Saturday, May 10, 2008

मत करो नाकाम कोशिश ये मकाँ बचना नहीं

सोचा नही तो सोचो, उस देश का क्या हो
जिस देश का हर शख्स उसे लूट रहा हो
 जिस नाव के सवार उस में कर रहें हो छेद
 उस पार तक वो नाव फिर क्या खाक जायेगी
 मझधार तक पहुंचना भी किस्मत की बात है
साहिल के आस पास ही वो डूब जायेगी
 टांग लो तस्वीरें जितनी तुम हर इक दीवार पर
 यूँ छुपाने से दरारें और बढती जायेंगी
 दीवार की हर ईंट तक जा पहुँची है हर इक दरार
ये दरारें वो नही जो भरने से भर जायेंगी
 इन दरारों से हुई जर्ज़र दीवारें देखिए
 और कितने रोज़ तक, खुद को खड़ा रख पायेंगीं
 मत करो नाकाम कोशिश ये मकाँ बचना नहीं
 गिरती दीवारों पे छत भी कब तलक टिक पायेंगी
 गिरने दो या खुद गिरा दो ऐसे घर की हर दीवार
 अब नये मकान की बुनियाद रखी जायेगी
जब नये दरवाजे होंगें और नई नई खिडकियाँ
 तब कहीँ जाकर इस घर में रोशनी आ पायेगी

4 comments:

समयचक्र said...

बहुत सुंदर धन्यवाद

राजीव रंजन प्रसाद said...

कृषन जी,

मत करो नाकाम कोशिश ये मकाँ बचना नहीं
गिरती दीवारों पे छत भी कब तलक टिक पायेंगी
गिरने दो या खुद गिरा दो ऐसे घर की हर दीवार
अब नये मकान की बुनियाद रखी जायेगी

सर शब्द सशक्त..

***राजीव रंजन प्रसाद

Udan Tashtari said...

वाह, क्या बात है. बहुत खूब.

Krishan lal "krishan" said...

MISHRA jI , RAJIV JI, AND SAMIR JI AAP KAA BAHUT BAHUT DHANYVAAD BLOG PAR AANE KE LIYE AUR KAVITA KO PASAND KARANE KE LIYE