Saturday, December 5, 2009

सब के हाथों में पत्थर हैं और निशाने पे मेरा दिल

अपने उसूलो पे जी पाना इतना भी आसान नहीं
सब से अलग पहचान बनाना इतना भी आसान नहीं

बनी बनाई राह पे चलना कौन काम है मुश्किल का
अपनी राहें खुद ही बनाना इतना भी आसान नहीं

जिसके मन सी नहीं कर सका वो ही हम से दूर हो गया
 सब के होते तन्हा जी पाना इतना भी आसान नहीं

 इसके ताने उसके उल्हाने कैसे सहे सब तूं क्या जाने
 सीने में हर गम दफनाना इतना भी आसान नहीं

आप ही हंसना आप ही रोना आप ओढ़ना आप बिछौना
 आप ही जागना आप ही सोना आप ही पाना आप ही खोना

 हर आंसू को अकेले पीना तुम क्या जानो कितना मुश्किल
 खुद को खुद ही तसल्ली देना कैसे कर पाता है ये दिल

 पड़ी जरूरत मदद की जब भी खुद को दे आवाज बुलाया
 खुद के लिए खुदा बन जाना इतना भी आसान नहीं

आंख छलक आई मेरी तो इतने क्यों हैरान हो तुम
 मैं भी तुमसा ही इंसा हूँ बेदिल या पाषाण नहीं

सब के हाथों में पत्थर हैं और निशाने पे मेरा दिल
ऐसे में इस दिल को बचाना इतना भी आसान नहीं

1 comment:

निर्मला कपिला said...

खुद के लिए खुदा बन जाना इतना भी आसान नही
वाह बहुत सुन्दर रचना है दोल को छू गयी शुभकामनायें