Friday, August 25, 2017

अपना वो, जो वक्त पे काम अपने के आये सदा

जिंदगी भर जिंदगी जो बन पड़ा तुझ को दिया
अब चाहा कुछ तुझसे तो तू मुहं मोड़ के जाने लगी

वो भी दिन थे मै  ना चाहता था  कोई मेरे साथ हो
चाहा  क्या तेरा साथ  तू मुझे छोड़ के जाने लगी

बूँद बूँद पानी को तरसाता  रहा  सदा आसमा
मर गयी धरती की प्यास तो बदलियां छाने लगी

अब गरज या बरस  इससे फर्क कुछ पड़ता नही
दिल की हर उम्मीद की अर्थी है उठ जाने लगी

अपना वो, जो वक्त पे काम अपने के आये सदा
मेरी जिंदगी तो हर मोड़ पे बहाने है बनाने लगी

जानती थी एक  दिन  वो  छोड़ ही देगी  मुझे
सौंप कर मुझे  मौत  को  जिंदगी पछताने लगी 

Monday, August 21, 2017

ना पर है न परवाज़ है , बस कहने भर को परिंदा है

ना पर है न परवाज़ है , बस  कहने भर को परिंदा है
ना जमीन का ज़र्रा रहा   ना बना आसमां का चन्दा है

हर आस हर उम्मीद दफन हो चुकी  दम तोड़ के
साँसों के आने जाने तक  बेवज़ह हर शख्स  ज़िंदा  है

कहने को हर रोज़ कहता  प्यार है तुझसे जिंदगी
तुझसे क्या इस झूठ पर  वो  खुद  से भी शर्मिन्दा है

अच्छा था जब तक ना तुझसे प्यार था मुझे  ज़िंदगी
अब तो बस मेरे गले तेरी बंदिशों का फंदा है

 सच तो ये  है बस हवस को प्यार सब कहने लगे
क्या सोचना फिर  कौन  प्यार  अच्छा कौन गंदा है

जिस  दुनिया में कोई किसी के  वास्ते जीता नहीं
उसी दुनिया में इक शख्स बस तेरे लिए ही  ज़िंदा है