Tuesday, March 1, 2011

जब प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

प्यार नही करना है तो फिर प्यार जताती क्यों हो
 दूर दूर रहना है तो फिर पास में आती क्यों हो

 दिल से दिल ही नही मिले तो जिस्म मिलेंगे कैसे
 नहीं मिलाना दिल से दिल तो हाथ मिलाती क्यों हो

 प्यास बुझाने की तुझ में ना चाहत है ना हिम्मत
प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो

 कोई आस नही होती पूरी तो घोर निराशा होती
 जब आस नही पूरी करनी तो आस बंधाती क्यों हो

 दे सकते हो कोई दवा तो आकर पूछो हाल मेरा
 दवा नही देनी तो दर्द भी याद दिलाती क्यों हो

तेरी ही जिद्द थी कि अपने जख्म दिखाऊं तुमको
 देख के जख्मो को मेरे नाहक घबराती क्यों हो

नहीं पिलानी मय तो फिर महफ़िल में बुलाना बंद करो
 दिखा दिखा जाम औ मीना हमको तरसाती क्यों हो

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