शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Monday, January 26, 2009
ना कहें बदकिस्मती तो क्या कहे तू ही बता
जिन्दगी के मायने हैं अब समझ आने लगे
इक इक कर जब छोड़ के सब हमे जाने लगे
देखता हूं आईना तो महसूस होता है मुझे
सीने मे द्फन गम हैं चेहरे पे नजर आने लगे
हमने जिन हाथों मे अक्सर फूल थमाये कभी
वो हाथ अब सर पे मेरे पत्थर हैं बरसाने लगे
देखा जब सीने मे नये जख्मो की जगह नहीं
दोस्त कान्टो से पुराने जख्म सहलाने लगे
किस किस्म के बीज थे जाने कैसी जमीन थी
पोधो पे फूलो की जगह कान्टे नजर आने लगे
ना कहें बदकिस्मती तो क्या कहे तू ही बता
जब दोस्त सारे दुश्मनी कि रस्म निभाने लगें
दूरी की बात और थी नजदीक जब गये कभी
ऊन्चे कद वाले सभी बौने नजर आने लगे
यूँ मानने को मान लेता हू तेरी हर बात मैं
वैसे तो हर बात तेरी मुझ को बेमायने लगे
अब हमारे बचने की उम्मीद बचती है कहां
हमको बचाने वाले है खुद को बचाने मे लगे
खेत मे तू ही बता कोई फसल बचती हैं कभी
खेत की जब बाड़ खुद ही खेत को खाने लगे
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