Wednesday, February 20, 2008

प्यार तुम से और बढ़ता जा रहा है

वक्त ज्यों ज्यों गुजरता जा रहा है
प्यार तुम से और बढता जा रहा है
 सोचा था हालात की इस चिलचिलाती धूप में
मर जायेंगी मेरी ये सारी पौध जैसी हसरतें
पर जाने कौन किस्म है,इस पौध की या मेरे रब
प्यार का पौधा तो बेहिसाब बढ़ता जा रहा है
 वक्त ज्यों…………॥
 सोचा फिर अब कह ही दूँगा मुझ को तुमसे प्यार है
जीना क्या मरना भी अब तेरे बिना दुश्वार है
 पर जाने किस हद तक आ पहुंचा है मेरा प्यार अब
 कुछ भी कहना अब तो बेमानी सा होता जा रहा है
वक्त ज्यों…………
 अब ये सोचा है कि अब से कुछ भी ना सोचेंगे हम
तूँ ही बता, इस दिल को आखिर कितना और रोकेंगे हम
इसे रोकने में आजतक मिली किस को कामयाबियां
 मेरा दिल भी, अब तो बगावत पर उतरता जा रहा है
 वक्त ज्यों ज्यों गुजरता जा रहा है
प्यार तुम से और बढ़ता जा रहा है

4 comments:

Unknown said...

SUNDER GAZAL....KHO KAR RAH GAYI ....

Krishan lal "krishan" said...

Komal ji,
Thanks a lot for the best ever comments. I could not expect better comments than this.
वास्तव मे कविता सार्थक ही तभी होती है जब पाठक को अपने साथ बहा ले जाये और ऐसा तभी संभव है जब कविता कोरी कल्पना पर आधारित न हो और वो वास्तव मे दिल से निकली हो दिमाग से नहीं।
पुन: धन्यवाद

Anonymous said...

hum ko bhi tum se(tumhari kavitaon se ) pyaar badhta jaa rahaa hai...
bahut sunder parbhaav shaali kavita...lagata hai dil se likhi hai...bhagayashaali hai vo

Krishan lal "krishan" said...

अन्जलि जी,
कविता की प्रशसा के लिये धन्य्वाद्। हमारी कविताओ से आपका प्यार बढ़ाने लगा है इसकेलिये मै आभारी हूँ।
आपका अनुमान ठीक ही है कविता तो दिल से ही लिखी है……………

नाकाम ही सही मगर कोशिश तो फर्ज है
मुकद्दर भले इस बार भी धोखा ही करेगा
जिस फल पे निशाना लगा उछाला है ये पत्थर
मालूम है फल वो मेरी झोली ना गिरेगा