Friday, May 2, 2008

जब कोई मुस्का के मिलने लगता है

जब कोई मुस्का के मिलने लगता है
 अपनो से भी ज्यादा अपना लगता है
 फिर मेरे आँगन मे कोई चाँद उतरने लगता है
 फिर ये मन का पंछी ऊँचे गगन मे उडने लगता है
 फिर इस ठूंठ की डाली डाली कोंपल फूटने लगती है
 फिर मुरझाये पौधो मे कोई फूल निकलने लगता है
 फिर सूखे खेतो में जैसे पानी पडने लगता है
 फिर बीजों से जैसे कोई अंकुर फूटने लगता है
 कया नही जानता बीज जमीं में पडे पडे सड जाते है
 नही पता क्या बादल अक्सर बिन बरसे उड जाते हैं
 फिर भी नील गगन में जब कोई बादल दिखने लगता है
 मुझ को मन की धरा पे बहता दरिया दिखने लगता है
 हर पल यूँ लगता है बादल अब बरसा कि तब बरसा
 कैसा भी हो मौसम मुझ को सावन लगने लगता है
 और कोई हंस कर जब मुझको कहने लगता है अपना
नयनो में बसने लगता है फिर से एक नया सपना
फिर से सारे रिश्ते मुझको सच्चे लगने लगते हैं
क्या अपने क्या बेगाने सब अपने लगने लगते हैं
 व्यापारियों की इस दुनिया में मै प्यार ढूंढता फिरता हूँ
सब कह्ते है नहीं मिलेगा बेकार ढूंढता फिरता हूँ

Thursday, May 1, 2008

खुद अपनी फिक्र करना सीख वरना जी ना पायेगा

खुद अपनी फिक्र करना सीख वरना जी ना पायेगा
कि आखिर में तेरा तुझ से ही रिश्ता काम आएगा 

 बना तूँ लाख रिश्ते , पर ना इनको आजमाना तुम
ये दुनिया है, इस दुनिया में , नही  कोई काम आयेगा 

 है इन्साँ क्या अजीबोचीज, ग़र सोचो, तो जानोगो
ये  इक सुख पाने की खातिर हज़ारों दुख उठाएगा

बहुत पाने के चक्कर में, ना जाने क्या क्या खो डाला
इधर से पायेगा  इन्सां , उधर से खोता जाएगा

लगा कर देख लेना , तूँ हिसाब , जब भी जी चाहे
 कि तेरे हाथ में आखिर तो बस "ज़ीरो" ही आयेगा 

 गये वो दिन सुनहरी मछलिया मिलती थी पानी मे
 अब गंगा हो , कि हो यमुना, सिर्फ घड़ियाल आयेगा 

 निगलना इनकी फितरत है, तो  इक दूजे को निगलेंगें
 निगलते थे जिसे मिलकर, वो जब नहीं हाथ आएगा

जीवन के इस सफर में, इक इक बन्धन ऐसा टूटा



इक इक करके हम से छूटे, सारे रिश्ते ऐसे 
पतझड़ के मौसम में झड़ते, पेड़ से पत्ते जैसे 
 अब इस पेड़ पर नहीं बचा है, एक भी पत्ता बाकी
 देखें कबतक खड़ा रहेगा, अब ये ठूंठ एकाकी

छोड़ घौसला पक्षी उड़ गये, जब कुछ नज़र ना आया
 अपना कहने वालों ने, बस, इतना साथ निभाया 
 क्च्चे धागे से भी क्च्चा, हर इक रिश्ता निकला
 हल्की सी जो तपिश लगी, तो बर्फ के जैसा पिघला
 जीवन के इस सफर में, इक इक बन्धन ऐसा टूटा 
मानो कोई रेत का घर था, या फिर ख्वाब था झूठा 
 पर फिर इक दिन बारिश होगी, फिर मौसम बदलेगा 
फिर फूटेगी कोंपल, पत्ता नया कोई निकलेगा
 फिर कोई पक्षी, इसकी, किसी डाली पे नीड़ धरेगा
 कोई तो होगा जो आकर, कभी मेरी पीड़ हरेगा
 उस दिन छोड़ के जाने वालों, शायद तुम भी आओ 
जब अपना लेंगें दूजे, तब, तुम भी ह्क जतलाओ

Wednesday, April 30, 2008

जब तक दिल मे दर्द है बाकी तब तक गीत लिखुंगा


पूछ ना मुझ से मेरे साथी कब तक गीत लिखूंगा
जब तक दिल में दर्द है बाकी तब तक गीत लिखूँगा
कुछ दर्द मिले हैं अपनों से कुछ दर्द हैं टूटे सपनों के
 कुछ अपने हैं कुछ पराये हैं कुछ खुद मैने अपनाए हैं
 जब दर्द उभर कोई आता है तो शब्दों का रूप ले जाता है
मै गीत नहीं लिखता साथी तब गीत स्वयं बन जाता है।
मित्रों की बात करूँ साथी कहने को दोस्त कहलाते हैं
पर दिल से दिल मिलता ही नहीं बस हाथ से हाथ मिलाते हैं
 मिलना जुलना खाना पीना हर रोज़ इक्ठठे होता मगर
 जिस वक्त भी काम पड़ा इन से ये काम कभी नहीं आते हैं
 दुश्मन से तो बच भी सकतें हैं मित्रों से कोई बचाव नहीं
 ये चोट वो गहरी देते हैं जीवन भर भरता घाव नहीं
 जब घाव कोई रिस जाता है गीतों का रूप ले जाता है
 मैं गीत नहीं लिखता साथी तब गीत स्वय बन जाता है
 बेटी के पैदा होने पर कहते है कि लक्ष्मी आयी है
पूछो तो जरा फिर चेहरों पर क्यों मायूसी छायी है
 नारी को कहेंगें देवी है मानेगे उसे इन्सान नही
 उपभोग की वस्तु से ज्यादा देते उसको सम्मान नही
 दहेज के लालच मे कोई कहीँ जिन्दा उसे जलाता है
आरोप कहीं झूठे मढ कर उसे घर से निकाला जाता है
 जब बाप कोई बेटी के लिये दहेज जुटा नही पाता है
 डोली कि जगह जब अर्थी मे वो उसे विदा कर आता है
 तब दर्द कहाँ रुक पाता है शब्दो मे छलक ही आता है
मै गीत नही लिखता साथी तब गीत स्वयं बन जाता है
 जब तक गीत स्वय बनते है तब तक गीत लिखुँगा
 पूछ ना मुझ से मेरे साथी कब तक गीत लिखुँ गा

Tuesday, April 29, 2008

रुख जिन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा

जीना भी हादसा, यहां, मरना भी हादसा
जो कुछ भी हो रहा यहाँ, सब कुछ है हादसा
 इक हादसे से ही जन्म, तेरा मेरा हुआ
 मर जायेंगें, जब और कोई होगा हादसा
 तेरे मेरे वज़ूद की करता है बात क्या
 दुनियाँ आई वज़ूद में, वो भी था हादसा
 कोई हादसा हुआ तो तब जाकर पता चला
 रुख़ ज़िन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा
 कुछ पा लिया तो अपने को काबिल समझ लिया
 कुछ खो गया तो दोषी मुकद्दर बता दिया
 क्यों मानता नहीं कि हैं दोनों ही हादसा
खोना जो हादसा है तो पाना भी हादसा
 ना कोई वफादार है, ना कोई बेवफा
जो कुछ हुआ, हालात का था तय किया हुआ
 निभानी पड़े वफा, तो सब वफा के हैं खुदा
 सच तो है बेवफाई का मौका कहाँ मिला मौका मिला
, वफा का मुखौटा उतर गया चल पड़ा
 फिर बेवफाईयों का सिलसिला
 है बेवफाई और वफा दोनों ही हादसा
 रुख जिन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा