Friday, March 11, 2011

जिंदगी तुझ बिन भी गुजर सकती थी मालूम ना था

जिंदगी तुझ बिन भी गुजर सकती थी मालूम ना था
 चाहत दो शब्दों में सिमट सकती थी मालूम ना था

 हम तो बेवजह ही करते रहे रोशनी की तलाश
रात दीये के सहारे कट सकती थी मालूम ना था

 तुझ को खो कर के संभल पाना था लगता मुश्किल
 वक्त कर देगा इतना आसान ये मालूम ना था

उसको रोका नही इल्जाम ना होता सर पर
बस कि वो खुद नही पलटेगी ये मालूम ना था

बात करने से तो कहते है कि बन जाती है
बात है बिगडती भी कोई बात ये मालूम ना था

तुम भी बदले मै भी बदला साथ ही बदले हालात
पर मेरे सर रहेंगा हर इक इल्जाम ये मालूम ना था

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