Saturday, January 23, 2010

क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है

क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है
 है अब जवानी की दोपहरी तो सांझ कितनी दूर है

 इक बार सांझ हो गयी तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूं करना यत्न वो बात न रह पायेगी

 आँखों से कुछ दिखना नही तो नैन लड़ने किससे हैं
 मुंह में दांत ही ना होंगे हंस के किस को दिखायेगी

 बाल सब सफेद होगें और झड़ने भी लगेगे
 फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलाएगी

 ना उमंग तेरे मन में कोई  ना कशिश तेरे तन में होगी
 किससे फिर होगा मिलन फिर किससे मिलने जायेगी

इसलिए कहता हूँ मेरी मान कल पे टाल मत
ढूँढ़ हर जवाब मुझ में खुद से कर सवाल मत

 जो मिला है  वक्त अब, हर रोज मिल पाता नहीं
 कल का क्या है ये कभी आता कभी आता नहीं

कुदरत की हर  सौगात का कर पूरा इस्तेमाल तूं
यूं भी ढल जाएगा हुस्न कितना भी संभाल तूं

चाहने वालों की चाहत जो कोई ठुकराता है
 खुद भी चाहत के लिए इक उम्र तरस जाता है

Friday, January 22, 2010

हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम

इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई

मरहम लगाये बिन अगर जाना था वापिस यार को

बीमार जानता है जब कि मर्ज़ लाइलाज है

बेकार है झूठी तसल्ली देना फिर बीमार को

गर जीता जाए दिल किसीका हार कर अपना अहम

जीत से बेहतर समझ लो ऎसी हसीं हार को

माझी ही चाहता ना था कि पार पहुंचाए हमें

छोड़ गया था कीनारे पर ही वो पतवार को

हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम

बेवजह मुजरिम ना ठहरा माझी या मझधार को

जख्मो को सहलाता ना तो भी कोई ग़म ना था

और तो जख्मी ना करता जालिम मेरे प्यार को

साथ छोड़ने की बात करता था यार बार बार

हमने कहा आमीन और दिया छोड़ इस संसार को

Thursday, January 21, 2010

प्यार नही करना है तो फिर जताती क्यों हो

प्यार नही करना है तो फिर प्यार जताती क्यों हो
दूर दूर रहना है तो फिर पास में आती क्यों हो

दिल से दिल ही नही मिले तो जिस्म मिलेगे कैसे
 नही मिलाना दिल से दिल तो हाथ मिलाती क्यों हो

प्यास बुझाने की तुझ में ना चाहत है ना हिम्मत
 प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

 कोई आस नही होती पूरी तो बहुत निराशा होती
 आस नही करनी पूरी तो आस बंधाती क्यों हो

 दे सकती हो कोई दवा तो आकर पूछो हाल मेरा
दवा नही देनी तो दर्द भी याद दिलाती क्यों हो

 तेरी ही जिद्द थी अपने सब जख्म दिखाऊँ तुझको
 देख के अब जख्मों के मेरे नाहक घबराती क्यों हो

Tuesday, January 19, 2010

जी करता है कभी मै तेरे होंठ गुलाबी चूमू

तुम चाहो तो समझ लो ये कि गया मै तुझ से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

जी करता है कभी मैं तेरे होंठ गुलाबी चूमूं
कभी तुझे आगोश में लेकर बिना पीये ही झूमु

या होठों से कोई गजल लिखूं तेरे गालो पे
 या कोई गीत बनाऊं तेरे मखमली से बालों पे

 या गदराये जिस्म के तेरे अंग अंग पे लिखूं कविता
 या फिर तेरी चाल सी कोई ढूँढ़ लाऊं नई सरिता

 कभी तेरे गालों को चूमूं जुल्फों से तेरी खेलूं
और कभी मन करता कसके बाहों में तुझे लेलूं

 तुम चाहो तो कह लो इसको दबी वासना मेरी
 वैसे सीधे सच्चे शब्दों में प्रेम का है इजहार
 और अगर चाहो तो मान लो मुझे है तुम से प्यार

 पहरों बैठे रहें हम लेके इक दूजे का हाथ
 इक दिल दूजे दिल से कर ले बिन बोले हर बात

 शिकवा शिकायत और गिला बिना कहे मिट जा
ए तुम इक कदम बढाओ और दो कदम मेरे बढ़ जायें

 कभी तेरे हाथो की लकीरें मिलें मेरे हाथों में
 बिगड़ी किस्मत संवर जाए बातों ही बातों में

जी करता है जब भी तुम घर आओगी इस बार
 जिद्द कर तेरा हाथ पकड़ लू और करूं इसरार

बहुत दिनों के बाद अब लगता आता है इतवार
तुम चाहो तो समझ लो ये की मुझे है तुम से प्यार

Monday, January 18, 2010

तुम चाहो तो कह सकती हो मुझे है तुम से प्यार

तुम चाहो तो ये समझो कि गया मै तुम से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार
और अगर चाहो तो समझो तुम बिन रह नही सकता
 जो चाहो वो समझो लेकिन मै कुछ कह नहीं सकता

 हाँ इतना कहूगा और नही अब कर सकता इन्तजार
 तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

ना जीवन में रस है कोई ना ही कोई मज़ा है
ऐसे लगता है कि तुम बिन जीना एक सजा है

 सच तो ये है घर तुझ बिन खाली खाली लगता है
जैसे कोई गुलशन उजड़ा पतझड़ में दिखता है

इक तेरे आने से ही आ जायेगी फिर से बहार
तुम चाहो तो मान लो बेशक मुझे है तुम से प्यार

 रात कोई कटती है कैसे बदल बदल के करवट
 खुद ही बयां करेगी तुमसे बिस्तर की हर सिलवट

 याद तुम्हे करते करते कभी आँख अगर लग जाती
 सपनों में तुम आ जाती हो रात थोड़ी कट जाती

इसीलिए बस रात का मुझ को रहता है इन्तजार
तुम चाहो तो कह सकती हो मुझे है तुम से प्यार

Sunday, January 17, 2010

आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को

शायद ये जीत का  हुनर उसको  खुदा की देंन है
हर एक बाजी जीतता है पहले बाजी हार के

ये नही शतरंज ये तो इश्क की बिसात है
जीती जाती है यहां हर एक बाजी हार के

जान खुद दे दूंगा हंस के  कह दो  मेरे यार से
काम नाहक ले रहा क्यों  तीर से तलवार से

आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को
 बाहर निकलेगा परिंदा जो पिंजरे की दरो दीवार से

छाछ के भी हैं जले नहीं दूध के ही हम जले
हर शै को पीना पड़ता है अब फूंक मार मार के