Thursday, April 16, 2009

ये समझने की नही जीने की शै है जिन्दगानी

मौसमी बरसात सा भी क्यों बहे आँखों से पानी
दर्द के गलेशियर पिघलने की बन कर निशानी
खाली रख आन्खे अगर सपना बसाना है कोइ
भर ना आँखों मे कभी कतरा कतरा खारा पानी
जीना है तो मौज से जी हरइक लम्हा जिन्दगी का
फिर नही मिलना तुझे क्या बुढापा क्या जवानी
ये किताबों का लिखा किस काम का तेरे लिये
वो थी उनकी जिन्दगी ये है तेरी जिन्दगानी
क्या हुआ कैसे हुआ और सब क्योंकर हुआ
क्या करोगे जान कर बोलेंगे सब झूठी कहानी
ये समझने की नही जीने की शै है जिन्दगानी
ना समझने मे गवाँ समझकर होना है क्या
जो तुझे अच्छा लगे वो करगुजर और मस्त रह
खत्म तो हर हाल होनी है सभी की जिन्दगानी
शुरुआत से अन्जाम का अन्दाजा क्या लगाई ये
क्या पता किस मोड से क्या मोड ले जाये कहानी
मेरी चाहत और उम्मीदे तुझसे थी सबसे अलग
तूने चाही यारी लेकिन औरो की तरह निभानी
आसमा पडता है छोटा बढने लगते जब कदम
रुकने पे दो गज जमी खत्म कर देती कहानी
सपने तेरे है तो फिर पूरे भी करने तुझ को है
कोई दे तेरे लिये क्यों अपने सपनों की कुर्बानी

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