Monday, April 13, 2009

लिखो अब ऐसी गजल जिसके हरइक लफ्ज मे

क्या दिखाये ख्वाब,सच क्या सामने आने लगे
 ए फरेब-ए-जिन्दगी,हम तुझसे घबराने लगे
 किस किस्म के बीज थे जाने कैसी जमीन थी
पोधो पे फूलो की जगह कान्टे नजर आने लगे
 यूँ मानने को मान लेता हूँ तेरी हर बात मैं
 वैसे तो हर बात तेरी मुझ को बेमायने लगे
 अब तेरे मेरे बचने की उम्मीद बचती है कहां
 हमको बचाने वाले तो खुद को बचाने मे लगे
 खेत मे तू ही बता कोई फसल बचती हैं कभी
 खेत की जब बाड़ खुद ही खेत को खाने लगे
 दूरी की बात और थी नजदीक जब गये कभी
 ये ऊन्चे कद वाले सभी बौने नजर आने लगे
 पढके अब गजलें नयी कुछ भी नया लगता नहीं
 वही मतले हैं वही काफिया वही शेर पुराने लगे
 लगता है कि लोग अब थोडा कांट छांट कर
 कुछ बासी फूलो से नये गुलदस्ते बनाने लगे
 लिखो अब ऐसी गजल जिसके हरइक लफ्ज मे
 हों गुल नये गुलशन नया मौसम नया छाने लगे

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