खुद अपनी फिक्र करना सीख वरना जी ना पायेगा
कि आखिर में तेरा तुझ से ही रिश्ता काम आएगा
बना तूँ लाख रिश्ते , पर ना इनको आजमाना तुम
ये दुनिया है, इस दुनिया में , नही कोई काम आयेगा
है इन्साँ क्या अजीबोचीज, ग़र सोचो, तो जानोगो
ये इक सुख पाने की खातिर हज़ारों दुख उठाएगा
बहुत पाने के चक्कर में, ना जाने क्या क्या खो डाला
इधर से पायेगा इन्सां , उधर से खोता जाएगा
लगा कर देख लेना , तूँ हिसाब , जब भी जी चाहे
कि तेरे हाथ में आखिर तो बस "ज़ीरो" ही आयेगा
गये वो दिन सुनहरी मछलिया मिलती थी पानी मे
अब गंगा हो , कि हो यमुना, सिर्फ घड़ियाल आयेगा
निगलना इनकी फितरत है, तो इक दूजे को निगलेंगें
निगलते थे जिसे मिलकर, वो जब नहीं हाथ आएगा
3 comments:
खुद अपनी फिक्र करना सीख वरना जी ना पायेगा
कि आखिर में तेरा तुझ से ही रिश्ता काम आता है
गये वो दिन सुनहरी मछलिया मिलती थी पानी मे
अब गंगा हो , कि हो यमुना, सिर्फ घड़ियाल आता है
बहुत अच्छी रचना..
***राजीव रंजन प्रसाद
rajiv ji
rachana ko pasand karne ke liye shukriya
गये वो दिन सुनहरी मछलिया मिलती थी पानी मे
अब गंगा हो , कि हो यमुना, सिर्फ घड़ियाल आता है
--उम्दा ख्याल है. बधाई.
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