Monday, June 22, 2009

जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन

जो भी चाहे तूँ मंजिल चुन जो भी चाहे तूँ सपने बुन
 जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन

सब हासिल हो सकता है गर खुद मे पैदा कर ले
मंजिल को पाने की धुन राहो पे चलने का गुण

नाकामयाब इन्सान सदा किस्मत का रोना रोता है
 सोचता है  मिलता है वही किस्मत में जो लिखा होता है

नहीं सोचता आम मिले कैसे जब पेड बबूल के बोता है
अपने कर्मो का फल ना मिले ऐसा तो कभी नहीं होता है

 केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
 ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है

चाहत रख लेने   भर से किसे कहाँ मिलती मंजिल
मंजिल के लिये तो चलते रहो तब ही गुजारा होता है

3 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

सच में बबूल बो कर आम की चिंता करना तो मूर्खता ही है,जैसा करोगे वैसा भरोगे..!बहुत ही अच्छी लगी आपकी रचना...आपबीती सी लगी...

Udan Tashtari said...

बहुत सही!

निर्मला कपिला said...

केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है
बहुत सत्य सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें