Friday, December 4, 2009

सोते सोते लुट गया सब कुछ आंख खुली तो पता चला i

तेरे मेरे करने से जग में सोचो आखिर क्या होता है
जब जब जो होना होता है तब तब वैसा ही होता है

सोते सोते लुट गया सब कुछ आंख खुली तो पता चला
पता है सब लुट सकता है तो आखिर कोई क्यों सोता है

अंक गणित या अर्थशास्त्र में माना माहिर आप हुए
जीवन इतना सरल नही इतने भर से क्या होता है

अपनी तबाही का आलम क्या सब को बताते फिरते हो
असर तबाही का ऐसे में और भी ज्यादा स्याह होता है

मन में तेरे क्या हलचल है बेहतर है कोई ना जाने
दुनिया को जब पता चले गुनाह तभी गुनाह होता है

मन में तेरे लाख हो उलझन जुल्फों को सुलझा के रख
मन की उलझन चेहरे तक लाना यहां गुनाह होता है

 बार बार इस दिल को क्या पाप पुण्य समझाते हो
 स्वर्ग नरक इस दिल के लिए शायद एक सा ही होता है

 भला बुरा सही गलत नहीं इस को समझ आने वाला
 दिल की तराजू में शायद एक ही पलड़ा बना होता है

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