जो भी चाहे तूँ मंजिल चुन जो भी चाहे तूँ सपने बुन
जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन
सब हासिल हो सकता है गर खुद मे पैदा कर ले
मंजिल को पाने की धुन राहो पे चलने का गुण
नाकामयाब इन्सान सदा किस्मत का रोना रोता है
सोचता है मिलता है वही किस्मत में जो लिखा होता है
नहीं सोचता आम मिले कैसे जब पेड बबूल के बोता है
अपने कर्मो का फल ना मिले ऐसा तो कभी नहीं होता है
केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है
जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन
सब हासिल हो सकता है गर खुद मे पैदा कर ले
मंजिल को पाने की धुन राहो पे चलने का गुण
नाकामयाब इन्सान सदा किस्मत का रोना रोता है
सोचता है मिलता है वही किस्मत में जो लिखा होता है
नहीं सोचता आम मिले कैसे जब पेड बबूल के बोता है
अपने कर्मो का फल ना मिले ऐसा तो कभी नहीं होता है
केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है
चाहत रख लेने भर से किसे कहाँ मिलती मंजिल
मंजिल के लिये तो चलते रहो तब ही गुजारा होता है
3 comments:
सच में बबूल बो कर आम की चिंता करना तो मूर्खता ही है,जैसा करोगे वैसा भरोगे..!बहुत ही अच्छी लगी आपकी रचना...आपबीती सी लगी...
बहुत सही!
केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है
बहुत सत्य सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
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