Monday, June 2, 2008

रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे

धीरे धीरे आजकल रिश्ते सब मरने लगे
हम भी औरो की तरह तरक्की अब करने लगे
 थाली किसीकी खाली है हुआ करे किसी को क्या
 आजकल तो सब के सब अपना घर भरने लगे
 अपनो बेगानो मे फर्क अब क्या रहा सोचो जरा
 दोनो बचाने की जगह बेडा गरक करने लगे
 रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे
सारे पडोसी रात भर खर्राटे तक भरने लगे
 अपना भला बुरा लगे अब सोचने हम इस कदर
अपने हित की खातिर दुनिया का बुरा करने लगे
 मालिक का हो या गैर का बस खेत हरा चाहिये
आजकल सारे गधे चारा हरा चरने लगे
 बुद्धि मिली दिल खो गया पढलिख के इतना ही हुआ
 तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे

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