शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Monday, February 18, 2008
मन के इस कुरूक्षेत्र में
जाने क्यों
लगता है , मुझ को कभी कभी
युद्ध महाभारत का खत्म नही हुआ अभी
(1)
मन के इस कुरूक्षेत्र मैं
आज भी इच्छा रूपी सेनाये,
अपने अपने अस्त्र शस्त्र,
हाथों में उठायें
कर रही हैं शंखनाद
हर कोई एक दुसरे पर,
बलवती होना चाहता है
विजय सब को पसन्द है
हारना कोई नहीं चाहता है
पर आज का विदुर इस बात से क्षुब्ध है,
कि इस युद्ध का ना कोई नियम है
ना ही कोई धर्म,
तो ये कैसा महाभारत है कैसा धर्म युद्ध है
कभी भी कोई भी अस्त्र्, हो सकता है प्रयोग,
साम दाम दण्ड भेद या इन सब का योग
छल कपट मक्कारी या फिर बेईमानी
क्योंकि, अब युद्ध जीतना ही काफी है
कैसे जीता, ये हो चुका है बेमानी।
(2)
और जाने कयों लगता है मुझे,
कि मन के इस कुरुक्षेत्र मे ,
मैं ही अर्जुन हूँ ,तो मै ही दुर्योधन,
मैने स्वयं ही स्वयं को मारना है
या कहो, स्वयं ही जीतना है ,स्वयं ही हारना है
मै अर्जुन ,
किंकर्त्वयविमूढ सा समझ नही पाता हूँ
मैं भला स्वयं ही
स्वयं को कैसे मार सकता हू
और स्वयं को जिताने के लिये,
स्वयं कैसे हार सकता हूँ
(3)
तभी मैं स्वयं ही कृष्ण बन जाता हू
स्वयं ही स्वयं को समझाता हूँ
यदि इस युद्ध मे दुर्योधन नहीं मरा,
तो अनर्थ हो जायेगा
पता नहीं ये दुर्योधन कब
किस किस दुशासन से,
किस कि्स द्रोपदी का 'चीरहरण' ही नहीं
'शीलहरण' तक करवायेगा ।
यह सोच ,
मै अन्दर तक काँप जाता हूँ
क्योंकि द्रोपदी भी ,
मै खुद को ही पाता हूँ
(4)
पर पिछले हर अनुभव से हतोत्साहित,
मुझ अर्जुन से
अपना गाण्डीव नहीं उठता
हे कृष्ण,
मै ये युद्ध अब और नहीं कर सकता
अपना समय और अपनी ताकत
व्यर्थ नहीं कर सकता
आपके कहने पर मैने अक्सर अपना गाण्डीव उठाया है
तर्क वितर्क का हर तीर भी आजमाया है
परन्तु नतीजा
वही ढाक के तीन पात ही आया है
दिल का 'ये' दुर्योधन ना हारा ना मरा
इसे हमेशा जिन्दा ही पाया है
हे कृष्ण
अगर इस तरह दुर्योधन ,
मर सकता या मर गया होता
तो ये महाभारत कब का खत्म हो गया होता
पर ये तो आज भी अपनी मनमानी करता फिरता है,
ना इस की सेना ही मरती है ,
ना ये आप ही मरता है
इसलिये प्रभु मुझे अब क्षमा कीजिये
और हार स्वीकार कर
युद्ध समाप्त करने की अनुमति दीजिये
(5)
हे अर्जुन,
ऐसा नहीं कि मैं कृष्ण ये बात नहीं जानता
और ये दुर्योधन नहीं मरने वाला ,
मै ये भी हूँ मानता
फिर भी ये युद्ध समाप्त करने की
अनुमति मै नहीं दे सकता
क्योंकि एक बात तूँ नहीं जानता।
ये युद्ध मेरे द्वारा ही प्रेरित है,
और इस युद्ध को जारी रखने में ही
हम सब का हित है
सोच
ना भी मरा दुर्योधन तो कम से कम
इस युद्ध मे उलझा तो रहेगा
और इस तरह तब तक
कई द्रोपदियां बची रहेंगी, हस्तिनापुर भी बचा रहेगा
तब मैं अर्जुन, अनमने मन से ही सही,
फिर गाण्डीव उठाता हूँ और
'महाभारत अभी जारी है'
इसका शंखनाद बजाता हूं
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1 comment:
बहुत सुन्दर व विचार करने लायक कविता लिखी है । महाभारत के ये सब पात्र सच में आज भी मनुष्य के अन्दर जी रहे हैं ।
घुघूती बासूती
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