Monday, June 9, 2008

तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नहीं

बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही
 क्यों गिला तुम से करूं कि जख्म तूने है दिये
ढूँढ कर लाये कोई वो सीना जो छलनी नही
 साफ ना कह दो तो शायद मै मना लूँ अपना मन
यूँ टालने से प्यार की कोई बात तो टलनी नहीं
 यूँ बात ना बिगाड़ ये गुडे गुडडी का खेल नहीं
इक बार जो बिगडी तो किसीसे भी संभलनी नहीं
 किस लिये बैठा रहूं दर पे तेरे मै रात दिन
हक भी जब मिलना नहीं भीख भी मिलनी नही
 तुमको भी मालूम है और मुझ को भी ये है पता
तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नही

6 comments:

Satish Saxena said...

बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही
....आम भाषा मैं बड़ी सामान्य बात, कह दी आपने ! अनायास ही हँसी आ गई !
शुभकामनाएं !

सतीश
http://satish-saxena.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

L.Goswami said...

kya bat hai sandar,likhte rahen..

Krishan lal "krishan" said...

सतीश सक्सेना जी
आपने सही कहा बहुत ही सामान्य भाशा मे बहुत ही सामान्य बात कहता हूँ असामान्य बात मेरी समझ मे ही नही आती जैसे कि ये बात कि आप को हँसी क्यों आयी

Krishan lal "krishan" said...

समीर जी आप की जितनी तरीफ की जाये बहुत कम है आप वस्तव मे हिन्दी के लिये बहुत कुछ कर रहे है

Krishan lal "krishan" said...

लवली कुमारी जी
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लाग पर
आप्का बहुत बहुत शुक्रिया रचना को पसन्द करने के लिये सच्मुच हृदय से निकली बात हृदय तक पहुन्च्ने का समर्थ्य रख्ती है