Friday, May 9, 2008

इस सच को ही सच मानते हो तो इससे बडा कोई झूठ नहीं

सब कह्ते हैं सच बोलो सच अन्त में जीत ही जाता है
मै कह्ता हूँ मत बोलो सच सुनना किस को भाता है
 सच क्या है इक नंगापन है नंगापन किसे सुहाता है
 नंगेपन को ढकने का हुनर बचपन से सिखाया जाता है
 सीधे सच्चे इन्सानों की यहाँ कोई बात नहीं सुनता
बातें सब सुनते है उसकी जिसे बात बनाना आता है
 गलत सही, यहाँ कुछ भी नहीं, जो ताकतवर है वही सही
 या शब्दजाल बुनकर जिसको, सही साबित होना आता है
 सत्यम बुर्यात प्रियम बुर्यात कैसे हो सकता है संभव
 सुना है सच कडवा होता है, कडवापन किसको भाता है
 कभी सोचा है कि सच को प्रिय किस तरह बनाया जाता है
 कुछ सच को छुपाया जाता है कुछ झूठ मिलाया जाता है
 इस सच को ही सच मानते हो तो इससे बडा कोई झूठ नहीं
 इस झूठे सच का पहला घूंट हमें घर में पिलाया जाता है

3 comments:

Udan Tashtari said...

रोको इसे, ये कौन है?सच बोल रहा है!!
सब ऊँचे मकानों की छतें खोल रहा है!!


--बढ़िया है.

praveena said...

AREY SATIK LIKHA HAI JISNE BHII LIKHA HAI!! VERY TRUE...!!!!

praveena said...

VERY TRUE