यार कहे या वफा कहे जो चाहे रंग दे रिश्तों को
हर रग के पीछे छुपी हुई सच में तो कोई जरूरत है

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना
 यहाँ अपना पराया कुछ भी नहीं जो कुछ है सिर्फ जरूरत है

 वो शख्स कहां रहता अपना चाहे कितना भी अपना हो
 जो पूरी नहीं कर पाता है जैसी जब हमें जरूरत है

दिन रात दुहाई देता है जिन रिश्तों में गहराई की
उतने गहरे रिश्ते हैं यहाँ बस जितनी गहरी जरूरत है

 रिश्ता वो लम्बा चलता है कोई गरज सी जिसमें बनी रहे
 ये गरज भी इतनी बुरी नहीं रिश्तों की ये पहली जरूरत है

कभी सोचा है तेरा मेरा रिश्ता अब तक क्यों कायम है
कुछ तेरी जरूरत है मुझ को कुछ मेरी तुझे जरूरत है

तुम्हे ठीक लगे तो आओ फिर नये रिश्ते का आगाज करें
 तुम मेरी जरूरत को समझो मै समझूँ क्या तेरी जरूरत है

Tuesday, June 2, 2009

अपनी ही खनक से जो टूटी थी तेरी चूड़ीयां

जितने भी थे इल्जाम सारे मेरे नाम हो गये
चलो इसी बहाने तेरे सारे काम हो गये

साथ छूटने का गम ,यूँ भी तो , कुछ कम ना था
 पर तूँ जुदा हुआ तो यूँ , हम बदनाम हो गये

लेकिन नहीं मुझ को रहा ,तुझ से कोई भी गिला
 जब ये सोचा ,साथ रह के, तुझ को मुझ से क्या मिला

 मैं ना कहता था, कि मेरे , आसुऔ को पोछ मत
ला आंचल हो गया, तो, इस में मेरी क्या खता

आयेगा वो वक्त भी जब सोचना होगा तुझे
मुझसे जुदा तूँ है भला ,या साथ मेरा था भला

 पहले तो हर इल्जाम , मेरे सर पे रख देता था तूँ
 मै नही हूँ साथ , तो ,किस की बतायेगा खता

अपनी ही खनक से जो टूटी थी तेरी चूड़ीयां
उनका भी इल्जाम मेरे सर पे रख के क्या मिला

Monday, June 1, 2009

रफू के साथ ही सुराख बढते जा रहें हैं

हादसे हद से बढते जा रहे हैं
 हम अपने कद में घटते जा रहे हैं

 रफू कैसे करुंगा मैं अपना चाक दामन
रफू के साथ ही सुराख बढते जा रहें हैं

 बहुत मुश्किल है अब तो नग्न होने से बचना
 बदन पे वस्त्र तो हर रोज घटते जा रहें हैं

ना जाने कौन मौसम में मुझे ज़ख्मी किया तुमने
कि सारे ज़ख्म ही नासूर बनते जा रहे हैं

 समय के साथ भर जाते ज़ख्म कोई गैर जो देता
 ये मेरे ज़ख्म तो हर रोज़ बढते जा रहे हैं

 दीया बुझाने का इल्ज़ाम ना ले सब्र कर थोड़ा
 हवांए तेज हैं दीये खुद ही बुझते जा रहे हैं

जब तक कोई मोड़ नहीं आता हर रिश्ता साथ निभायेगा

रिश्तों की हकीकत इतनी है,
और, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं

कोई गर्ज़ रही, तो रिश्ता चला,
 नहीं पूरी हुई, तो टूट गया

तूं नाहक ढूंढता फिरता है,
 इन रिश्तों में गहराई को

 ये उस मटके से रीते हैं,
हो जिसका पैंदा फूट गया

तूं आज इसे ना मान, मगर
 ,इक रोज़ समझ आ जायेगा

जब तक कोई मोड़ नहीं आता
 हर रिश्ता साथ निभायेगा

 सब शाबासी देंगें तुझको
तूं जब तक बोझ उठायेगा

 पर राह में छोड़ के चल देंगें
जब बोझ तूं खुद बन जायेगा

 रिश्तों की ह्कीकत इतनी है
और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं

Friday, May 29, 2009

तूं किनारे पर खडा रिश्तों पे ना दे फ़ैसला

अब तो अपनी जिंदगी से थक गया हूँ
या यूँ कहो, वृक्ष का फल हूँ, पक गया हूँ
फल लगा तो जिसने देखा उसने सोचा तोड़ डालें
चाहने वालों ने मेरे मुझपे ही पत्थर उछाले
किस कदर मुश्किल है बचना चाहने वालों से अपने
देख कर बचना नामुमकिन, खुद-ब-खुद टपक गया हूँ
अब तो अपनी जिंदगी से थक गया हूँ
यार का गम प्यार का गम दुनिया के व्यवहार का गम
किस को बतलाते कि सब से मिल के भी तन्हा रहे हम
सब से ही छुपाते रहे, गम में भी मुस्काते रहे
पर इक रुके आंसु सा बेबस आज तो छलक गया हूं
अब तो अपनी जिन्दगी से थक गया हूँ
रिश्ते खुदगरजी के निकले, नाते मनमरजी के निकले
प्यार, वफा, चाह्त, अपनापन शब्द ये सारे फर्ज़ी निकले
तूं किनारे पर खडा रिश्तों पे ना दे फ़ैसला
मुझ से पूछ, मैं तो इनकी आखिरी ह्द तक गया हूँ
अब तो अपनी जिन्दगी से थक गया हूँ

जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी


कोई तो हुनर में माहिर है वरना ये कैसे मुमकिन है
 घर सब के जला के राख करे और उस पे आँच ना आये कभी

हम ने तो जब भी कोशिश की घर किसीका रोशन करने की
 चिराग जला, पर जलने से, हाथ अपने बचा ना पाये कभी

 वो ऐसी अदा से पोंछता है किसी आँख के बहते हुए आँसु
 अपने आंचल का कोना भी गल्ती से भीग ना जाये कभी

हम ने तो अपने आंचल से किसी आँख के आँसु जब पोंछे
आंचल गीला कर आए कभी आँखो में नमी भर लाए कभी

अपना तो इरादा इतना था कि इक "अच्छा" इन्सान बने
कई बार गिरे कई बार उठे पर पूरा संभल ना पाये कभी

कोई गुण बदला कि ना बदला ,चेहरा बदला ,चोला बदला
 और जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी

Thursday, May 28, 2009

इस दुनिया में, हर रिश्ते की , होती बुनियाद जरूरत है


ना प्यार कोई, ना वफा कोई, ना चाहत है, ना अपनापन
 इस दुनिया में, हर रिश्ते की , होती बुनियाद जरूरत है
बुनियाद ही क्या, इन रिश्तों की, बहुमंजिल खड़ी इमारत में
हर छत को संभाले खड़ी हुई ,इक इक दीवार जरूरत है
हालात की कोख से जन्मे हैं, तेरे मेरे सारे रिश्ते
इस दुनिया मे हर रिश्ते को करती ईज़ाद जरूरत है
जो चाहे नाम दो रिश्तों को कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला
है बात असल मे इतनी ही सब का आधार जरूरत है
यहाँ तेरी जरूरत की खातिर कोई तुझसे नहीं रखता रिश्ता
रिश्तों को बनाने में सब की अपनी ही कोई जरूरत है    
बदले हालात , तो छितरेंगे , तेरे मेरे सारे रिश्ते
रिश्तो को जो बान्धे रखती है, वो डोरी सिर्फ जरूरत है
ता उम्र निभाना रिश्तों का, मजबूरी है, कोई प्यार नहीं
रिश्ते ढोने ही पड़ते हैं, जब लगे कि इन की जरूरत है
कभी  सोचा है तेरा मेरा रिश्ता अब तक क्यों कायम है
कुछ तेरी ज़रूरत है हुमको कुछ मेरी तुझे ज़रूरत है 

Wednesday, May 27, 2009

और भी हुस्न वाले है तू ही नहीं

तेरे दिल मे भी हैं तेरे कदमो मे भी
जाने क्यो हम नजर तुझ को आते नहीं
दूरी हर सुबह ओ शाम और भी बढ गयी
आप चलते नहीं हम ठहर पाते नहीं
याद तो हम तुम्हें करते हैं रात दिन
जाने क्यों पर तुम्हे हम बताते नही
आप कितना चले किस दिशा मे चले
हिसाब क्यों तुम खुद ही लगाते नहीं
दोस्त हैं कि कहे बिन समझते नही
हम है कि जो कुछ कह पाते नहीं
कहने को तो बहुत था मेरे पास भी
तुम समझते नहीं हम समझा पाते नहीं
तेरी हां से खुशी जब से होती नहीं
तेरी ना से हम तबसे घबराते नहीं
हैं और भी हुस्न वाले एक तू ही नही
ये कह के कीमत तेरी हम घटाते नही
तू भी तो ये समझ हम से चाहने वाले
रोज़ महफिल मे तेरी यूं आते नहीं

Tuesday, May 26, 2009

जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी

कोई तो हुनर में माहिर है वरना ये कैसे मुमकिन है
घर सब के जला के राख करे और उस पे आँच ना आये कभी
हम ने तो जब भी कोशिश की घर किसीका रोशन करने की
चिराग जला, पर जलने से, हाथ अपने बचा ना पाये कभी
वो ऐसी अदा से पोंछता है किसी आँख के बहते हुए आँसु
 अपने आंचल का कोना भी गल्ती से भीग ना जाये कभी
हम ने तो अपने आंचल से किसी आँख के आँसु जब पोंछे
 आंचल गीला कर आए कभी आँखो में नमी भर लाए कभी
अपना तो इरादा इतना था कि इक "अच्छा" इन्सान बने
कई बार गिरे कई बार उठे पर पूरा संभल ना पाये कभी
 कोई गुण बदला कि ना बदला ,चेहरा बदला ,चोला बदला
 जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी

Monday, May 25, 2009

रुख जिन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा

जीना भी हादसा, यहां, मरना भी हादसा
जो कुछ भी हो रहा यहाँ, सब कुछ है हादसा
इक हादसे से ही जन्म, तेरा मेरा हुआ
मर जायेंगें, जब और कोई होगा हादसा
तेरे मेरे वज़ूद की करता है बात क्या
दुनियाँ आई वज़ूद में, वो भी था हादसा
कोई हादसा हुआ तो तब जाकर पता चला
रुख़ ज़िन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा
कुछ पा लिया तो अपने को काबिल समझ लिया
कुछ खो गया तो दोषी मुकद्दर बता दिया
क्यों मानता नहीं कि हैं दोनों ही हादसा
खोना जो हादसा है तो पाना भी हादसा
जो कुछ भी हो रहा यहाँ, सब कुछ है हादसा
ना कोई वफादार है, ना कोई बेवफा
जो कुछ हुआ, हालात का था तय किया हुआ
निभानी पड़े वफा, तो सब वफा के हैं खुदा
सच तो है बेवफाई का मौका कहाँ मिला
मौका मिला, वफा का मुखौटा उतर गया
चल पड़ा फिर बेवफाईयों का सिलसिला
की उसने बेवफाई दिया नाम हादसा
रुख जिन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा

Friday, May 1, 2009

कुछ ये भी

ना बिन मागे मोती मिले ना मांगे से भीख
 कोई नहीं कुछ देता खीचना पडता है ये सीख

देने को तैयार सब तू जबतक कुछ ना ले
तुझ को जब लेना पडा कोई कुछ नही दे

ना पहले से यार हैं ना प्यार ना रिश्तेदार
अब तो सब करने लगे प्यार मे भी व्यापार

 जिसको तुझसे गरज़ है वही है तेरा यार
 अपनी गर्ज तक तेरे है यार या रिश्तेदार

 आज नही तो कल तुझे होना है अहसास
 श्वान समान है जिन्दगी नही जो पैसा पास

अपनी शराफत खुद रहा बार बार वो तोल
पगला ये नही जानता रहा ना इसका मोल

 प्यार निभाने का चला  अब तो ढग अनोखा
 हींग लगे ना फिटकरी रंग सब चाहे चोखा

 झूठे दावे प्यार के मतलबी रिश्ते खास
सब के मन मतलब छुपा बाकी सब बकवास

 शोख है पर पक्का नहीं रंग वफा का यार
 पहली धूप मे उडन छू पहली धुवन बेकार

मिले तो  गले लगाये है  बिछुडे नमस्कार
इससे ज्यादा आवभगत अब ना रखे यार

Thursday, April 30, 2009

मौत मेरी हादसा या खु्दकशी हरगिज नही
कत्ल है बस आपको कातिल नजर आता नही
 इस तरह से यार मेरा कत्ल मेरा कर गया
 यू लगा जैसे मै अपनी आयी मौत मर गया
बेवजह सब लोग जाने मौत से डरते है क्यों
 मै तो अपनी जिन्दगी का चेहरा देख के डर गया
 सांसो के सिवा जिन्दगी ने जिन्दगी भर क्या दिया
 लो आज़ उसका ये भी कर्ज़ हमने वापिस कर दिया
 दूजो का दर्द बाँटने की ये भी क्या आदत हुई
इक इक कर झोली में अपनी दर्द ही दर्द भर लिया
कशमक्श मे यार को देखा तो हमने ये किया
खुद ही अपना सर खन्जर पे जाके धर दिया

Tuesday, April 28, 2009

ये सोच के झोली फैला ना बैठ पेड के तले
 पक के फ़ल इक रोज़ तेरी झोली मे गिर जायेगा

 उसको नही मालूम ये इस बाग का दस्तूर है
पकने से पहले कोई दूजा तोड के ले जायेगा

आज तो तू भीगने से डर रहा है जाने मन
 कल ये बारिशो का मौसम ही नहीं रह जायेगा

भीगने दे तन बदन और बुझने दे मन की अग्न
कौन जाने फिर ये सावन लौट के कब आयेगा

ना तू इस से पहले था ना इसके बाद होगा कभी
जो जी करे सो कर गुजर वरना बहुत पछतायेगा

Monday, April 27, 2009

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना
 दुश्मनी रोज अन्धेरों से बनाये रखना

 सैकडों दीप भी कुछ कम ही नजर आते है
 आन्धियों मे पडे जब दीप जलाये रखना

 भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
 तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना

 रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
 है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना

 इतना आसा भी नही जितना समझ बैठे थे हम
 इश्क की आग को इस दिल मे दबाये रखना

गैरों से राज़ छुपा कर ना समझ राज है ये
लाजिमी ये भी था अपनो से छुपाये रखना

उन्हें तुफाँ से गुजारिश नही करनी पडती
 सीख लेते है जो पतवार चलाये रखना

आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे
तब घरोन्दो का नामुमकिन है बचाये रखना

कागजी फूलो पे तितली तो बुला लीजे मगर
 नकली खुश्बु से नामुमकिन है रिझाये रखना

रेत से महल बनाना नहीं इतना मुशकिल
जितना मुश्किल है बने महल बचाये रखना

ना  ही समझो तो है बेहतर कि ये रिश्ते क्या है
 मुश्किल हो जायेगा रिश्तो का बनाये रखना

Sunday, April 26, 2009

लम्हो की क्या कद्र थी जाकर पता ये तब चला

जिन्दगी मे जब सही कोई फैसला हमने लिया
 वक्त ने हर बार हमको गल्त साबित कर दिया

लम्हो की क्या कद्र थी जाकर पता ये तब चला
 वक्त ने हिसाब जब एक एक लम्हे का लिया

क्या पता कब वक्त होता है किसी पे मेहरबाँ
 वक्त ने जब भी लिया हम से तो बदला ही लिया

 हम तो नासमझी मे यारा भूल कोई कर गये
खुद से भी तो पूछ लो तुमने आखिर क्या किया

 जब भी चाहा जिन्दगी को खूबसूरत मोड़ दे
हालात ने इस जिन्दगी को और बदरग कर दिया

लम्हा लम्हा करके आखिर काट ही दी जिन्दगी
आखिरी लम्हो मे क्या सोचे कि आखिर क्या किया

Saturday, April 25, 2009

हवाओ का रुख क्या बदला मौसम बदल गये

हवाओ का रुख क्या बदला मौसम बदल गये
खुशिया बदल गयी सब गम भी बदल गये
 बेवफाई,बेहयायी नहीं गालियां रही अब
 ये लफ्ज तरक्की के सान्चे मे ढल गये
हम जानते है हमदम तुम झूठ कह रहे हो
फिर भी बहलाया तूने और हम बहल गये
 मजबूरीयों को मेरी तुम बहादुरी ना समझो
 छोड़ा जो हाथ सब ने तो खुद संभल गये
ये कौन सी है मन्जिल सुनसान हर डगर है
 इस राह के मुसाफिर किधर निकल गये
मन्जिल की धुन मे सब ने क्यों होश खो दिये
 कब छूट गये साथी कब रस्ते बदल गये
दिल है तो धडकेगा भी है रोकना नामुमकिन
 क्यों खफा हो जानेमन जो अरमाँ मचल गये
 हुस्न की ये गलियों फिसलन भरी थी यारो
चले लाख हम संभल के फिर भी फिसल गये

Friday, April 24, 2009

ईन्ट पत्थर की दीवारो को कहें घर कैसे

ईन्ट पत्थर की दीवारो को कहें घर कैसे
घर में अपनो को जरूरी है बसाये रखना
अब तो आ जाओ कि घर घर ना रहा तेरे बिना
 चाहो तो हम से भले दूरी बनाये रखना
आप घर मे तो नहीं दिल मे ही रहते हो सनम
 काफी है दिल मे क्या बसना या बसाये रखना
मेरी तकलीफ से तुझको कोई तकलीफ ना हो
 अपनी तकलीफें जरूरी था छिपाये रखना
उफ ये बरसात का मौसम ये टपकती हुई छत
और तेरे खत भी हैं पानी से बचाये रखना
लुटने लायक तो नही बाकी बचा कुछ घर मे
 फिर भी आदत सी है तालों का लगाये रखना
 सिर्फ सांसो से नही उम्मीद से जिन्दा है सभी
 तुम भी उम्मीद मेरी उम्मीद बनाये रखना

Thursday, April 23, 2009

है आग वासना की मौका मिलते ही वो बुझायेगा

देखते है कौन कब तक चेहरा अपना छुपायेगा
परदो मे हो इक दिन सामने आ जायेगा
 रिश्ता भी झूठा है उसका प्यार भी झूठा सनम
 जो इसे सच मान लेगा वो बहुत पछतायेगा
 ये जो प्यार प्यार रटता फिर रहा है रात दिन
 है आग वासना की मौका मिलते ही वो बुझायेगा
 रिश्ता है खुदगरजी का प्यार का बस नाम है
 रावण है साधु वेष मे सीता हरण कर जायेगा
 बेसबब भटकेगा क्यों कोई शख्स तेरी राहों मे
माल भी तो वसूलेगा जब दाम कोई चुकायेगा
 ये और बात है निशाना किसका कब लग पायेगा
 मन्जिल है सब की एक रस्ते हों भले जुदा जुदा
सीधा कोई पहुंचेगा कोई घूम के वहां आयेगा

Wednesday, April 22, 2009

आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना
दुश्मनी रोज अन्धेरों से बनाये रखना
सैकडों दीप भी कुछ कम ही नजर आते है
आन्धियों मे पडे जब दीप जलाये रखना
भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना
रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
 है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना
इतना आसा भी नही जितना समझ बैठे थे
हम इश्क की आग को इस दिल मे दबाये रखना
गैरों से राज़ छुपा कर ना समझ राज है ये
लाजिमी ये भी था अपनो से छुपाये रखना
उन्हें तुफाँ से गुजारिश नही करनी पडती
सीख लेते है जो पतवार चलाये रखना
आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे
तब घरोन्दो का नामुमकिन है बचाये रखना
कागजी फूलो पे तितली तो बुला लीजे मगर
नकली खुश्बु से नामुमकिन है रिझाये रखना
रेत से महल बनाना नहीं इतना मुशकिल
जितना मुश्किल है बने महल बचाये रखना
ना ही समझो तो है बेहतर कि ये रिश्ते क्या है
मुश्किल हो जायेगा रिश्तो का बनाये रखना

Tuesday, April 21, 2009

मोहरा सब हैं बने हुए इक दूसरे के हाथों मे

जब समुन्द्र से कोई कतरा जुदा हो जायेगा
समुन्द्र तो घटना नही कतरा फना हो जायेगा
दूर रहने से कहा मिटती हैं दिल की दूरीया
इस तरह तो फ़ासला और भी बढ जायेगा
चुप रहोगे तो मिटेगे किस तरह शिकवे गिले
बात ना करने का गिला और इक बढ जायेगा
बढ गये साधन सफ़र के मन्जिले आसाँ हुई
दिल से दिल का फासला शायद ही मिट पायेगा
जन्मो जन्म तक है चलता प्यार ये तो यूँ हुआ
धुप ना बारिश तो छाता सदियों चलता जायेगा
मोहरा सब हैं बने हुए इक दूसरे के हाथ मे
देखें कौन मोहरा पहले अपनी जान गवायेगा
इक दूसरे का इस्तेमाल करने मे माहिर है सब
इस पैतरेबाजी मे देखे कौन किसको हरायेगा
शोख तो दिखता है लेकिन कच्चा है रगे वफा
 पहली बारिश पडते ही सारा रग धुल जायेगा

Monday, April 20, 2009

जिन्दगी क्या है समझने मे गवाँ दी जिन्दगानी

बनती कहाँ है तुम बनाना चाहो जैसी जिन्दगानी
साजिशों का शिकार है बचपन बुढापा और जवानी
अन्त तो शुरूआत मे ही सोच कर चलते हैं सब
फिर उलझ जाती है आकर अन्त मे क्यों हर कहानी
क्या पता किस मोड पर आन्ख मेरी लग गयी
किरदार मनमाने हुये बदल गयी सारी कहानी
कौन जाने अब कहानी का होगा अन्जाम क्या
किरदार सारे लिख रहे अपना रोल अपनी कहानी
मै जानता हू तेरा ही किया कराया है सनम
फिर भी सुनना चाहता हूं तेरा जुर्म तेरी जबानी
परेशानियों ने जब कदम रखा घर की दहलीज पर
झाँकने खिडकी से बाहर लग गयी घर की जवानी
ये समझ वालो की नासमझी नही तो और क्या
जिन्दगी क्या है समझने मे गवाँ दी जिन्दगानी
उसकी इक इक बात पर बजती है सौ सौ तालिया
  कामयाबी खुद सिखा देती है यूँ बाते बनानी

Sunday, April 19, 2009

मौत को जालिम ना कह, है जिन्दगी ही बेवफा

मौत को जालिम ना कह, है जिन्दगी ही बेवफा
जान पहले जाती है, तब मौत आती है सदा
मौत आ सकती नहीं गर जाँ ना जाये जिस्म से
जाँ ने साथ छोड़ा तो बाहों मे मौत ने लिया
धीरे धीरे जाँ जिस्म से दूर खुद होती गयी
इल्जाम लेकिन जिन्दगी ने मौत के सर धर दिया
जाँ भी बीवी की तरह ही बेवफा सी हो गयी
जिस्म यूँ छोड़ा बीवी ने छोड़ ज्यों शौहर दिया
धूप का टुकडा कोई जब भी उतरा आसमा से
बाहे फैला के धरती ने आगोश मे अपनी लिया
ये क्या अपनापन हुआ ये क्या प्यार है भला
साथ देना तब तलक ठीक जब तक सब चला
बेवफा खुद होती है बीवी हो या फिर जिन्दगी
सौत को या मौत को बदनाम मुफ्त मे किया

Saturday, April 18, 2009

Nothing comes free nothing free of cost
 One thing we gain other is lost
 So goes true for marriages the most
 Wife we get but life is lost
 The only unhappiness we happily embrace
Winner always loses what a funny race
 I FAIL TO UNDERSTAND SURELY i FAIL
 Why wife a jailor why house a jail
 If ever freedom comes it is on the bail
 Marriage is gamble never play it friend
Live-in-together is safest latest trend
This bet is gone whatever you choose
Heads she wins and tail you lose
 Once cross adolescence reach adult age
 Society always takes full advantage
All around you set such a stage
 King of the jungle self enters the cage
 Caged he can eat drink and roar
 But sorry he can't do,any thing more
No choice no freedom nowhere to go
 Master to dictate and he to follow
 Lives on whatever in the cage supplied
 I call him dead you call him satisfied
Whether it is success or it is flop
 fREEDOM OR Happiness MARRIAGE full stop

Friday, April 17, 2009

कश्ती डूबने से जयादा गम हुआ इस बात का
 दोस्त भी शामिल थे  साहिल के तमाशाईयो मे

 बातें ही करते है सब इमदाद कुछ करते नही
दोस्ती अब रह गयी है गजलो और रुबाईयो मे

कौन बूढी मां को रखे कौन रखे बाप को
बहस है छिडी हूई कई रोज से दो भाईयो मे

 मुर्गी तो जान से गयी झटका हो कि हलाल हो
फर्क करते रह गये हम दो तरह के कसाईयो मे

क्या क्या किये बुढापे को छुपाने के हमने   यत्न
पर राज सारे खोल डाले चेहरे की झाईयों  ने

 देखो तो किस मुकाम पे यारो ने पंहुचाया हमें
 हैं भीड मे तन्हा मगर तन्हा नही तन्हाईयो मे

कतरे कतरे से समुन्दर बन नही सकता कभी
 जान लोगे उतरोगे जब इसकी तुम गहराईयों में

मेरी बरबादी पे दुश्मन किस लिये इतरा रहे
अपने  सब  शामिल थे मेरे मेरी इन तबाहइयों मे

Thursday, April 16, 2009

ये समझने की नही जीने की शै है जिन्दगानी

मौसमी बरसात सा भी क्यों बहे आँखों से पानी
दर्द के गलेशियर पिघलने की बन कर निशानी
खाली रख आन्खे अगर सपना बसाना है कोइ
भर ना आँखों मे कभी कतरा कतरा खारा पानी
जीना है तो मौज से जी हरइक लम्हा जिन्दगी का
फिर नही मिलना तुझे क्या बुढापा क्या जवानी
ये किताबों का लिखा किस काम का तेरे लिये
वो थी उनकी जिन्दगी ये है तेरी जिन्दगानी
क्या हुआ कैसे हुआ और सब क्योंकर हुआ
क्या करोगे जान कर बोलेंगे सब झूठी कहानी
ये समझने की नही जीने की शै है जिन्दगानी
ना समझने मे गवाँ समझकर होना है क्या
जो तुझे अच्छा लगे वो करगुजर और मस्त रह
खत्म तो हर हाल होनी है सभी की जिन्दगानी
शुरुआत से अन्जाम का अन्दाजा क्या लगाई ये
क्या पता किस मोड से क्या मोड ले जाये कहानी
मेरी चाहत और उम्मीदे तुझसे थी सबसे अलग
तूने चाही यारी लेकिन औरो की तरह निभानी
आसमा पडता है छोटा बढने लगते जब कदम
रुकने पे दो गज जमी खत्म कर देती कहानी
सपने तेरे है तो फिर पूरे भी करने तुझ को है
कोई दे तेरे लिये क्यों अपने सपनों की कुर्बानी

Wednesday, April 15, 2009

ठोकर लगने पर समझ आ जाये जरूरी ये नहीं

दोस्त जब अहसान उन्गलियों पे गिनवाने लगे
बेखौफ हम अहसान फरामोश हो जाने लगे
तुम देखना इक रोज ये तस्वीर बदलेगी जरूर
हालात से फिर बेवजह कोई क्यों घबराने लगे
आप तो कहते थे बारिशों का ये मौसम नही
आसमां पे फिर घने बादल हैं क्यों छाने लगे
क्यों मिटा रहा है तूँ राहो से कदमो के निशा
क्या खबर कब कौन वापिस लौट के आने लगे
मानी उसकी बात यूँ जैसे खुदा का हो कहा
बात जब अपनी रखी तो उठके वो जाने लगे
आज पतझड है तो कल बहार आनी है जरूर
क्या हुआ पत्ते अगर शाखों से गिर जाने लगे
मौसम ए बहार माना आयेगा इक दिन जरूर
उनका क्या जो बनके ठूंठ आज गिर जाने लगे
मेरी सूरत आपकी सूरत से कुछ अलग ना थी
आईना सब लोग क्यों मुझको ही दिखलाने लगे
मै गलत ना था मगर कमजोर जब मै पड गया
इल्जाम इक इक कर के सारे मेरे सर आने लगे
ज़िन्दगी उतरी है जिद पे फेल करने को हमे
मुश्किल सवाल सारे मेरे हिस्से हैं आने लगे
ठोकर लगने पर समझ आ जाये जरूरी ये नहीं
हम गिरे गिर कर उठे उसी राह फिर जाने लगे

Tuesday, April 14, 2009

बेसबब मचा है शोर कि मौसम बदल गये हैं
सच तो है ये मेरी जां हम तुम बदल गये हैं
बस बात बात मे ही सब बदल गयी है बात
कुछ तुम बदल गये हो कुछ हम बदल गये हैं
बेवजह उदास रहना कुछ बन गयी है आदत
और कुछ खुशी के सारे आलम बदल गये है
अब खुल के हंसना रोना है भूलने लगे सब
खुशियों बदल गयी है मातम बदल गये हैं
ना जाने जख्म कोई भ्ररता नही क्यों सदियों
नश्तर बदल गये या मरहम बदल गये हैं
कोई जुल्म देखकर भी नहीं खून खोलता
अब बदला है कुछ लहु या दमखम बदल गये हैं
लहरा रहा है अब तो हर शख्स अपना झन्डा
बदली है कुछ हवा कुछ परचम बदल गये हैं
ये दोस्ती,मोहब्बत ये जन्मों जन्म के रिश्ते
बदली है जब जरूरत उसी दम बदल गये है
मजबूरीयों को हिम्मत का नाम दे रहे सब
अब सूली पे चढाने के नियम बदल गये है
कभी खुदकशी शहादत कभी हादसा शहादत
शहादत बदल गयी  शहीदएआजम बदल गये हैं

Monday, April 13, 2009

लिखो अब ऐसी गजल जिसके हरइक लफ्ज मे

क्या दिखाये ख्वाब,सच क्या सामने आने लगे
 ए फरेब-ए-जिन्दगी,हम तुझसे घबराने लगे
 किस किस्म के बीज थे जाने कैसी जमीन थी
पोधो पे फूलो की जगह कान्टे नजर आने लगे
 यूँ मानने को मान लेता हूँ तेरी हर बात मैं
 वैसे तो हर बात तेरी मुझ को बेमायने लगे
 अब तेरे मेरे बचने की उम्मीद बचती है कहां
 हमको बचाने वाले तो खुद को बचाने मे लगे
 खेत मे तू ही बता कोई फसल बचती हैं कभी
 खेत की जब बाड़ खुद ही खेत को खाने लगे
 दूरी की बात और थी नजदीक जब गये कभी
 ये ऊन्चे कद वाले सभी बौने नजर आने लगे
 पढके अब गजलें नयी कुछ भी नया लगता नहीं
 वही मतले हैं वही काफिया वही शेर पुराने लगे
 लगता है कि लोग अब थोडा कांट छांट कर
 कुछ बासी फूलो से नये गुलदस्ते बनाने लगे
 लिखो अब ऐसी गजल जिसके हरइक लफ्ज मे
 हों गुल नये गुलशन नया मौसम नया छाने लगे

Sunday, April 12, 2009

मन मे सबके आँख मछली की निशाने पर ही है

देखते है कौन कब तक चेहरा अपना छुपायेगा
 लाख परदो मे हो इक दिन सामने आ जायेगा
रिश्ता भी झूठा है उसका प्यार भी झूठा सनम
जो इसे सच मान लेगा वो बहुत पछतायेगा
 ये जो प्यार प्यार रटता फिर रहा है रात दिन
 है आग वासना की मौका मिलते ही बुझायेगा
 रिश्ता है खुदगरजी का प्यार का बस नाम है
 रावण है साधु वेष मे सीता हरण कर जायेगा
 बेसबब भटकेगा क्यों कोई शख्स तेरी राहों मे
 माल भी तो वसूलेगा जब दाम कोई चुकायेगा
 मन मे सबके आँख मछली की निशाने पर ही है
 ये और बात है निशाना किसका कब लग पायेगा
 मन्जिल है सब की एक रस्ते हों भले जुदा जुदा
 सीधा कोई पहुंचेगा कोई घूम के वहां आयेगा

Saturday, April 11, 2009

वो आये मेरी दुनिया मे लेकिन ये देखो आये कब

जिन्दगी के मायने तब समझ आने लगे
 चाहने वाले मेरे जब मुझ को ठुकराने लगे
 देखता हू आईना तो ऐसा लगता है मुझे
 सीने मे द्फन गम हैं चेहरे पे नजर आने लगे
 हमने जिन हाथों मे अक्सर फूल थमाये कभी
 वो हाथ ही सर पे मेरे पत्थर हैं बरसाने लगे
 देखा जब सीने मे नये जख्मो की जगह नहीं
 दोस्त कान्टो से पुराने जख्म सहलाने लगे
 ना कहें उसे बेवफा तो क्या कहें तू ही बता
 जब दोस्त मेरा दुश्मनी की रस्म निभाने लगें
 जिनको उंगली पकड़ के चलना सिखाया था कभी
मार के टंगडी मुझे अब वो ही गिराने लगे
 वो उग़लियों पे भूल मेरी गिन रहा था बार बार
 शर्मिन्दा हुआ जब हम गुनाह उसके गिनवाने लगे
 वो आये मेरी दुनिया मे लेकिन ये देखो आये कब
 जब छोड सारी दुनिया हम दुनिया से जाने लगे
 उम्र भर मौका था मनने और मनाने का सनम
 क्यों उम्र खत्म होने पे तुम हमको मनाने लगे
 इक मुस्कराहट से तेरी मिट सकते थे मेरे गिले
 क्यों बेवजह फिर आप आँसू आँखो मे लाने लगे
 जिन्दगी भर जो मुझे तकलीफ देकर खुश रहे
मरने पे मेरे वो ही ज्यादा आँसू बहाने लगे