Monday, April 27, 2009

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना
 दुश्मनी रोज अन्धेरों से बनाये रखना

 सैकडों दीप भी कुछ कम ही नजर आते है
 आन्धियों मे पडे जब दीप जलाये रखना

 भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
 तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना

 रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
 है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना

 इतना आसा भी नही जितना समझ बैठे थे हम
 इश्क की आग को इस दिल मे दबाये रखना

गैरों से राज़ छुपा कर ना समझ राज है ये
लाजिमी ये भी था अपनो से छुपाये रखना

उन्हें तुफाँ से गुजारिश नही करनी पडती
 सीख लेते है जो पतवार चलाये रखना

आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे
तब घरोन्दो का नामुमकिन है बचाये रखना

कागजी फूलो पे तितली तो बुला लीजे मगर
 नकली खुश्बु से नामुमकिन है रिझाये रखना

रेत से महल बनाना नहीं इतना मुशकिल
जितना मुश्किल है बने महल बचाये रखना

ना  ही समझो तो है बेहतर कि ये रिश्ते क्या है
 मुश्किल हो जायेगा रिश्तो का बनाये रखना

1 comment:

ACHARYA RAMESH SACHDEVA said...

BAHUT KHUB LIKHA H JANAAB.
SACHAI U BHI BYA KI JATI H.
WAH
ABHAAR SAWIKAR KARE.
RAMESH SACHDEVA