इस हाद्सों के शहर मे हो ही गया फिर हाद्सा
मैने भले रखा कदम एक एक संभलते हुये ॥
सोचा ना था मिल जायेगी सरेराह हम को जिन्दगी
हम तो गुजरे थे इधर से यूँ ही टहलते हुये ॥
पेश ना करते कभी तेरे सामने शीशे का दिल
तेरे हाथों में गर देख लेते पत्थर उछलते हुये
जिस दम पे तुम दम ठोंक ठुकराते रहे हरदम
मुझे आज देखेंगे हमदम तेरा दम वो निकलते हुये
हाथों मे हाथ डाल तमन्ना थी तेरे संग चले
पर रह गये है देख खाली हाथ हम मलते हुये
ये ना कह, तेरा मिलन, मुझसे कभी मुमकिन ना था
देखा नहीं, क्या तुमने, धरती से गगन मिलते हुये॥
चलो मै नही कह्ता,पर तुम खुद को कहोगी बेवफा
जिस रोज शीशा देखोगी,सुबह आँख तुम मलते हुये
मैने भले रखा कदम एक एक संभलते हुये ॥
सोचा ना था मिल जायेगी सरेराह हम को जिन्दगी
हम तो गुजरे थे इधर से यूँ ही टहलते हुये ॥
पेश ना करते कभी तेरे सामने शीशे का दिल
तेरे हाथों में गर देख लेते पत्थर उछलते हुये
जिस दम पे तुम दम ठोंक ठुकराते रहे हरदम
मुझे आज देखेंगे हमदम तेरा दम वो निकलते हुये
हाथों मे हाथ डाल तमन्ना थी तेरे संग चले
पर रह गये है देख खाली हाथ हम मलते हुये
ये ना कह, तेरा मिलन, मुझसे कभी मुमकिन ना था
देखा नहीं, क्या तुमने, धरती से गगन मिलते हुये॥
चलो मै नही कह्ता,पर तुम खुद को कहोगी बेवफा
जिस रोज शीशा देखोगी,सुबह आँख तुम मलते हुये
8 comments:
एक एक शेर लाजवाब है । बहुत सुन्दर गज़ल------
बहुत बेहतरीन!!
पेश ना करते कभी तेरे सामने शीशे का दिल
तेरे हाथों में गर देख लेते पत्थर उछलते हुये
bahut ache krishna lal ji....
अंजली जी, परम जीत बाली जी और सन्दीप जी मै आप सब का आभारी हूँ प्रोत्साहित करने के लिये। आप अपना स्नेह बनाये रखेंगे तो अच्छा लगेगा। धन्य्वाद सहित
बहुत उम्दा शेर कह डाले सभी, बधाई.
उडन तशतरी जी
गज़ल के हर शेर की खुले दिल से प्रशंसा करने के लिये आप का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आपका इस ब्लाग पर आने का स्वागत है कृप्या भविष्य में भी अपना स्नेह बनाये रखें। धन्यवाद
lajabab, krishan ji.
Satish ji,
I welcome you on this blog and thank you earnestly for appreciating the ghazal . Please continue encouraging in future also. Thanks again.
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