Friday, March 13, 2020

बद से बदतर हो चुका है आदमी

  बेहतर से बेहतर होने का लाख वो दावा करे
 मेरी नज़र में बद से बदतर हो चुका है आदमी

पहले मरहम की तरह काम आता था कभी
अब सिर्फ काँटा या नश्तर हो चुका है आदमी

पहले  टूटते  थे दिल तो  अक्सर जुड़ भी जाते थे
अब टूटे दिल जोड़ने का हुनर खो चूका है आदमी

जंगल से शहर का सफर तय तो किया पर क्या हुआ
जंगली से  अब शहरी जानवर हो चुका है आदमी

माना कि पढ़ लिख गया पर  इस से ज्यादा क्या हुआ
अनपढ़ था अब शिक्षित जानवर  हो चुका है आदमी

दर्द की कोई चीख क्यों अब कोई भी सुनता नहीं 
 क्या गहरी नींद  इस कदर सो चुका है आदमी

आदमी से आदमी हो  बेहतर ये   होड़ ख़त्म है
बस चेहरा संवारने में माहिर हो चुका है आदमी

 अब किसी के ग़म में क्यों आँसू नही आता कोई
अपने ग़मो  में  इतना ज्यादा रो चुका है आदमी

अब किसी को  भी परखना तेरे मेरे बस में नही
यूँ  रंग बदलने में माहिर हो चुका  है आदमी

मेरी क्या अब किसी की भी कोई सुनता नही
अपनी धुन में  मग्न इस कदर हो चुका है आदमी

बिखरे रिश्ते टूटे सपने और ज़ख्मी दिल लिए
शायद अब जोड़ने का हुनर खो चूका है आदमी

जागने का वक्त है और  सो चुका है आदमी
मानो ना मानो बद से बदतर  हो चुका है आदमी 

1 comment:

Yukti Ahuja said...

Bilkul shi farmaya hai apne