Friday, June 19, 2009

तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला

पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै
 क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै

मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता हूँ  मै
 जब ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं

बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं
जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं

पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै
अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै

 ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी
 जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै

पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं
 पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै

 दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ
मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं

अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं
 पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं

तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला
 दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै

 नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया
 कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै

1 comment:

ओम आर्य said...

बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं
जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं

खास करके ये शेर मुझे अच्छे लगे............सुन्दर रचना