Monday, April 21, 2008

ये राह बनी नही उनके लिये जो बीच राह घबरा जाये

मन्जिल है मेरी फूलों से भरी केवल राहें वीराना हैं
चल साथ जो तूँ भी मेरी तरह बस मन्जिल का दिवाना है
 कोई फूल ना खुशबू राहों में कांटो से भी बच कर जाना है
 कुछ कष्ट तो पाना ही होगा मन्जिल का जो लुत्फ उठाना है
 चाहो तो लौट जाओ अब भी कुछ दूर नही ज्यादा आये
ये राह बनी नहीं उनके लिये जो बीच राह घबरा जाये
 तूँ लौट गया तो कया शिकवा जब वो साथी भी लौट गया
 जिसकी थी कसम कि जीवन भर हर हाल मे साथ निभाना है
 तेरा साथ मिले तो बेहतर है पर बीच राह मत लौट आना हैं
 पहले ही दिल में जख्म बहुत कोई नया जख्म नहीं दे जाना
 मै तन्हा भला लेकिन बेवफा साथी मुझको मन्जूर नहीं
 तय सफर अकेला कर ना सकूँ हुआ इतना भी मज़बूर नहीं

4 comments:

rakhshanda said...

तेरा साथ मिले तो बेहतर है पर बीच राह मत लौट आना
हैं पहले ही दिल में जख्म बहुत कोई नया जख्म नहीं दे जाना

क्या बात है....

Krishan lal "krishan" said...

Rakshanda ji
bahut bahut shukriya ghazal ke is sher ko pasand karane ke liye .
Aap ki tasavir har baar badli hoti hai AUR HAR BAAR PAHLE SE SUNDAR DIKHATE HAIM AAP. AAP EK KAVITAA KI PERMISSION DE TO.....THANKS

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

Krishan lal "krishan" said...

उड़न तशतरी जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद । पता नही क्यों आप की टिप्पणी से एक अलग तरह का सन्तोश मिलता है । पुन: धन्यवाद