Wednesday, December 8, 2010

इतना हसीन हमसफर मिला भी तो किस मोड़ पर

जबसे वो हमसे और हम उनसे हैं मिलने लगे
 जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे

 ता उम्र तो अकेले ही तय किया सारा सफर
 हुआ खत्म होने को सफर तो हमसफर मिलने लगे

बेवजह ही दिल धड़कता है कहाँ यूँ जोर से
लगता है वो दिल की गली से होके गुजरने लगे

यकीनन ही दिन बहारों के कुछ दूर अब नहीं रहे
 उनके इधर आने से सब मौसम हैं बदलने लगे

 बेशक कोई नायाब तोहफा बख्शा खुदा ने है हमे
 गैर सब गुमसुम से हैं जो अपने थे जलने लगे

इतना हसीन हम सफर मिला भी तो किस मोड़ पर
 जब खत्म सफर हो चला , दुनिया से हम चलने लगे

Tuesday, December 7, 2010

जब से वो हमसे और हम उनसे हैं मिलने लगे

जबसे वो हमसे और हम उनसे हैं मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे

डर रहा कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमें
उम्मीद ये कि शायद किस्मत अब से बदलने लगे

डर डर के राहे इश्क में रखना था हर इक कदम
इक बार क्या देखा कदम ख़ुद बखुद बढ़ने लगे

 ना कोई चाहत थी ना उम्मीद ही दिल में कोई
वो पहलू में बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे

 अब ये भी कोई यार का घर में आना है बता
आये सुबह, दो बात की , हुई सांझ तो चलने लगे

इससे तो अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन वो वापिस घर को हैं चलने लगे

Tuesday, November 30, 2010

वफा के नाम पे अब कुछ नही होता हासिल

आप कहते हो कि गम को ना छुपाया कीजे
ना सही हमको किसीको तो बताया कीजे

गम छुपाने का किसे शौक है पर ये तो बता
 है भला कौन यहाँ जिस पे भरोसा कीजे

 लोग कहते हैं कि गम बांटो तो घट जाता है
 वो गलत कहते हैं जब चाहो ये अजमा लीजे

हैं तमाशाई सभी कोई मददगार नहीं
बताके गम का तमाशा ना बनाया कीजे

दर्दे मरीज करहाता रहा करहाता रहा
देखने वाले रहे कहते कि धीरज कीजे

ये जो हमदर्दी है नाटक है दिखावा है सिर्फ
अपना बोझ अपने ही कंधो पे उठाया कीजे

प्यार का नाम है बस नाम है इस दुनिया में
प्यार व्यापार नही जो सोच समझ कर कीजे

वफ़ा के नाम पे अब कुछ नही होता हासिल
बेवफाई ना करे कोई तो फिर क्या कीजे

बाद मरने के भी क्यों  बोझ किसी पे बनना
अपनी लाश अपने ही कन्धो पे उठा भी लीजे

सिवा सलाह यहाँ किसने किसी को क्या दिया
 मदद के वास्ते झोली ना फैलाया कीजे

Friday, November 26, 2010

तेरा पहलु से उठ जाना कभी अच्छा नही लगता

खुदा तकलीफ तेरी कम अगर करता भी तो कैसे
यूं भी तकलीफ होती है यूं भी तकलीफ होती है

 तेरा पहलु से उठ जाना कभी अच्छा नही लगता
 बना के दूरियां बैठो तो भी तकलीफ होती है

 किसी का जब मरा कोई तसल्ली दी तसल्ली दी
मगर मरता है जब अपना बहुत तकलीफ होती है


 यहाँ रिश्तो के मरने की कोई परवाह नही करता
 फिर रिश्तेदार मरने पे कहाँ तकलीफ होती है

 तेरा आना ना आना एक सा अब तो लगा लगने
 वो भी तकलीफ देता है यूँ भी तकलीफ होती है

 तेरा दामन कोई पकडे तो क्या जाने क्या हो जाए
 तेरा कोई नाम भी लेले तो भी तकलीफ होती है

ना जाने किस कदर तू दिल के हर कोने आ पहुंचा
 भुलाऊं या करूं तुझे याद बहुत तकलीफ होती है

Monday, August 23, 2010

ये दुनिया है यहाँ पर लूटना फितरत है इंसां की

किसी ने मार के लूटा किसी ने प्यार से लूटा
गरज ये है कि हम को तो सारे संसार ने लूटा

 उसकी हाँ और ना दोनों का मकसद लूटना ही था
कभी इनकार से लूटा कभी इकरार से लूटा

हमारा हक़ था फिर भी न ही सुनने को मिली अक्सर
 कभी हाँ भी अगर की तो उसके इकरार ने लूटा

ये दुनिया है यहाँ पर लूटना फितरत है इन्सां की
अगर दुःख है तो बस इतना कि हमको यार ने लूटा

गिला गैरों से क्या कीजे लगे जब लूटने अपने
हर नातेदार ने लूटा हर रिश्तेदार ने लूटा

अगर पतझड़ में खुशियाँ लुट गयी होती तो क्या गम था
 गिला किस से करे जिसको सदा बहार ने लूटा

 खुदा का शुक्र ना कीजे तो फिर बतलाओ क्या कीजे
 बनाया जिसने इस लायक हमें संसार ने लूटा

Thursday, August 19, 2010

किसको बेवफा कहें और कहे तो किस लिए

किस लिए हैरां हो तुम यारों ये नया दौर है
 कहने की बात और अब करने की बात और है

 किस को बेवफा कहे और कहें तो किस लिए
यहाँ वो ही वफ़ादार है जिसका न चलता जोर है

सारे रिश्ते इक कटी पतंग जैसे हो गये
कट गयी पतंग, बची हाथ में बस डोर है

 जिस को देखो उसके माथे पर पसीना आ रहा
 ऐसा लगता है सभी के दिल में कोई चोर है

इश्क देखो गिरते गिरते कौन हद तक आ गिरा
सुबह बाहों में और तो , शाम को कोई और है

यारों ये नया दौर है, यारों ये नया दौर है

Saturday, April 10, 2010

परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करे

क्यों नही समझता तू दर्द को मेरे कभी
क्यों समझता है कि मेरे सीने मे कोई दिल नहीं
क्यों मरा कैसे मरा चाहे जिस पे इल्जाम दे
पर सच बता हमदम मेरे क्या तू मेरा कातिल नहीं
खुद खुशी पाई ना आंचल तेरे खुशियां भर सका
बेमेल प्यार से किसी को कुछ हुआ हासिल नहीं
परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करें
शमा तो परवाने की हुई कैसे भी कातिल नहीं
तेरे चाहने वालो की कतार हो पर ऐसा भी हो
तू जिसे चाहे सिवा मेरे कोई शामिल नहीं
बजता नहीं सुर से तो कोई और साज थाम ले
यूं साज ए दिल का तार तार तोडना कोई हल नहीं
हौले हौले यादे खुद दिल मे वो इतनी भर गया
अब शिकायत उसको मै क्यों भूलता इक पल नहीं

Thursday, April 8, 2010

ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को

या तो वक्त से कहो रोके अपनी रफ्तार को
या मना लाये वो जाके रूठे हुये यार को
हर सांस पे लगता है ये अब थमी कि तब थमी
ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को
या तो खुद आओ या सांसो से कहो कि आये ना
कोई तो राहत मिले इस इश्क के बीमार को
और दर्द और जख्म हमको वो हर शख्स दे गया
जान के राहत ए मरहम अपनाया निसके प्यार को
कडवा हुआ लेकिन चलो ये भी तजुरबा हो गया
क्या सिला मिलता है इस जहा मे सच्चे प्यार को
खुद ही अपना सिर कत्लगाह जाके हमने रख दिया
अब दोष क्या देना नाहक कातिल को या तलवार को
ना बचा अहसास ना विश्वास तो फिर क्या बचा
छाती से क्यों चिपकाये रखें फिर मरे हुये प्यार को

Tuesday, April 6, 2010

यार जब दिल मे कोई बस जाये तो क्या कीजीये

यार जब दिल मे कोई बस जाये तो क्या कीजीये
दिन रात वो ही याद जब आये तो क्या कीजीये
लोग माहिर हैं भुला देने मे अपने प्यार को
हम से इस तरह ना भूला जाए तो क्या कीजीये
दिल दिया है उसको तो हम जान भी देंगे उसे
इन्तजार उससे ना हो पाये तो क्या कीजीये
धीरे धीरे प्यार दिल मे खुद ही तो उसने भरा
उनके बिंन अब रहा ना जाये तो क्या कीजीये
जो ना हो सकती था हम वो बात करने चल पडे
वो बात अब हमसे नही बन पाए तो क्या कीजीये
कहने को कह्ते है वो ये विश्वास है हम पे बहुत
हर बात पे करते हैं शक तुम ही कहो क्या कीजीये

Saturday, April 3, 2010

यार को हम बीच राह छोड दे मुमकिन नही

या तो वक्त से कहो रोके अपनी रफ्तार को
या कही स ढूंढ़ लाये जाके मेरे यार को
यार को हम बीच राह छोड दे मुमकिन नहीं
इससे तो बेहतर है ये हम छोड दे सन्सार को
दिल में किसीके बीज शक का अकुरित जब हो गया
दिन बचे क्या बाकी फिर दम तोडने मे प्यार को
आन्धी ना तूफान फिर नैया लगी क्यों डोलने
माझी छोड वैठा है विश्वास की पतवार को
जब किया फूलो ने दामन को किया मेरे तार तार
दोष नाहक ही दिये ता उम्र हमने खार को
डूबता ना गर तो फिर और हो सकता था क्या
नैया से उतरा किनारा समझ वो मझधार को

Saturday, March 6, 2010

इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं

इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं
सोचा चलते चलते आखिरी रचना लिखता जाउं
अपने अपने मापदण्ड खुद बना लिये है सबने
और उन्ही मापदण्डो पे औरो को लगते कसने
अच्छे बुरे की परिभाषा कुछ ऐसी सब ने बनायी
जो बात लगी अच्छी खुद को उसमे ही दिखी अच्छाई
अपनी गलती नज़र नही आती है उनको कोई
जब भी कुछ भी गल्त हुआ गलती दूजे मे पाई
किसी का सुख थोडा भी उनसे नही है देखा जाता
खुद तो सुख देना ही नही कोई और भी क्यों दे जाता
खुद्द का ढौग पाखण्ड भी उनको धर्म नज़र है आता
दूजा करे धर्म भी तो पाखण्डी है कहलाता
सिर्फ किताबी बातें पढ कर जीते सपनो की दुनिया मे
असली दुनिया मे क्या होता उससे नही कोई नाता
भूखे रहो प्यासे मर जाओ मन मारो बाबा बन जाओ
धर्मगुरूओ की मौज़ करो अपना'सब कुछ'उन पे लुटाओ
खुद तो त्यागो पैसा लेकिन उनका घर भरते जाओ
घर वालो को मारो पीटो उनके आगे शीश झुकाओ
बाबा घूमेगा कारो मे भले सडक पे तुम आ जाओ
पाई पाई बचा बचा के बाबा के चरणों मे चढाओ
तन मन धन सब उन गुरुओ को करते है वो अर्पण
जिन गुरुओ ने कभी नही देखा है मन का दर्पण
उनका ढोगी जीवन उनको सदचार नजर आता
जिन्दादिली से जीने वाला उनको जरा ना भाता
मेरे गीत गजल कविता सब उनको नही है भाते
क्योकि ये असली जीवन जीने की राह दिखाते
इसीलिये सोचा कि लिख कर उनका दिल क्यों दुखाऊ
माफ मुझे करना यारो जो अब कभी नजर ना आऊं

जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

हसरत मार के जीना है तो तेरा साथ भी क्या करना
खुद भी परेशां क्या होना,तुझ को भी परेशां क्या करना

दामन फटा ही रहना है तो रफुगर कोई मिला ना मिला
जब चाक गरेबां सीना नहीं तो सुई या धागा क्या करना

बून्द बून्द को तरसा दे उस जल के स्त्रोत से क्या हासिल
वो नदिया हो या दरिया हो नलकूप हो या फिर हो झरना

कभी होंठ तलक भी भीगे नहीं तो दिल की प्यास बुझेगी कब
जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

ना तो मन्जिल ही दिखती है ना राह नज़र आती है कोई
ऐसे नाकाम सफर मे यारा तुझको शामिल क्या करना

Friday, March 5, 2010

जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नहीं मै कह सकता

जो यार के काम ना आये कभी उसे यार नही मै कह सकता

जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नही मै कह सकता

सह सकता हूँ दुःख गम या तकलीफ चाहे जितनी भी हो

बस खुशी मुझे कोई दे जाए तो थोड़ी भी नही सह सकता

जुबां पे कुछ और दिल में कुछ ये रीत है दुनिया वालो की

लो तुम ही सम्भालो ये दुनिया मै तो इसमें नही रह सकता

या तो खुल के जी लेने दो या फिर महफ़िल से जाने दो

महफिल की रस्में निभाने को मैं तो जीना नहीं कह सकता

मुझको तो उड़ने के लिए आकाश भी छोटा पड़ता है

पिंजरे के पंछी की तरह मैं दायरों में नही रह सकता

प्यार वफा चाहत अपनापन जो चाहो नाम दो तुम इसको

बात सिर्फ इतनी है उस बिन दो पल भी नही रह सकता

है हिम्मत तो आ हाथ थाम नही हिम्मत तो फिर घर में बैठ

बुजदिल के हाथ में हाथ किसीका ज्यादा देर नही रह सकता

मैं ज़िंदा हूँ विपरीत दिशा बहने की ताकत रखता हूँ

मुर्दा मछली सा पानी के संग साथ साथ नहीं बह सकता

Thursday, March 4, 2010

कौन है वो मेरा क्या है तुम ही कुछ बतलाओ

कौन है वो मेरा क्या है तुम ही कुछ बतलाओ
मेरा होकर भी मेरा नहीं क्या लगता है समझाओ

 दूर दूर रहते हैं लेकिन पास पास भी रहते हैं
 दिल की सारी बाते अक्सर इक दूजे से कहते हैं

 इक दूजे के काँधे पे सर रख कर हम रोये हैं
 इक दूजे का हाथ पकड़ अक्सर गलियों में खोये हैं

 दिल में समाये हैं हरदम बाहों में समाये कभी नहीं
 एक ही छत के नीचे अजनबी बन के भी हम  सोये हैं

एक ही  थाली ,एक कटोरी इक चम्मच से खाते हैं
इक दूजे के पोंछे आंसू जब भी हम रोयें हैं

घर का मालिक मै हूँ तो वो भी नहीं उसकी चेरी
तुम ही कहो कि कौन है वो और क्या लगती है मेरी

Wednesday, March 3, 2010

जला है यूं घर का मेरे तिनका तिनका

अंधेरो में रहने की आदत है हम को
उजालो में आने से डरते बहुत हैं
तेरे आने से घर हो सकता था रौशन
पर आँखे चोंधियाने से डरते बहुत हैं
जिसे भी दिखाए उसी ने कुरेदे
जख्मो की अपनी यही दास्ताँ है
बेवजह नही जो किसी मेहरबान को
जख्म अब दिखाने से डरते बहुत हैं
अभी तक भी सब की 'ना' ही सुनी थी
तेरी 'ना' भी कोई अजूबा नही है
सच तो है ये कि मेरी जानेमन
तेरी ' हाँ ' हो जाने से डरते बहुत हें
चाहा जिसे भी दिलोजान से चाहा
बस इतनी सी गल्ती रही है हमारी
है चाहत कि तुमको भी चाहे बहुत
पर गलती दोह्राने से से डरते बहुत हैं
राहों मे मिलते हो तब पूछते हो
कैसे हो क्या हाल है आपका
कभी घर में फुरसत से बैठो
सुनाने को गम के फसाने बहुत है
जब भी नशेमन बनाया है कोई
गिरी आसमान से कई बिजलियाँ
जला है यूँ  घर का मेरे तिनका तिनका
नया  घर बनाने  से डरते बहुत हैं

Tuesday, March 2, 2010

या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग ही है मरना

प्यार तेरा नफरत में बदल जाए वो काम नही करना
अपनी खुशी के लिए  किसीका दामन गम से क्या भरना

हमको तो आदत है यूं भी प्यासा जीते रहने  की
दो घूँट पानी के लिए किसी कूए को जूठा क्या करना

ये होठो तक की प्यास नहीं दिल भी प्यासा मन भी प्यासा
ये प्यास किसी से बुझनी नही फिर दोष पानी पे क्या धरना

जीने मरने में फर्क नहीं मतलब तो तेरे साथ से है
या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग अब  है मरना

Monday, March 1, 2010

ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है

संभल संभल के अनजानी राहों में चलना होता है
लौट के वापिस आ पाना वरना मुश्किल सा  होता है

पूरा कर सकते ही नहीं वो ख़्वाब किसीको मत दिखला
ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है

साथ निभाने की दिल में ना चाहत है ना ही हिम्मत
बात बात में हाथ पकड़ने से फिर यारा क्या होता है

वक्त मिला तो समझाऊँगा कौन फकीर कौन अमीर
नही चाहिए कुछ भी जिस को, असली  शहंशाह होता है

Sunday, February 28, 2010

अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होल़ी

कभी खेला करते थे होली जिद्द कर के हम सबसे

पर जब से हुआ बदरंग ये जीवन छुए नही रंग तबसे

यूं तो होली खेलने अब भी साथी घर आते हैं

पर जीवन हो बदरंग तो फिर रंग कहाँ कोई भाते हैं

तुमने जानू कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला

रंगहीन जीवन में मेरे फिर से रंग भर डाला

फिरसे जगा दी सोई उमंगे तुमने बन हमजोली

मन में हुड्द्म्ग मचा रही है इच्छाओं की टोली

तुमने हम पर रंग डाल कर तो दी है शुरुआत

देखना अब किन किन रंगो की होगी तुम पर बरसात

अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होली

अब ना बचेगी तेरी चुनरिया अब ना बचेगी होली

डरते डरते चुटकी भर रंग इक दूजे को लगाना

मैं ना मानु इसको होली मै ठहरा दीवाना

बस माथे गुलाल का टीका ये भी हुई कोई होली

ना रंगो से रंगी चुनरिया ना ही भीगी चोली

अरे होल़ी में भी सीमाओं का क्या रखना अहसास

भूखा ही मरना ही तो फिर तोड़ना क्यों उपवास

खेलनी ही तो जम कर खेलो मस्ती भरी ये होल़ी

मातम की तरह ना मनाओ होल़ी मेरे हमजोली

होल़ी को होल़ी सा खेलो या रहने दो हमजोली

जितनी भी होनी थी होल़ी तुम संग होल़ी होल़ी

Saturday, February 27, 2010

गंगा खुद नाले में गिर जाए तो नाला क्या करे

मंजिले सब से जुदा हैं रास्ते भी हैं जुदा
हमसफर कोई ना बने तो ये  मुसाफिर क्या करे
 
 नाले का गंगा में मिलने का तो कोई हक़ नही
 गंगा खुद नाले में मिल जाए तो नाला क्या करे
 
आग लगने से बचा रखा था सूखी घास को
चिंगारी कोई डाले तो घास ना जले तो क्या करे
 
 साजे दिल के तार ढीले खुद ही तो उसने कसे
 छूने से फिर सगीत बज उठा तो साज क्या करे
 
 आग पे तो खुद कडाही अपने हाथों से चढा दी
अब कडाही ना तपे तो फिर कडाही क्या करे
 
अपने हाथों में उठाकर खुद शिखर तक ले गये
 फिर छोड़ने से नीचे कोई ना गिरे तो क्या करे
  किसी को आजमाने का ये तो तरीका ना हुआ
खुद ही परोसी थाली और मुहं में निवाला खुद दिया
भूखा ऐसे में ना रोटी  खाए तो फिर क्या करे

 वो' हाँ 'करे तो भी मरे वो 'ना' करे तो भी मरे

Monday, February 22, 2010

तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती

तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती

कुछ पहले और मिली होती तो बात ही कुछ और होती

ये सूरज पहले निकल आता मेरे दिन कुछ और हुए होते

ये चांदनी पहले खिली होती तो रात ही कुछ और होती

ता उम्र अकेले तन्हा ही मै यहाँ वहां भटका ही किया

तेरा साथ मिला होता पहले तो बात ही कुछ और होती

जीवन के इस मरुथल में सूरज तो दहकते मिले बहुत

ये बदली पहले घिरी होती तो बरसात ही कुछ और होती

अब मुंह में दांत नही बाक़ी तो चनो का बोलो क्या कीजे

ये पोटली पहले मिली होती तो बात ही कुछ और होती

धरती तो क्या ये आसमान भी हम को छोटा पड़ जाता

कुछ पहले उड़ान भरी होती तो बात ही कुछ और होती

चंद खुशियाँ तेरी झोली में भर दूँ कोशिश है अब भी मेरी

कहीं पहले मिली होत्ती तो ये सौगात ही कुछ और होती

किस किस बात की बात करूं बस इतनी बात समझ लीजे

कुछ पहले बात हुई होती तो हर बात ही कुछ और होती

Sunday, February 21, 2010

अब तक तो दर्पण टूटा था कोई अक्स भी आज तो तोड़ गया

अब तक तो दर्पण टूटा था कोई अक्स भी आज तो तोड़ गया

पहले छूटे रिश्ते नाते लेकिन इक साया साथ में था

जाने कहाँ हम से चूक हुई साया भी साथ को छोड़ गया

पहले भी जख्म मिले हैं बहुत पर वक्त ने उनको भर डाला

नासूर से भी ज्यादा गहरा कोई जख्म वो दिल पे छोड़ गया

वो पल पल हमे आजमाता रहा हम प्यार समझते चले गये

आजमाईश ही अजमाइश में वो दिल का शीशा तोड़ गया

लगता था खुशियाँ ही खुशियाँ दामन में भर देगा

वो जान से प्यारा यार मेरा मेरी आँख में आंसू छोड़ गया

बेखबर से थामे हाथ उसका हम चलते गये चलते ही गये

अब जाऊं कहाँ कुछ सूझे ना ऐसे मोड़ पे वो हमे छोड़ गया

Saturday, February 20, 2010

वो मेरे करीब इतना आई मै समझा सब कुछ सुलझ गया

जो होना था जो होता है आखिरकार तो वो ही हुआ
वो अपनी राह में चली गयी मै अपनी राह पे चता गया

कभी  उसने कहा था जो होगा दोनों ही मिलकर सुल्तेंगे
बिंदास जियो और खुल के जीयो हैं साथ तो सबसे निपटेंगे

वो मेरे करीब इतना आई मै समझा सब कुछ सुलझ गया
अहसास हुआ बेचारगी का जब देखा सब कुछ उलझ गया 

मैं और  तेरे साथ मुझे पागल समझा क्या  उसने कहा
ये तो सिर्फ मजाक था उसको मैंने क्यों सच मान लिया 

अपनी नजरो में  उसने इस हद तक मुझको  गिरा दिया
ना खुदा मिला ना यार मिला ना इधर का रहा ना उधर का रहा

Friday, February 19, 2010

मेरे यार सा सच्चा यार बड़ी किस्मत वालो को मिलता है

तुम बिन रहना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है
 हर पल या तुम संग बीतता है या तेरी याद में कटता है

 किस हद तक दिल में समाये हो  इसका तुमको एहसास नही
 दिल जितनी बार धडकता है तेरे नाम की माला जपता है

सांस तेरी साँसों में मिल कर आती है तो लगता उम्र बढी
वरना  सांस के आने पर भी यूँ लगे जैसे  दम घुटता है

 जिसे मर के स्वर्ग में जाना हो भगवान् की पूजा करता रहे
 जिसे जीते जी चाहिए जन्नत  वो तेरी पूजा करता है

मैं प्यार में यार के कदमों पे सब अर्पण करता जाता हूँ
और  लोग समझते है पागल है जान बूझ कर लुटता है

 कैसे  किसी को समझाऊं समर्पण ना करूं तो फिर क्या करूं
 यार मेरा जब  सच्चे दिल से मुझ पर जान छिड़कता है

क्यों ना अपनी किस्मत पे बतलाओ  मै नाज करूं 
मेरे यार सा यार बड़ी किस्मत वालों को मिलता है

Sunday, February 14, 2010

ऐ मेरे खुदा इतना भी ना दे जितनी मेरी औकात नही

सब से सुन्दर फूल है जो इस दुनिया के गुलशन का

अर्थी पे वो आके चढ़े ये तो कोई अच्छी बात नही

वो कोहीनूर का हीरा है किसी ताज पे ही शोभा देगा

फकीर की झोली पड़ा रहे ये तो कोई अच्छी बात नही

रानी महारानी बनने का अधिकार जिसे कुदरत ने दिया

महलों की जगह खंडहर में रहे ये तो कोई अच्छी बात नही

वो परी है तो फिर अपने लिए क्यों नही फरिश्ता ढूँढती है

नाचीज से जोड़ रही रिश्ता ये तो कोई अच्छी बात नही

वो भोर की पहली किरण है तो मैं सांझ का हूँ ढलता सूरज

कुछ पल भी साथ नही मुमकिन ता उम्र दे सकता साथ नही

कोई मेरे यार को समझाओ मेरी वो समझता बात नही

जिस रात की सुबह होती है मै वो किस्मत की रात नही

ऐ मेरे खुदा इतना भी ना दे जितनी मेरी औकात नही

लंगूर के हाथ में हूर लगे ये तो कोई अच्छी बात नही

Friday, February 12, 2010

हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शवाव पे है

माना ये कि पास में उसके दौलत-ऐ हुस्न अपार है
 पर काम किसी के ना आये तो सब दौलत बेकार है

हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शबाब पे
 हम है किस गिनती में उसके चाहने वाले हजार है

 छूने से उसको डरते है मर ही ना हम जाए कहीं
जब  देखने भर से ही चढ़ता   इश्क का बुखार है

 कोई नजरो से  घायल है  तो कोई मर मिटा मुस्कान पे
 सुना है कब्रिस्तान तक  अब जनाजो की  कतार है

 बरसों नही तो गरजो ही सावन का कुछ अहसास  हो
खाली बदली का छा जाना  सावन में बेकार है

 ज्येष्ठ और आषाढ़ के सूखे को  वर्षों झेला है
क्या गलत है सावन जो तुझसे बारिश की दरकार है

तन से उसका मन है सुंदर मन से सुंदर उसका तन
कौन क्या उस लेता है उससे  अपना अपना विचार है

 वो  चाँद से सुंदर है  लेकिन उससे  हासिल क्या हुआ
मेरे घर तो  पहले सा अन्धेरा बरकरार है

 किसी के अंगना चाँद उतरे मुझको इससे गिला नही
  मेरे घर भी  दिया जले बस इसका  इन्तजार है

Wednesday, February 10, 2010

किसी ने हमसे प्यार किया हो ऐसा पहली बार हुआ है

देर से ही पर खुदा मेहरबां हम पे बहुत  इस बार हुआ है
 दुनिया में जो सब से हसी है उसको हमसे प्यार हुआ है

 तानो या उल्हानो से तो झोली अपनी भरी रही
 किसी ने उस में प्यार भरा हो ऐसा पहली बार हुआ है

जख्म दिए हो किसी ने हमको ऐसा सारी उम्र हुआ है
 पर मरहम ले कोई घर आया ऐसा पहली बार हुआ है

सपनों को बनते और टूटते कौनसी  रात नही देखा
अब जाकर अपना सपना मुश्किल से साकार हुआ है

पास में रहकर भी मेरे दिल से सब  अक्सर दूर रहे
 दूर में रह कर दिल के पास हो ऐसा पहली वार हुआ है

 किसी ने हम को वुक्के दिए हों ऐसा अक्सर ही होता था
 पर हमने किसी को फूल दिया ऐसा पहली बार हुआ है

हमने किसी से प्यार किया शायद पहले भी ये हुआ
पर  हमसे किसीने प्यार किया हो ऐसा पहली बार हुआ है

तो फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में

वापिस लौट जा ऐ राही या राह बदल ले फिर कोई
 शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में

 तेरा मिलना तय था बेशक जीवन के इस सफर में लेकिन
तेरा बिछुड़ना सोचा तक नही हमने जाने अनजाने में

कुछ भी मुमकिन नजर तुझे नही आता अपनी कहानी में
 पर कुछ भी नामुमकिन सा नही ऐ दोस्त मेरे अफसाने में

रंग रूप  धन दौलत यौवन फर्क ये सब मिट सकते हैं
 पर फर्क उम्र का मिट नहीं पाना तेरे मेरे मिटाने से

फूल से ज्यादा हमको फूल की महक सुहानी लगती है
फूल कहाँ अच्छा लगता है खिलता हुआ वीराने में

तेरे गोरे बदन से ज्यादा  मन में तेरे  ना झाँका  तो
फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में

मंजिल बदल नही सकते तो आ राहों को बदले हम
हमसफर रहो तुम राहो में तो मजा है चलते जाने में

मंजिल पे हो या राह  में  हो  मतलब तो तेरे साथ से है
तुम साथ रहो तो फर्क नहीं मंजिल खोने या पाने में

बात वही होती  है तो फिर फर्क क्यों इतना होता है
खुद वही बात समझने में और औरो को समझाने में

Tuesday, February 9, 2010

लगी हाथ अपने है प्यार की इक किताब अभी अभी


अब देखिये क्या रंग दिखाता है रेड रोज़
उन्हें आज हमने दिया है इक गुलाब अभी अभी

उस फूल में भी दिल मेरा आये उसे नजर
दिल के लहू से है रंगा गुलाब अभी अभी

 ता उम्र बदली करवटे ना नींद थी ना ख़्वाब था
 लगी आँख तो दिखा है उसका ख़्वाब अभी अभी

ता उम्र मिले जख्म तो अब जा के तुम मिली
खुदा ने किया चुकता मेरा हिसाब अभी अभी

बनके सवाल वो सारी उम्र  उलझाता रहा मुझे
मिलने से तेरे मिल गया वो जवाब अभी अभी

 समझेगे अब  है प्यार क्या होती है क्या वफा
लगी हाथ अपने है प्यार की किताब अभी अभी

Monday, February 1, 2010

मंजिल कही होती है तो राहे ले जाती है कहीं

आगाज से अंजाम का अंदाजा लगता ही  नही
मंजिल कहीं होती है और राहें ले जाती हैं कहीं

ख्वाहिशो के अंकुरित होने पे खुश क्या होईये
पौधा कभी बनती नही फल कभी लगते नही

वो आदतन ही मुस्कराता है तो क्या पता चले
कौन सी मुस्कान उसकी प्यार है कौन सी नहीं

अब ऐसे मेहरबां से फरमाइश करें तो क्या करें
जो जब भी कुछ मांगो तो कहता है नहीं अभी नही

उम्र सारी गुजार दी और कुछ ना हासिल कर सके
सोचते भर रह गए क्या गलत है और क्या सही

Saturday, January 30, 2010

नही आज तो कल दिल का शीशा टूट जाना है जरूर

देखिये अब जिन्दगी रंग दिखलाती है क्या
वक्त ने खोला है फिरसे हम पे दरवाजा नया

 दोस्त या दुश्मन कहूं इस वक्त को तू ही बता
 यूँ तो मिलाता है मगर मिलते ही करता है जुदा

 जगती है उम्मीद कुछ पाने कि जब भी जिन्दगी से
 वक्त लाकर आइना हरबार   देता है दिखा

क्या मुकद्दर है मेरा और क्या मेरी तकदीर है
सामने थाली रही और अंदर निवाला ना गया

 हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल
 वक्त ने कद मेरा किस हद तक बौना बना दिया

 नहीं आज तो कल दिल का शीशा टूट जाना है जरूर
यही  सोच कर तेरा अक्स हमने आत्मा में बसा लिया

तेरे लिए दीवानगी किस हद तक पहुंची है ये देख
 दिल टूटा लेकिन अक्स तेरा हमने पूरा बचा लिया

Friday, January 29, 2010

मेरे क़त्ल की साजिश, वही, रचते रहे है रात भर

किसके लिए और किसलिए रोये हम रात रात भर
 तुम रही खामोश या तेरी कही किसी बात पर
 
 बन के बदली तुम बरस जाती तो करते शुक्रिया
 वैसे गुजारिश के सिवा मेरा बस कहाँ किसी बात पर
 
 ज़िन्दगी भर ही हसीनो ने हमें धोखा दिया
 तुम्ही कहो कैसे भरोसा कर लूँ औरत जात पर
 
 कोशिश भी की काबिल भी थे लेकिन ना हासिल कुछ हुआ
 कामयाबी की लकीरे ही ना थी मेरे हाथ पर
 
 इससे से ज्यादा क्या हमारी बेबसी होगी सनम
 हमदर्द मिला है वो जो जख्म देता है बात बात पर
 
देख कर ज़िंदा मुझे हैरान क्यों होते हैं सब
हैरान हैं  शायद ये शख्स ज़िंदा है किस बात पर

मेरी लम्बी उम्र की जो दिन में  करते है दुआ
 क़त्ल की मेरे वो साजिश रचते रहे है रात भर
इक सवाल रोटी का हम से कभी ना हल  हुआ
फख्र था बड़ा हमें हिसाब की किताब पर

Thursday, January 28, 2010

इसे मान लेना तुम बेशक अंतिम इच्छा मेरी

इसे मान लेना तुम बेशक अंतिम इच्छा मेरी
मरू तो हाथो में रख देना तस्वीर कोई इक तेरी

इसके बाद इक रोज़ खुदा से अपनी मुलाक़ात होगी
शिकवे शिकायत होंगे आमने सामने हर बात होगी

 आखिर में पूछे गा खुदा अब बता क्या मर्ज़ी है तेरी
 कहूंगा मैं कि मेरे खुदा बस इतनी अर्ज़ है मेरी

अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
 तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा

फिर पूछेगा मुझसे खुदा हमसफर हो तेरी कैसी
दिखला के तस्वीर तेरी कह दूंगा बिलकुल ऐसी 

 ना दो इंच इससे लम्बी ना दो इंच इससे छोटी
 ना थोड़ी सी पतली इससे ना थोड़ी इससे मोटी

ना थोड़ी भी हलकी इससे ना थोड़ी इससे भारी
 ना गोरी हो इससे ज्यादा ना हो इससे कारी

 नयन नक्श हूबहू हो ऐसे जैसी ये है दिखती
जुल्फे भी बिलकुल वैसी हो जैसी ये है

चले तो बिलकुल ऐसी  जैसी ये लहरा के चलती
 बोले तो इस जैसा कानो में ज्यों मिश्री घुलती

 कहूंगा मैं  ए खुदा मेरे  बस इतना और कर देना
 इसके दिल में मेरे लिए थोड़ा सा प्यार भर देना

Saturday, January 23, 2010

क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है

क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है
 है अब जवानी की दोपहरी तो सांझ कितनी दूर है

 इक बार सांझ हो गयी तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूं करना यत्न वो बात न रह पायेगी

 आँखों से कुछ दिखना नही तो नैन लड़ने किससे हैं
 मुंह में दांत ही ना होंगे हंस के किस को दिखायेगी

 बाल सब सफेद होगें और झड़ने भी लगेगे
 फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलाएगी

 ना उमंग तेरे मन में कोई  ना कशिश तेरे तन में होगी
 किससे फिर होगा मिलन फिर किससे मिलने जायेगी

इसलिए कहता हूँ मेरी मान कल पे टाल मत
ढूँढ़ हर जवाब मुझ में खुद से कर सवाल मत

 जो मिला है  वक्त अब, हर रोज मिल पाता नहीं
 कल का क्या है ये कभी आता कभी आता नहीं

कुदरत की हर  सौगात का कर पूरा इस्तेमाल तूं
यूं भी ढल जाएगा हुस्न कितना भी संभाल तूं

चाहने वालों की चाहत जो कोई ठुकराता है
 खुद भी चाहत के लिए इक उम्र तरस जाता है

Friday, January 22, 2010

हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम

इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई

मरहम लगाये बिन अगर जाना था वापिस यार को

बीमार जानता है जब कि मर्ज़ लाइलाज है

बेकार है झूठी तसल्ली देना फिर बीमार को

गर जीता जाए दिल किसीका हार कर अपना अहम

जीत से बेहतर समझ लो ऎसी हसीं हार को

माझी ही चाहता ना था कि पार पहुंचाए हमें

छोड़ गया था कीनारे पर ही वो पतवार को

हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम

बेवजह मुजरिम ना ठहरा माझी या मझधार को

जख्मो को सहलाता ना तो भी कोई ग़म ना था

और तो जख्मी ना करता जालिम मेरे प्यार को

साथ छोड़ने की बात करता था यार बार बार

हमने कहा आमीन और दिया छोड़ इस संसार को

Thursday, January 21, 2010

प्यार नही करना है तो फिर जताती क्यों हो

प्यार नही करना है तो फिर प्यार जताती क्यों हो
दूर दूर रहना है तो फिर पास में आती क्यों हो

दिल से दिल ही नही मिले तो जिस्म मिलेगे कैसे
 नही मिलाना दिल से दिल तो हाथ मिलाती क्यों हो

प्यास बुझाने की तुझ में ना चाहत है ना हिम्मत
 प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

 कोई आस नही होती पूरी तो बहुत निराशा होती
 आस नही करनी पूरी तो आस बंधाती क्यों हो

 दे सकती हो कोई दवा तो आकर पूछो हाल मेरा
दवा नही देनी तो दर्द भी याद दिलाती क्यों हो

 तेरी ही जिद्द थी अपने सब जख्म दिखाऊँ तुझको
 देख के अब जख्मों के मेरे नाहक घबराती क्यों हो

Tuesday, January 19, 2010

जी करता है कभी मै तेरे होंठ गुलाबी चूमू

तुम चाहो तो समझ लो ये कि गया मै तुझ से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

जी करता है कभी मैं तेरे होंठ गुलाबी चूमूं
कभी तुझे आगोश में लेकर बिना पीये ही झूमु

या होठों से कोई गजल लिखूं तेरे गालो पे
 या कोई गीत बनाऊं तेरे मखमली से बालों पे

 या गदराये जिस्म के तेरे अंग अंग पे लिखूं कविता
 या फिर तेरी चाल सी कोई ढूँढ़ लाऊं नई सरिता

 कभी तेरे गालों को चूमूं जुल्फों से तेरी खेलूं
और कभी मन करता कसके बाहों में तुझे लेलूं

 तुम चाहो तो कह लो इसको दबी वासना मेरी
 वैसे सीधे सच्चे शब्दों में प्रेम का है इजहार
 और अगर चाहो तो मान लो मुझे है तुम से प्यार

 पहरों बैठे रहें हम लेके इक दूजे का हाथ
 इक दिल दूजे दिल से कर ले बिन बोले हर बात

 शिकवा शिकायत और गिला बिना कहे मिट जा
ए तुम इक कदम बढाओ और दो कदम मेरे बढ़ जायें

 कभी तेरे हाथो की लकीरें मिलें मेरे हाथों में
 बिगड़ी किस्मत संवर जाए बातों ही बातों में

जी करता है जब भी तुम घर आओगी इस बार
 जिद्द कर तेरा हाथ पकड़ लू और करूं इसरार

बहुत दिनों के बाद अब लगता आता है इतवार
तुम चाहो तो समझ लो ये की मुझे है तुम से प्यार

Monday, January 18, 2010

तुम चाहो तो कह सकती हो मुझे है तुम से प्यार

तुम चाहो तो ये समझो कि गया मै तुम से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार
और अगर चाहो तो समझो तुम बिन रह नही सकता
 जो चाहो वो समझो लेकिन मै कुछ कह नहीं सकता

 हाँ इतना कहूगा और नही अब कर सकता इन्तजार
 तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

ना जीवन में रस है कोई ना ही कोई मज़ा है
ऐसे लगता है कि तुम बिन जीना एक सजा है

 सच तो ये है घर तुझ बिन खाली खाली लगता है
जैसे कोई गुलशन उजड़ा पतझड़ में दिखता है

इक तेरे आने से ही आ जायेगी फिर से बहार
तुम चाहो तो मान लो बेशक मुझे है तुम से प्यार

 रात कोई कटती है कैसे बदल बदल के करवट
 खुद ही बयां करेगी तुमसे बिस्तर की हर सिलवट

 याद तुम्हे करते करते कभी आँख अगर लग जाती
 सपनों में तुम आ जाती हो रात थोड़ी कट जाती

इसीलिए बस रात का मुझ को रहता है इन्तजार
तुम चाहो तो कह सकती हो मुझे है तुम से प्यार

Sunday, January 17, 2010

आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को

शायद ये जीत का  हुनर उसको  खुदा की देंन है
हर एक बाजी जीतता है पहले बाजी हार के

ये नही शतरंज ये तो इश्क की बिसात है
जीती जाती है यहां हर एक बाजी हार के

जान खुद दे दूंगा हंस के  कह दो  मेरे यार से
काम नाहक ले रहा क्यों  तीर से तलवार से

आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को
 बाहर निकलेगा परिंदा जो पिंजरे की दरो दीवार से

छाछ के भी हैं जले नहीं दूध के ही हम जले
हर शै को पीना पड़ता है अब फूंक मार मार के

Saturday, January 16, 2010

मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं

प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
ना गरज दौलत से उसको ना मेरे घरबार से

 ना उसे मौसम की परवाह ना उसे दुनिया का डर
 वारी मै हिम्मत पे उसकी सदक़े उसके प्यार पे

 मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं
घर के दरवाजे पे दस्तक शामिल है उसके प्यार में

राम जाने प्यार उसका पहुंचे किस अंजाम पर
आगाज से ही तेज़ है जो रोकेट की रफ्तार से

 दिल से दिल के तार लगता है कुछ ऐसे जुड़ गये
 बाते हजार हो गयी बिन खोले मुंह मेरे यार के

 ना तडपता है न तड़पाता है वो इन्तजार में
जानता है वो मज़ा असली है वस्ल यार में

उसके आने से महक उठता चहक उठता है घर
 जुल्फों में उसकी कैद है मौसम सारे बहार के

 प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
ढाई मिन्टो में पढ़ा दे सारे अक्षर प्यार के

शायद बुझती लौ की कोई आखरी चमक है
ये प्यार हम को हो चला है इक जवां दिलदार से

Thursday, January 14, 2010

बेवजह तो दिल धडकता है कहां यूं जोर से

जब से वो हमसे और उनसे हम मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे

ता उम्र तो अकेले ही तय किया सारा सफर
है खत्म होने को सफर तो हमसफर मिलने लगे

बेवजह तो दिल धडकता है कहां यूं जोर से
दिल की गली से लगता है वो होके गुजरने लगे

यकीनन ही दिन बहारों के कुछ दूर अब नही रहे
उनके घर आने से सारे मौसम बदलने लगे

बेशक कोई नायाब तोहफा खुदा ने अब बख्शा हमें
गैर गुमसुम हो गये जो अपने थे जलने लगे

इतना हसीन हमसफर मिला भी तो किस मोड पर
जब खत्म सफर हो चला दुनिया से हम चलने लगे

Wednesday, January 13, 2010

चन्द सिक्को की खातिर अपना यार बदल गया पाला

चन्द सिक्को की खातिर अपना यार बदल गया पाला
जपने लगा है अब तो वो किसी और के नाम के माला

 माली और सैयाद मे जिस को फर्क नजर नही आता
 दाना चुगते चुगते परिन्दा जाल में वो फस जाता

कान्टे के सग लगा केचुआ मछली गर खायेगी हो
कितनी होशियार वो मछली आखिर फस जायेगी

ये दुनिया है यहां शिकारी अक्सर रूप छुपाता
लक्ष्मण रेखा पार हुई तो सिया हरण हो जाता

अपने रिश्ते तय करने का सब को है अधिकार
पर वो रिश्ता क्या रखना जो जानदार ना शानदार

Tuesday, January 12, 2010

इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई

ज़ब से वो हम से और उनसे हम मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे

डर ये है कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमे
 उम्मीद ये कि शायद किस्मत अबसे बदलने लगे

 डर डर के राहे इश्क मे रखना था हर कदम मगर
 इक बार देखा फिर तो कदम खुद ब खुद चलने लगे

 ना कोई चाहत ना थी उम्मीद ही दिल मे कोई
 वो पहलु मे बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे

 अब ये भी घर मे यार का आने में आना है बता
 आये सुबह दो बातें की हुई सांझ तो चलने लगे

 इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
 मरहम लगाये बिन क्यों यार वापिस घर चलने लगे