Friday, February 12, 2010

हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शवाव पे है

माना ये कि पास में उसके दौलत-ऐ हुस्न अपार है
 पर काम किसी के ना आये तो सब दौलत बेकार है

हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शबाब पे
 हम है किस गिनती में उसके चाहने वाले हजार है

 छूने से उसको डरते है मर ही ना हम जाए कहीं
जब  देखने भर से ही चढ़ता   इश्क का बुखार है

 कोई नजरो से  घायल है  तो कोई मर मिटा मुस्कान पे
 सुना है कब्रिस्तान तक  अब जनाजो की  कतार है

 बरसों नही तो गरजो ही सावन का कुछ अहसास  हो
खाली बदली का छा जाना  सावन में बेकार है

 ज्येष्ठ और आषाढ़ के सूखे को  वर्षों झेला है
क्या गलत है सावन जो तुझसे बारिश की दरकार है

तन से उसका मन है सुंदर मन से सुंदर उसका तन
कौन क्या उस लेता है उससे  अपना अपना विचार है

 वो  चाँद से सुंदर है  लेकिन उससे  हासिल क्या हुआ
मेरे घर तो  पहले सा अन्धेरा बरकरार है

 किसी के अंगना चाँद उतरे मुझको इससे गिला नही
  मेरे घर भी  दिया जले बस इसका  इन्तजार है

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