मन्जिल है मेरी फूलों से भरी केवल राहें वीराना हैं
चल साथ जो तूँ भी मेरी तरह बस मन्जिल का दिवाना है
कोई फूल ना खुशबू राहों में कांटो से भी बच कर जाना है
कुछ कष्ट तो पाना ही होगा मन्जिल का जो लुत्फ उठाना है
चाहो तो लौट जाओ अब भी कुछ दूर नही ज्यादा आये
ये राह बनी नहीं उनके लिये जो बीच राह घबरा जाये
तूँ लौट गया तो कया शिकवा जब वो साथी भी लौट गया
जिसकी थी कसम कि जीवन भर हर हाल मे साथ निभाना है
तेरा साथ मिले तो बेहतर है पर बीच राह मत लौट आना हैं
पहले ही दिल में जख्म बहुत कोई नया जख्म नहीं दे जाना
मै तन्हा भला लेकिन बेवफा साथी मुझको मन्जूर नहीं
तय सफर अकेला कर ना सकूँ हुआ इतना भी मज़बूर नहीं
चल साथ जो तूँ भी मेरी तरह बस मन्जिल का दिवाना है
कोई फूल ना खुशबू राहों में कांटो से भी बच कर जाना है
कुछ कष्ट तो पाना ही होगा मन्जिल का जो लुत्फ उठाना है
चाहो तो लौट जाओ अब भी कुछ दूर नही ज्यादा आये
ये राह बनी नहीं उनके लिये जो बीच राह घबरा जाये
तूँ लौट गया तो कया शिकवा जब वो साथी भी लौट गया
जिसकी थी कसम कि जीवन भर हर हाल मे साथ निभाना है
तेरा साथ मिले तो बेहतर है पर बीच राह मत लौट आना हैं
पहले ही दिल में जख्म बहुत कोई नया जख्म नहीं दे जाना
मै तन्हा भला लेकिन बेवफा साथी मुझको मन्जूर नहीं
तय सफर अकेला कर ना सकूँ हुआ इतना भी मज़बूर नहीं
4 comments:
तेरा साथ मिले तो बेहतर है पर बीच राह मत लौट आना
हैं पहले ही दिल में जख्म बहुत कोई नया जख्म नहीं दे जाना
क्या बात है....
Rakshanda ji
bahut bahut shukriya ghazal ke is sher ko pasand karane ke liye .
Aap ki tasavir har baar badli hoti hai AUR HAR BAAR PAHLE SE SUNDAR DIKHATE HAIM AAP. AAP EK KAVITAA KI PERMISSION DE TO.....THANKS
बहुत बढ़िया.
उड़न तशतरी जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद । पता नही क्यों आप की टिप्पणी से एक अलग तरह का सन्तोश मिलता है । पुन: धन्यवाद
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