Saturday, July 11, 2009

रात का अन्धेरा ही निगल गया जिस शख्स को

अह्सास ही जब मर गया रिश्ते मे बाकी क्या बचा
 खोखला रिश्ता उम्र भर चलना क्या ना चलना क्या

 सारा सफर तन्हा कटा तो खत्म होते सफर मे
तूं बता हमसफर का मिलना क्या ना मिलना क्या

 रात का अन्धेरा ही निगल गया जिस शख्स को
 उसके लिये सू्रज सुबह निकलना ना निकलना क्या

कहने को डूबते को तिनके का सहारा है बहुत
दरअसल इतना  सहारा मिलना या  ना मिलना क्या

मरीज ए इश्क चल बसा तो हुस्न बेपर्दा हुआ
हुस्न का यूँ बेनकाब निकलना ना निकलना क्या

1 comment:

ओम आर्य said...

बहुत ही दुखद है जब पुरा सफर तन्हा कटा हो तो तो अंत मे किसी का इंतजार नही रहता........क्योकि ख्वाहिशे मर जाती है .............कोई चाह्त शे ष नही रहता होगा ....................शुभकामनाये.