Friday, March 13, 2020

गरमाहट न रहे जब रिश्तो में

अब तक तो जितने यार मिले
या मतलबी या गद्दार मिले

आँखों में बसाया जिसको भी
वो आंसू  बन के  बह  निकला
अब दिल में बसाया है  तुमको
देखें क्या हमे इस बार मिले

अहसास अगर मर जाए तो
रिश्तों में बता बाक़ी क्या बचा
क्यों लाश सा रिश्ता वो ढोना
ना वफ़ा मिले ना प्यार मिले

गरमाहट न रहे जब रिश्तो में
ये तो मरना हुआ  किश्तों में
जीना तो उसी को  कहतें है
जिसमे अपनो का प्यार मिले

चाहत से नही होता कुछ भी
जी जान लगाना पडता  है
मंजिल हो अगर आकाश में तो
पंखो को फैलाना पड़ता है

तू  पंख फैला के देख जरा
आकाश लगेगा छोटा  सा
हाँ पंख फैलाने की खातिर
हिम्मत को जुटाना पड़ता है

पिंजरे का पंछी क्या बनना 
दाना चोगा तो बैठें मिला
पर जब भी कभी उड़ना चाहा
बंद  पिंजरे के सब द्वार मिले 




बद से बदतर हो चुका है आदमी

  बेहतर से बेहतर होने का लाख वो दावा करे
 मेरी नज़र में बद से बदतर हो चुका है आदमी

पहले मरहम की तरह काम आता था कभी
अब सिर्फ काँटा या नश्तर हो चुका है आदमी

पहले  टूटते  थे दिल तो  अक्सर जुड़ भी जाते थे
अब टूटे दिल जोड़ने का हुनर खो चूका है आदमी

जंगल से शहर का सफर तय तो किया पर क्या हुआ
जंगली से  अब शहरी जानवर हो चुका है आदमी

माना कि पढ़ लिख गया पर  इस से ज्यादा क्या हुआ
अनपढ़ था अब शिक्षित जानवर  हो चुका है आदमी

दर्द की कोई चीख क्यों अब कोई भी सुनता नहीं 
 क्या गहरी नींद  इस कदर सो चुका है आदमी

आदमी से आदमी हो  बेहतर ये   होड़ ख़त्म है
बस चेहरा संवारने में माहिर हो चुका है आदमी

 अब किसी के ग़म में क्यों आँसू नही आता कोई
अपने ग़मो  में  इतना ज्यादा रो चुका है आदमी

अब किसी को  भी परखना तेरे मेरे बस में नही
यूँ  रंग बदलने में माहिर हो चुका  है आदमी

मेरी क्या अब किसी की भी कोई सुनता नही
अपनी धुन में  मग्न इस कदर हो चुका है आदमी

बिखरे रिश्ते टूटे सपने और ज़ख्मी दिल लिए
शायद अब जोड़ने का हुनर खो चूका है आदमी

जागने का वक्त है और  सो चुका है आदमी
मानो ना मानो बद से बदतर  हो चुका है आदमी