पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै
क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै
क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै
मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता हूँ मै
जब ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं
बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं
जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं
पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै
अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै
ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी
जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै
पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं
पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै
दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ
मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं
अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं
पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं
तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला
दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै
नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया
कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै
1 comment:
बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं
जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं
खास करके ये शेर मुझे अच्छे लगे............सुन्दर रचना
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